ग्रामीण इलाके : कठिन है डिजिटलीकरण की राह

Last Updated 25 Jan 2018 05:37:21 AM IST

आधार एनेब्ल्ड पेमेंट सर्विस (एईपीएस) सेवा की शुरुआत देश में की जा चुकी है. इस सेवा का सबसे ज्यादा विस्तार ग्रामीण इलाकों में हुआ है, जिसके कारण यहां डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में तेजी भी आई है.


ग्रामीण इलाके : कठिन है डिजिटलीकरण की राह

नवम्बर,2016 में एईपीएससे 12.06 लाख रुपये का लेनदेन किया गया था, जो अक्टूबर,2017 में बढ़कर 29.08 लाख रुपये हो गया. आधार एप की मदद से बायोमेट्रिक रीडर और हाथ की अंगुली की मदद से किसी भी बैंक खाताधारी, जिनका खाता आधार से जुड़ा है को कहीं भी भुगतान किया जा सकता है.
भले ही नोटबंदी के बाद डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई है. फिर भी ग्रामीण इलाकों में इसकी राह आसान नहीं है. ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’’ द्वारा 14 से 18 वर्ष के युवाओं के बीच कराये गये सर्वेक्षण ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2017 में कहा गया है कि लगभग 60 प्रतिशत ग्रामीण युवाओं ने कभी कंप्यूटर या इंटरनेट का उपयोग नहीं किया है, वहीं 57 प्रतिशत एक साधारण गणितीय सवाल को भी हल नहीं कर सकते हैं.
40 प्रतिशत युवाओं को घंटे एवं मिनट में समय बताना नहीं आता है. लगभग 14 प्रतिशत पैमाने की मदद से माप करना नहीं जानते नहीं हैं. सर्वेक्षण मेँ यह भी पाया गया कि केवल 54 प्रतिशत ही खाने के पैकेट पर लिखे चार निर्देशों में से तीन को पढ़ पाए. किसी उत्पाद की कीमत पर छूट देने के बाद उसका मूल्य क्या होगा को केवल 38 प्रतिशत ही बता पाए. 18 प्रतिशत युवा ही कर्ज चुकाने के प्रश्नों को हल करने में समर्थ थे. सर्वे में 8 साल या उससे अधिक समय तक शिक्षा प्राप्त करने वाले और उससे कम समय तक शिक्षा प्राप्त करने वालों के ज्ञान में भारी अंतर पाया गया, जो यह बताता है कि शिक्षा के अधिकार योजना ने ज्ञान बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि पहले समूह में से 46 प्रतिशत गणितीय सवालों को हल करने में समर्थ थे, जबकि दूसरे समूह में से केवल  29 प्रतिशत.

इसी तरह, पहले समूह में से 63 प्रतिशत छोटे-छोटे वाक्य सही तरीके से पढ़ने में समर्थ थे, जबकि दूसरे समूह में से केवल 36 प्रतिशत. प्रथम संस्था की मुख्य कार्याधिकारी रुक्मणी बनर्जी के अनुसार ‘शिक्षा का अधिकार कानून’ का वर्ष 2009 में आगाज किया गया था. अब आठ सालों बाद यानी वर्ष 2017 में इस कानून के तहत दाखिला लिये छात्रों ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की है. ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा ने युवाओं की क्षमताओं को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा 8 पास करने वाले छात्रों की संख्या 2004 के 1.1 करोड़ से बढ़कर 2014 में दोगुनी 2.2 करोड़ हो गई.
सर्वे में शामिल 74 प्रतिशत युवाओं का बैंक खाता है. 51 प्रतिशत इन खातों का उपयोग जमा एवं निकासी में कर रहे हैं. 15 प्रतिशत एटीएम का इस्तेमाल कर रहे हैं तो 5 प्रतिशत से भी कम इंटरनेट बैंकिंग का उपयोग कर रहे हैं. कम साक्षरता दर वाले मध्य भारत के जिलों में काफी कम संख्या में युवा रुपये गिनने या जोड़ने में सक्षम थे. रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में लगभग 12 करोड़ युवा 14 से 18 वर्ष के उम्र के हैं. यह सर्वेक्षण 24 राज्यों के 26 ग्रामीण जिलों में 28,000 से अधिक युवाओं पर किया गया और सर्वे के पैमानों को 4 क्षेत्रों यथा गतिविधि, क्षमता, जागरूकता और आकांक्षाओं में बांटा गया और पुनश्च: सटीक गणना के लिए नामांकन, गणितीय गणना, समझने की क्षमता, कंप्यूटर ज्ञान आदि को सर्वे का आधार बनाया गया.
एएसईआर सर्वे का यह 13वां वर्ष था, जो देश में शिक्षा के स्तर की जमीनी हकीकत से अवगत कराता है. कहा जा सकता है कि डिजिटल लेनदेन करने के लिए थोड़ी समझ की जरूरत तो अवश्य है, लेकिन यह रिपोर्ट सरकारी दावों को आईना दिखा रहा है. सामान्य गणित की समझ प्रत्येक बच्चे और युवा के लिए आवश्यक है, लेकिन ग्रामीण इलाकों के अधिकांश बच्चों एवं युवाओं में एक सामान्य समझ भी देखने में नहीं आ रही है. ऐसे में पूरे देश में डिजिटलीकरण की बात करना निश्चित रूप से बेमानी है.

सतीश सिंह


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