पूर्वोत्तर : बिछ गई चुनावी बिसात

Last Updated 15 Feb 2018 01:51:25 AM IST

भारत के जिन तीन पूर्वोत्तर राज्यों में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं, आकार में वे राज्य भले ही छोटे हैं. लेकिन उनकी राजनीतिक अहमियत को कम नहीं आंका जा सकता.


पूर्वोत्तर : बिछ गई चुनावी बिसात

नगालैंड, मेघालय और त्रिपुरा विधान सभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है. जहां कांग्रेस के लिए अपने वजूद को कायम रखने की चुनौती दिखाई दे रही है वहीं भाजपा इन तीनों राज्यों में जीत हासिल करने के मंसूबे बना रही है. 18 फरवरी को त्रिपुरा में चुनाव होंगे, जबकि मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को चुनाव होंगे. मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में 60-60 सदस्यीय विधान सभा का कार्यकाल क्रमश: 6, 13, 14 मार्च को समाप्त हो रहा है. तीनों विधान सभा चुनावों के नतीजे 3 मार्च को आ जाएंगे.
1993 में त्रिपुरा में कांग्रेस को परास्त कर सत्ता में आए वाम मोर्चे को इस बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. वाम मोर्चे में 50 विधायक हैं, जिनमें एक विधायक भाकपा का और 49 विधायक माकपा के हैं. केरल के बाद त्रिपुरा ही देश में ऐसा राज्य है, जहां माकपा की सरकार है और इस चुनाव में मुख्यमंत्री मानिक सरकार की लोकप्रियता की भी परीक्षा होने वाली है. त्रिपुरा ने सामाजिक क्षेत्र में काफी प्रगति की है. राज्य में लगभग पूरी आबादी साक्षर है और शिशु मृत्यु दर कम है. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था होने के बावजूद मानव विकास सूचकांक में राज्य का स्थान ऊपर है. माकपा के लंबे शासनकाल में जनजातीय उग्रवाद का अंत हो चुका है और सामाजिक क्षेत्र में राज्य ने काफी प्रगति की है. मगर चुनाव के दौरान माकपा को जनभावना से जुड़े सरोकारों का सामना करना पड़ेगा. बेरोजगारी की समस्या को लेकर युवाओं में असंतोष बढ़ता गया है. माकपा को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर इस बार कांग्रेस की जगह भाजपा का मुकाबला करना पड़ेगा. भाजपा पूरा ध्यान जनजातीय मतदाताओं को लुभाने पर केंद्रित कर रही है, जिनकी तादाद कुल आबादी में 32 फीसद है.

