वैश्विकी : अबकी गणतंत्र पर आसियान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वैश्विक मोर्चे पर नये-नये अन्वेषण करने में माहिर हैं. इस मायने वह भारत के प्रयोगधर्मी नेता के रूप में अपने को स्थापित कर चुके हैं.
वैश्विकी : अबकी गणतंत्र पर आसियान |
अपनी इस प्रयोगधर्मिता को एक नया आयाम देते हुए उन्होंने इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर ब्रूनेई, फिलीपींस, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलयेशिया, वियतनाम, सिंगापुर, म्यांमार, थाईलैंड और लाओस के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया है. ये सभी आसियान के सदस्य देश हैं. इन सभी राष्ट्राध्यक्षों ने प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार भी कर लिया है, जो क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत की पहचान की तसदीक करता है. यहां यह उल्लेखनीय है कि वह अपने शपथग्रहण समारोह के मौके पर सार्क देशों के शासनाध्यक्षों और राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर एक नई परम्परा के सूत्रपात कर चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी इस पहलकदमी से एक्ट ईस्ट पॉलिसी को जमीन पर उतार कर एक नया आयाम देने की कोशिश की है, जिसके दूरगामी सार्थक परिणाम आएंगे. गणतंत्र समारोह में आसियान देशों के 10 राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित करके प्रधानमंत्री इन देशों के साथ महज आर्थिक रिश्ता ही मजबूत करना नहीं चाहते हैं, बल्कि इसके और आगे जाकर वह इस क्षेत्र में भारत को मुख्य सुरक्षा संतुलनकारी शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं.
आजादी के बाद भारत अपनी घरेलू परेशानियों, और पड़ोसी पाकिस्तान के साथ सीमा-विवाद के कारण दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से अलग-थलग रहा. लेकिन गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रमुख देश रहने के कारण बहुत से देशों के साथ संपर्क स्थापित करने का उसे अवसर मिला. इस दौरान पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ भारत का सम्पर्क बढ़ा. हालांकि सोवियत संघ के साथ भारत की मित्रता से इंडोनेशिया, मलयेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर और फिलीपींस नई दिल्ली से छिटक गए, क्योंकि ये सभी देश साम्यवाद के विरोधी थे. सोवियत संघ के बिखरने ओैर शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को सामरिक महत्त्व समझ में आया. 1991 में तात्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने अपनी विदेश नीति में पहली बार ‘लुक इस्ट पॉलिसी’ को शामिल किया. अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने इसे आगे बढ़ाया और अब प्रधानमंत्री मोदी ‘लुक इस्ट’ से आगे बढ़कर ‘एक्ट इस्ट’ को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना चाहते हैं.
भारत आसियान देश का सदस्य नहीं है. हालांकि इनकी भू-राजनीतिक सामरिक स्थिति के कारण इन देशों के साथ मजबूत रिश्ता रखना चाहता है. दरअसल, भौगोलिक रूप से आसियान देश चीन और भारत दोनों के करीब हैं. लेकिन सांस्कृतिक रूप से वियतनाम को छोड़ कर शेष सभी आसियान देश भारत के ज्यादा करीब हैं. प्राचीन काल में भारत का इन देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक रिश्ते रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ मजबूत रिश्ता बना कर इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को रोकना भी चाहते हैं. दरअसल, भारत की ‘लुक इस्ट’ और ‘एक्ट इस्ट पॉलिसी’ आसियान देशों के साथ आर्थिक, व्यापारिक और रणनीतिक रिश्ता बनाने पर जोर देता है. प्रधानमंत्री मोदी इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
| Tweet |