इच्छा मृत्यु : सरकार और कानून एकमत

Last Updated 08 Feb 2018 02:27:36 AM IST

बहुत लंबे संघर्ष के बाद निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (पैसिव यूथनेसिया) देने पर राजनीतिक और कानूनी स्तर पर सहमति तकरीबन बन चुकी है.




इच्छा मृत्यु : सरकार और कानून एकमत

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कड़ी शतरे के साथ निष्क्रिय इच्छा मृत्य की इजाजत देने की तैयारी कर ली है. ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत ने कुछ समय पहले केंद्र सरकार से इच्छा मृत्यु को कानूनी आधार देने की अर्जी पर अपना पक्ष रखने को कहा था. कोर्ट ने यह बात कॉमन कॉज नामक गैर-सरकारी संगठन की याचिका पर सुनवाई के दौरान कही थी.
दरअसल, इस संबध में न्यायमूर्ति अनिल दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस पटवालिया को इस संबध में सरकार की ओर से निर्देश लाने के लिए कहा था. इसके अलावा विधि आयोग की 241वीं रिपोर्ट में भी कुछ निश्चित दिशा-निर्देशों के साथ निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की इजाजत देने का समर्थन भी किया गया था.

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे प्रशांत भूषण का कहना था कि वेंटिलेटर पर रखे व्यक्ति, जिसके बचने की उम्मीद न हो, को जीवन समाप्त करने की इजाजत मिलनी चाहिए. यह भी तर्क था कि जिस व्यक्ति को पता हो कि उसकी जान नहीं बच सकती तो उसे फिर वेंटिलेटर पर रखने की पीड़ा को सहन करने का दबाव क्यों डाला जाना चाहिए. हालांकि अब से पहले सरकार ने इस मुद्दे का कड़ा विरोध करते हुए इसे आत्महत्या करार दिया था. परंतु ध्यान रहे हाल ही में सरकार ने इच्छा मृत्यु से जुड़ा मेड़िकल ट्रीटमेंट ऑफ टर्मिनली इल पेशेंट लंबित बिल-2006 में सख्त प्रावधान करते हुए अब इसे मैनेजमेंट ऑफ पेशेंट्स विद टर्मिनल इलनेस-विदड्राल ऑफ ऑडिकल लाइफ सपोर्ट बिल नाम दिया है. असल में इस बिल में उन मरीजों के दर्द निवारण की व्यवस्था की गई है, जो निष्क्रिय इच्छा मृत्यु का विकल्प चुनेंगे. इसमें गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज की जीवन रक्षक मेड़िकल सपोर्ट को हटाना शामिल किया गया है. परंतु इस बिल में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि इसके लिए अस्पतालों को एक स्वीकृति समिति गठित करनी होगी. यह समिति जीने की इच्छा से जुड़े आवेदनों पर विचार करेगी. सही मायनों में यह एक लिखित दस्तावेज होगा जिसमें उस मरीज के लिए जीवन भर किए गए उपायों के बाद भी उसकी हालत में सुधार न होने की बात भी उसमें साफ तौर पर बतानी होगी. खास बात यह है कि कोई व्यक्ति समिति के सामने गलत आंकड़े पेश करता है, तो उसे अधिकतम 10 साल की जेल और बीस लाख से लेकर एक करोड़ रुपये का जुर्माना भरना होगा.
इच्छा मृत्यु के मामले से तस्वीर अभी तक पूरी तरह साफ नहीं थी. विगत समय में देखें तो सुप्रीम कोर्ट में इससे जुड़े दो निर्णय हमारे सामने हैं. पहला, अनुच्छेद-21 में गरिमा के साथ जीने के अधिकार से जुड़ा है. परंतु इसमें लोगों का तर्क है कि अगर इसमें जीने का अधिकार शामिल है, तो इसमें गरिमा के साथ मरने का अधिकार भी शामिल होना चाहिए. परंतु 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञान कौर बनाम पंजाब सरकार के मामले में स्पष्ट किया कि अनुच्छेद-21 में जीवन जीने के अधिकार में मृत्युवरण का अधिकार शामिल नहीं है. अगर इसमें शामिल करते भी हैं, तो यह आईपीसी की धारा 306 और 309 में आत्महत्या का अपराध माना जाएगा.  सुप्रीम कोर्ट ने दूसरा फैसला 7 मार्च, 2011 को मुबई के किंग एडर्वड मेमोरियल अस्पताल की नर्स अरुणा रामचन्द्र शानबाग, जो यौन शोषण के बाद वहां लंबे समय से कोमा में थीं, के मामले में सुनाया था. इस फैसले से साफ हो गया था कि यदि शानबाग के कानूनी रक्षक चाहें तो उन्हें  जीवित रखने वाले सपोर्ट सिस्टम को हटाया जा सकता है. उस अस्पताल की नर्से इस फैसले के खिलाफ खड़ी हो गई थीं. अरुणा शानबाग ने उसी अस्पताल में लंबे समय तक नसरे की देखरेख में रहते हुए आखिर में अपने प्राण त्याग दिए परंतु उसके जाते-जाते तक इच्छा मृत्यु पर बहस अधूरी ही बनी रही. सही मायनों में सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों फैसलों का आशय तो समान ही था परंतु उसमें निष्क्रिय इच्छा मृत्यु से जुड़ी कोई राय साफ न होने से उसमें कानूनी उलझन अभी तक भी बनी हुई है.
 इच्छा मृत्यु पर देश में अभी कोई स्पष्ट कानून न होने से गंभीर मरीजों के सामने बहुत परेशानी हैं. जब तक कोई स्पष्ट कानून नहीं बनता तब तक शीर्ष अदालत का यही निर्णय लागू रहेगा. भारत के लिए निष्क्रिय इच्छा मृत्यु का वरण करना निश्चित ही बहुत ही संवेदनशील मामला है. भारत जैसे उदार देश में कानूनों की आड़ में उसके दुरुपयोग की भी पूरी-पूरी संभावनाएं मौजूद हैं. खुशी की बात है कि इच्छा मृत्यु के तमाम नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पहलुओं के मद्देनजर सरकार और शीर्ष अदालत दुखित जीवन को मोक्ष के अंतिम पायदान पर ले जाने की न्यायोचित व्यवस्था करने की तैयारी में है. लगता है कि देश ऊहापोह की उलझन से बहुत जल्द मुक्त होकर राहत की सांस लेगा.

विशेष गुप्ता


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