मुद्दा : झटपट कमाई के खतरे
कोई नहीं कहता कि ईमानदारी और मेहनत से कोई भी काम करके पैसा कमाना गलत है। जितना मर्जी चाहें पैसा कमाएं, सरकार या किसी को भी इससे कोई आपत्ति नहीं है।
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लेकिन जल्दी-जल्दी येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाने की फिराक में अपराधी बन जाना या अनैतिक हथकंडे अपनाना तो गलत है ही। इसी विकृत मानसिकता के चलते ही कुछ बेहद संभावनाओं से लबरेज पेशेवर और उद्यमी भी बर्बाद हो रहे हैं। उन्हें जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ रहा है।
अब पेटीएम के चेयरमेन विजय शेखर को ब्लैकमेल कर 20 करोड़ रुपये मांगने की आरोपित सोनिया धवन को ही लीजिए। वह विजय शेखर की निजी सहयोगी थीं। कड़ी मेहनत करके अपने कॅरियर में आगे बढ़ रही थीं। उनकी सैलरी सालाना 60 लाख रुपये तक हो गई थी। पेटीएम में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर पहुंच गई थीं। पर फिर फर्राटा दौड़ के धावक की तरफ पैसा कमाने के लिए तेज दौड़ लगाना चाहती थीं। मतलब यह कि एक झटके में ही करोड़ों रु पये जेब में डाल लेना चाहती थीं। इसलिए उनने अपने संरक्षक से ही 20 करोड़ रु पये की फिरौती मांगने का महा घृणित षड्यंत्र रचा। जरा बताइये कि कितने भारतीय सालाना 60 लाख रु पये कमा पाते हैं? पांच लाख रुपये महीना कमाने वाली सोनिया को समझ नहीं आया कि संतोष का क्या आनंद होता है?
कुछ साल पहले हैदराबाद स्थित आईटी कंपनी सत्यम में घोटाले ने सारे देश को हिला कर रख दिया था। भारत में सत्यम जैसा बड़ा कॉरपोरेट घोटाला कभी पहले नहीं हुआ था। सत्यम के संस्थापक बी. रामलिंगा राजू ने खातों में गड़बड़ी करके करोड़ों रुपये का मुनाफा कमाया था। दरअसल, रामलिंग राजू ने रीयल एस्टेट में मोटा पैसा लगाना शुरू कर दिया था। इससे कुछ लोगों को शक हुआ कि वे आईटी बिजनेस में ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं। राजू को 7 जनवरी, 2009 को उस समय गिरफ्तार किया गया था, जब सत्यम में 8 हजार करोड़ रुपये का घपला सामने आया था। दरअसल, लालच के दैत्य ने उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया। वे भारत की आईटी क्रांति के अग्रणी हस्ताक्षर थे। यदि अपना कामकाज पूरी ईमानदारी से करते रहते तो वे भी एन. नारायणमूर्ति और नंदन नीलकेणी सरीखे आईटी क्षेत्र के महान हस्तियों के रूप में जगह बना लेते।
आप गौर कर रहे होंगे कि बीते कुछ समय में एक के बाद एक ऐसे केस सामने आ रहे हैं, जिनमें कोई खास और सफल शख्सियत भी फंसी होती है। देखिए, जब भी कोई इंसान सफल और स्थापित हो जाता है, तब उसे समझ लेना चाहिए कि उससे तमाम लोग प्रेरित होते रहते हैं। उसे इस तरह का काम नहीं करना चाहिए जिससे उसकी छवि तार-तार हो जाए। इधर कुछ समय पहले आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन लोन मामले में अपनी ही ख्याति प्राप्त और प्रतिष्ठित मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ चंदा कोचर की छुट्टी कर दी। कोचर और उनके परिवार के सदस्यों पर वीडियोकॉन को लोन देने और निजी हितों के टकराव का मामला सामने आया था। एक शिकायत के बाद आईसीआईसीआई बैंक ने कोचर के खिलाफ जांच शुरू की थी। कोचर बैंक से करोड़ों रु पये पगार उठाती थीं। पर उन्हें लालच ने गहरा नुकसान पहुंचाया। यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) की पूर्व चेयरपर्सन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर (सीएमडी) अर्चना भार्गव भी करप्शन के आरोपों में ही फंसी थीं। उनके घर में छापे में करोड़ों के गहने और जेवरात पकड़े गए थे। सिंडिकेट बैंक के सीएमडी एस.के. जैन को 50 लाख रु पये की घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने भी एक कंपनी को मोटा लोन दिलवाया था। बैंक ऑफ महाराष्ट्र के चेयरमैन सुशील मनहोट को भी करप्शन के कथित आरोपों के कारण ही हटाया गया। अब रीयल एस्टेट सेक्टर में फैली लूट को भी देख लीजिए। अब लगभग रोज ही कुछ कथित नामवर बिल्डरों की कलई खुल रही है। इन्होंने अपने ग्राहकों के साथ धोखा करना शुरू कर दिया।
नोएडा में सैकड़ों बिल्डर खुलेआम ग्राहकों को लूटते रहे। उन्हें अपनी छतों का सब्जबाग दिखाते रहे। बिल्डरों के मारे ग्राहक रो रहे हैं अपनी किस्मतों पर। कुछ बिल्डरों को जेल भी भेजा चुका है। ज्यादातर बिल्डरों का कामकाज पारदर्शी नहीं होता। हवस का तो इलाज ही नहीं है। ‘मेरा घर मेरा हक’ का नारा देने वाले आम्रपाली ग्रुप के चेयरमैन अनिल शर्मा की ही बात कर लीजिए। सुप्रीम कोर्ट कुछ समय पहले शर्मा को ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में जेल भी भेज चुका है। लगता है कि लालच में उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। सही कहा गया है कि ‘लालच बुरी बला है।’ स्पष्ट है कि येन केन प्रकारेण धन कमाने की मानसिकता पर लगाम लगाने की जरूरत है।
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