संसदीय विमर्श : नदारद रहे कई माननीय

Last Updated 28 Feb 2018 02:33:16 AM IST

राष्ट्रमंडल संसदीय संघ जो पहले Empire संसदीय संघ के नाम से जाना जाता था, उसकी स्थापना 1911 में हुई थी. सन 1948 में Empire संघ से बदलकर इसका नाम राष्ट्रमंडल संसदीय संघ रखा गया.


संसदीय विमर्श : नदारद रहे कई माननीय

संघ का उद्देश्य है कि प्रजातंत्र, सुशासन और मानवाधिकार की सफलता के लिए तत्पर रहें. राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का छठा सम्मेलन पटना में संपन्न हुआ. यह सम्मेलन बिहार में पहली बार हो रहा था, जिसमें 100 से भी ज्यादा राष्ट्रमंडल के पार्लियामेंटेरियन्स ने अपना योगदान दिया. छठे सम्मेलन का मूल विषय था. ‘पार्लियामेंट और पार्लियामेंटिरयन की भूमिका सतत विकास के लक्ष्यों को पाने में’.
राष्ट्रीय संसदीय संघ 2030 के यूनाइटेड नेशन सस्टेनेबल डेवलपमेंट के घोषणापत्र के मूल्यों को प्राप्त करने में मदद कर रही है. इस योजना को पाने के लिए विभिन्न संसदों में कानून बनाया जा रहा है और उसके लिए बजट का प्रावधान किया जा रहा है . सस्टेनेबल डेवलपमेंट के मूल लक्ष्य जैसे कि गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, रोगों का उन्मूलन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है. इन लक्ष्यों को पाने के लिए पार्लियामेंटिरयन अपनी जिम्मेदारी समझ सकें, इसके लिए राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ सम्मेलन का आयोजन करता है.

पार्लियामेंटेरियन समाज और राज्य के संस्थाओं के बीच में तारतम्य बनाता है और मजबूती से जनता की मांगों पर कानून की रूपरेखा बनाता है ताकि समाज के वंचित वगरे को उनका अधिकार मिल सके. राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ प्रतिनिधियों को सतत विकास के लक्ष्यों को पाने के लिए और राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ के उद्देश्यों को कार्यान्वित करने का मौका देता है. इंडिया रीजन के छठे राष्ट्रमंडल संसदीय संघ ने अहम मुद्दे रेखांकित किए हैं, जैसे कि- सतत विकास के लक्ष्यों को समय सीमा में प्राप्त करना, सभी व्यक्ति तक कानून कार्यक्रम की पहुंच, भ्रष्टाचार पर रोक, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करें और संयम के साथ काम करें. इस सम्मेलन के शुरू में ही राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के इतिहास में काला अध्याय भी जुड़ गया, जब उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने चार पूर्व मुख्यमंत्रियों और उनके विधायकों की विसनीयता का जिक्र किया. इस पर राष्ट्रीय जनता दल के विधायकों ने विरोध किया और संघ की कार्यवाही से बाहर चले गए.
दुख की बात यह है कि सत्ता पक्ष के विधायक भी संघ के सम्मेलन से नदारद रहे. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि बिहार के मान-सम्मान को अपने लोगों ने ही कमतर किया. राष्ट्रीय संसदीय संघ का सम्मेलन बिहार में जिस उद्देश्य के कारण किया गया था, उसमें यह असफल रहा. इस सम्मेलन से युवा विधायकों को सीखने का मौका मिलता, सरकार, सुशासन और मानवाधिकार का ज्ञान मिलता; इससे विधायक वंचित रह गए. विधायिका और न्यायपालिका एक दूसरे के साथ रहकर भी स्वतंत्र हैं, इस ज्ञान से विधायिक बिहार का भला कर सकते थे. यहां तक कि विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव भी सम्मेलन में शामिल नहीं हुए. राष्ट्रमंडल संसदीय संघ वो सुनहरा मौका था, जहां बिहार अपनी पुरानी विरासत और नम्र शक्ति का परिचय देता. बिहार में अनेक संभावनाएं हैं. उसमें से एक पर्यटन का क्षेत्र है. राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सदस्यों को पर्यटन के जरिये रोजगार की सम्भावनाओं के बारे में अहम पहल हो सकती थी.  राष्ट्रमंडल संसदीय संघ अपने 107 वर्ष पूरे कर चुका है और विकास, सुशासन और राष्ट्रमंडल के मान को चिह्नित करता है.
राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सदस्य एक दूसरे से मिलकर प्रजातंत्र के मूल्य सीखते हैं, जिससे उनको कानून बनाते समय मदद मिलती है. बिहार में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का सफलतापूर्वक समापन हुआ, जहां विधायिका और न्यायपालिका के संबंधों पर विशेष विमर्श में लोकतंत्र के सभी स्तंभों से संयम के साथ काम करने और अपनी सीमा में रहने की अपील की गई. इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से बिहार की संस्थाओं को सुशासन के नये आयाम सीखने को मिले. साथ ही सरकार को ज्यादा-से-ज्यादा समाज के वंचित लोगों के प्रति सजग होने का मौका भी मिला.

सुबोध कुमार


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