रोहिंग्या : शरणार्थियों की सुध लें
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर हमले अब भी जारी हैं.
रोहिंग्या : शरणार्थियों की सुध लें |
इसलिए बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में रह रहे लाखों शरणार्थियों के लिए घर लौटना अभी सुरक्षित नहीं है. म्यांमार में समुचित सुरक्षा का अभाव है और सहायता करने वाली एजेंसियों, मीडिया और अन्य स्वतंत्र पर्यवेक्षकों पर पाबंदियां जारी है. उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र की यह चेतावनी रोहिंग्या शरणार्थियों का अपने घर स्वेच्छा से वापसी के लिए म्यांमार और बांग्लादेश सरकारों के बीच हुए समझौते के दो माह बाद आई है.
याद रहे कि गत वर्ष अगस्त माह के अंत में म्यांमार के उत्तर में स्थित रखाइन प्रांत में भड़की हिंसा के बाद से ही रोहिंग्या शरणार्थियों का बंग्लादेश में पलायन शुरू हो गया था और अब तक साढ़े छह लाख से अधिक शरणार्थी पलायन कर चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र दोनों सरकारों पर रोंहिग्या शरणार्थियों के संकट का दीर्घकालिक समाधान ढूंढने के लिए जोर दे रहा है. लेकिन अभी तक कोई पुख्ता समाधान सामने नहीं आ रहा है. मौजूदा हालात इसकी इजाजत नहीं दे रहे हैं. सच तो यह है कि म्यांमार लौटना रोंहिग्याओं के लिए अब भी बहुत मुश्किल नजर आ रहा है. तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि जैसे-जैसे रोहिंग्या शरणार्थियों की अपने घर म्यांमार लौटने में देरी हो रही है, वैसे-वैसे उनका शिविरों में रहना नारकीय बनता जा रहा है.
विशेषतौर पर लाखों महिलाओं व बच्चों का जो म्यांमार से बौद्ध दहशतगदरे से बचकर आ गए लेकिन अब उन्हें बांग्लादेश में नये दुश्मनों का सामना करना पड़ रहा है. म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित रोंहिग्या मुसलमानों के शिविर तमाम बुनियादी सुविधाओं जैसे खुराक और पानी से वंचित है. ऐसे में चंद रोटी के टुकड़ों के बदले रोंहिग्या मुस्लिम महिलाओं की इज्जत नीलाम हो रही है. समाचार एजेंसी रायटर की रिपोर्ट के अनुसार रोहिंग्या मुसलमान जो 90 के दशक में म्यांमार से बांग्लादेश पलायन कर गए थे और जो पहले से कायम शिविर में रह रहे हैं, उनकी बेबस व गरीब महिलाएं तो अपनी इज्जत पहले से बेच रही थीं और अब म्यांमार से साढ़े छह लाख मुसलमानों के आने से बांग्लादेश में जिस्मफरोशी का व्यापार करने वाले भेड़ियों को नया शिकार उपलब्ध करा दिया गया है. बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों से मानव तस्करी का सिलसिला भी जारी है और अब तक हजारों शरणार्थी लड़कियां मानव तस्करी के इस घिनौने धंधे का शिकार हो चुकी हैं. शरणार्थी शिविरों में बाहर से लोग आते हैं और रोहिंग्या शरणार्थी की बेटियों को काम देने के बदले रकम अदा करने का वायदा करते हैं. यहां आने वाले पुरुष एक खास आयु की लड़कियों का चयन करते हैं और उनके मां-बाप को हर लड़की के लिए 60 डालर देते हैं. यहां आने वाले पुरुष कहते हैं कि उन्हें 12 से 14 साल की लड़कियां इसलिए चाहिए क्योंकि उन्हें घरेलू काम करने में मुश्किल होती है. संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल कोष (यूनिसेफ) ने खबरदार किया है कि बांग्लादेश में विस्थापना के बाद लगभग पांच लाख बच्चों की हालत ‘भयावह’ है. आशंका जताई जा रही है कि इन्हें बच्चों की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. बीमारी, बाढ़, भस्खलन और एक बार फिर से विस्थापन झेलना पड़ सकता है. ‘डिप्थेरिया’ के तकरीबन चार हजार संदिग्ध मामले सामने आए हैं. ऐसे ही शरणार्थी शिविरों में रह रहे पांच लाख बच्चों में से 40 हजार बच्चे यतीम हैं. इन बदनसीब बच्चों को रोहिंग्या समुदाय के बर्बर दमन के दौरान अपने माता-पिता की जान से हाथ धोना पड़ा था. इनमें से ज्यादातर बच्चे जबर्दस्त कुपोषण के शिकार हैं.
अंत में यही कहा जा सकता है कि मौजूदा हालात में अभी तक एक लंबे समय तक रोहिंग्या मुसलमानों की म्यांमार में लौटने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है. उन्हें अभी बंगलादेश के शिविरों में रहना होगा. 90 के दशक में जो रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश पलायन कर गए थे, वे अभी भी शिविरों में रह रहे हैं और वापस जाना ही नहीं चाहते. यही हाल मौजूदा साढ़े छह लाख रोहिंग्या मुसलमानों का है, जो गत अगस्त के बाद पलायन करके बंगलादेश आए हैं. इसलिए बांग्लादेश सरकार की इन शरणार्थियों को जीवन की बुनियादी सहूलियतें उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी बढ़ गई है. विश्व बिरादरी की भी नैतिक जिम्मेदारी है कि वे न केवल महिलाओं व लावारिस बच्चों के लिए जो इन शिविरों में रह रहे हैं बल्कि सबकी भरपूर मदद करें और इनको भूख, बीमारी, हिंसा और महिलाओं को जिस्मफरोशी व मानव तस्करी से बचाएं.
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