आदिवासियों के वोट हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने इंडिजीनियस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ गठजोड़ किया है. भाजपा ने असम के मंत्री हिमंत विश्व सरमा को चुनाव का प्रभारी बनाया है. पिछले दो सालों में पूर्वोत्तर के तीन राज्य असम, अरु णाचल प्रदेश और मणिपुर में भाजपा की सरकार बनाने में शर्मा ने निर्णायक भूमिका निभाई है. त्रिपुरा में कांग्रेस को अंदरूनी असंतोष का सामना करना पड़ रहा है. 2013 के चुनाव में कांग्रेस को 10 सीट मिली थी, जो अब सिमटकर तीन रह गई है. उसके छह विधायक पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए और फिर पिछले साल भाजपा में शामिल हो गए. एक और विधायक ने दो महीने पहले भाजपा का दामन थाम लिया. नगालैंड में चुनाव से पहले नाटकीय मोड़ उस समय आया जब सभी राजनीतिक पार्टयिों ने नगा मसले को हल किए बिना चुनाव का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी. बाद में भाजपा ने बहिष्कार से खुद को अलग कर लिया. भाजपा ने अपने पुराने राजनीतिक साझीदार एनपीएफ से सीटों को लेकर तालमेल नहीं बैठने पर चुनाव के लिए नेफ्यू रिओ की पार्टी एनडीपीपी के साथ गठबंधन कर लिया है.
राज्य में 15 से भाजपा की साझेदारी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के साथ थी और यह सत्ताधारी डेमोक्रेटिक अलायंस ऑफ नगालैंड का अंग बनी रही थी. मुख्यमंत्री टीआर जिलियांग ने हाल ही में राज्य के अनुभवी नेता एस लिजित्सू से सुलह की है, जिनको उन्होंने जुलाई 2017 में हटा दिया था. रिओ ने 2014 में लोक सभा चुनाव लड़ते समय मुख्यमंत्री का पद जिलियांग को सौंप दिया था. किंतु पिछले दो सालों में वर्चस्व की जंग शुरू होने पर जिलियांग के साथ उनके रिश्ते बिगड़ते गए. चुनाव से पहले रिओ ने एनपीएफ को छोड़ दिया और नवगठित पार्टी नेशनिलस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) में शामिल हो गए. इसी पार्टी के साथ भाजपा ने भी गठबंधन कर लिया है. एनपीएफ से दो बार निलंबित हो चुके रिओ के साथ नई पार्टी में पूर्व सांसद सी कोनयाक और पूर्व आईएएस अधिकारी ए जमीर हैं. एनपीएफ को पिछले कुछ दिनों से अंतर्कलह से जूझना पड़ रहा है. पिछले महीने मुख्यमंत्री जिलियांग ने भाजपा के एम किकोन सहित छह मंत्रियों को निलंबित कर दिया. एक और मंत्री वाई पेटन इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए हैं. 60 सदस्यीय नगालैंड विधान सभा में एनपीएफ के 48, भाजपा के चार और आठ निर्दलीय विधायक हैं. कांग्रेस के पास एक भी सीट नहीं है. पूर्वोत्तर में हाल के दिनों में भाजपा का नाटकीय रूप से उत्थान हुआ है. मई 2016 में असम में कांग्रेस को सत्ता से हटाने के छह महीने बाद ही अरु णाचल प्रदेश में उसने मुख्यमंत्री पेमा खांडू सहित कांग्रेस के 43 विधायकों को अपने साथ लेकर सरकार बनाई.
मार्च 2017 में हुए चुनाव में कांग्रेस भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, मगर भाजपा ने ही सरकार बनाई. लेकिन ईसाई बहुल नगालैंड और मेघालय में भाजपा की राह आसान नहीं है. गौ रक्षा अभियान के नाम पर देश भर में हिंसा, बीफ बैन और चर्च पर हमले की वजह से उसकी छवि जीत की राह में बाधक बन सकती है. मेघालय में भाजपा ने केंद्रीय पर्यटन मंत्री केजे अलफोंस को चुनाव प्रभारी बनाया है, जो अपने गृह राज्य केरल में बीफ समर्थन के लिए जाने जाते हैं. भाजपा को उम्मीद है कि इस तरह लोगों के मन से बीफ बैन के मुद्दे पर नाराजगी को दूर किया जा सकता है.
मेघालय में कोई जनाधार नहीं होने के चलते भाजपा ने नेशनिलस्ट पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के साथ हाथ मिलाकर सत्ताधारी कांग्रेस को परास्त करने की जो रणनीति बनाई थी, उसे उस समय धक्का लगा जब एनपीपी नेता कौनराड संगमा ने भाजपा के साथ गठजोड़ करने से इनकार कर दिया और अपने बूते पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. एनपीपी की स्थापना पूर्व लोक सभाध्यक्ष पीए संगमा ने की थी और कौनराड उनके पुत्र हैं. कौनराड को उम्मीद है कि उनकी पार्टी अपने बूते पर ही कांग्रेस को पराजित करने में सफल होगी. पर्यवेक्षकों को लगता है कि विपक्षी पार्टी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी और निर्दलीय विधायक किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं.

दिनकर


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