निवेश का माहौल तो बने
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विगत सप्ताह देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में प्रमुख उद्योगपतियों को अपने राज्य में करने निवेश करने का न्योता देने गये.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो) |
ऐसे में योगी जी उसी दिशा में चल पड़े हैं, जिस पर हरेक मुख्यमंत्री और सरकार को चलना ही चाहिए. कोई भी प्रदेश निजी क्षेत्र के निवेश के बिना चौतरफा विकास कर ही नहीं सकता. आपको देसी-विदेश निवेश तो आकर्षित करना ही होगा. इसी क्रम में आपको अपने राज्य में निवेश का अनुकूल वातावरण भी बनाना होगा, ताकि प्राइवेट सेक्टर का निवेश भी खुलकर आए. ये अपने आप में सुखद है कि अब अधिकतर राज्य अपने यहां निवेश लाने के लिए तगड़ी पहल कर रहे हैं. इनमें एक तरह से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी है. इसका निश्चित तौर पर स्वागत तो होना ही चाहिए.
जाहिर सी बात है कि जो राज्य जितने ठोस कदम उठाएंगे निवेश को खींचने के लिए, उन्हें उतना ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और देश के अंदर से ही प्राइवेट सेक्टर का निवेश भी मिलेगा. यों तो, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के क्रमश: मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और के. चंद्रशेखर राव में एक अद्भुत समानता भी है. ये दोनों अपने-अपने प्रदेश में निवेश लाने के लिए लगातार प्रयासरत रहते हैं. और, महाराष्ट्र और गुजरात तो परम्परागत रूप से देश के दो इस तरह के राज्य हैं, जहां पर निवेश का वातावरण शुरू से ही रहा है.
दरअसल, भारत की औद्योगिक और आर्थिक प्रगति का रास्ता इन दोनों ही राज्यों से होकर गुजरता है. इस बीच,भारत सरकार का डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) हर साल एक सूची जारी करने लगा है जो यह बताता है कि देश के कौन से राज्य बिजनेस करने के लिहाज से उत्तम हैं. इस पूरी कवायद के पीछे एक मात्र लक्ष्य, राज्यों के बीच निवेश और विकास को लेकर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है. इस सूची में वे ही राज्य आगे निकल रहे हैं, जहां पर औद्योगिक उपयोग के लिए जमीन की उपलब्धता है, लैंड रिकॉर्डस का कंप्यूटरीकरण हो चुका है, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में कमर्शियल विवाद के लिए ई फाइलिंग की व्यवस्था है, कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक है , वगैरह-वगैरह.
लेकिन उत्तर प्रदेश में उद्यमियों की सबसे बड़ी चिंता राज्य में क़ानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार को लेकर है. दुर्भाग्य रहा उत्तर प्रदेश का कि कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल के बाद गुंडागर्दी आम बात हो गई और सरकारी अफ़सरों तथा सरकारी पार्टियों के नेताओं द्वारा लूट की राशि बढ़ती ही गई. उत्तम प्रदेश को 'उलटा प्रदेश' बनाकर रख दिया विगत दो दशकों के शासकों ने. ऐसा भी नहीं है कि निवेशकों के बजट में 'चन्दा' और 'सुविधा शुल्क' का प्रावधान नहीं होता. जरूर होता है. लेकिन, दाल में नमक के बराबर! असीमित नहीं. अब कोई दाल से •यादा नमक ही मांगने लगे तो क्या अंजाम होगा? उत्तर प्रदेश भुगत रहा है, सबकी आंखों के सामने है यह!
अगर उत्तर प्रदेश में निवेश की संभावनाओं पर ग़ौर करें तो इतना स्पष्ट है कि अगर प्रदेश सरकार निवेश करने की उत्सुक कंपनियों को तुरंत भूमि का अधिग्रहण करने में मदद करेगी, पर्यावरण अनुमति दिलवाने में विलंब नहीं करेगी, श्रम कानूनों का भ्रष्टाचार रहित अनुपालन होगा, इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी बिजली, पानी, सड़क और कुशल कामगारों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की जाएगी और कर पण्राली की प्रक्रिया को सरल किया जाएगा तो राज्य में मोटा निवेश आने लगेगा. ये कारक तो सभी राज्यों पर लागू होते हैं.
एक बात तो समझ ही लेनी चाहिए कि हरेक कारोबारी का लक्ष्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना ही होता है. अधिक लाभ के लिए भारतीय कंपनियां हों या विदेशी सभी यही करने लगी हैं. बिहार में सत्तर के दशक में डॉ. जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्रित्व में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक विकास के लिए पांच औद्योगिक विकास प्राधिकरण बने थे. ये पटना, मुजफ्फरपुर, बोकारो, रांची और आदित्यपुर (जमशेदपुर) में बनाई गई थीं. इनमें से तीन तो झारखण्ड में चली गई. बिहार की दो अथॉरिटी पटना और मुजफ्फरपुर भी बंद प्राय हो गई हैं. इसलिए निवेशक भी भाग गए. अब पटना औद्योगिक क्षेत्र की ज़मीन पर कहीं फि़ल्म निर्माता प्रकाश झा मॉल, होटल और मल्टीप्लेक्स खोल रहे हैं तो कहीं स्कूल खुल रहे हैं तो कहीं गाड़ियों के शो रूम. राज्य सरकार को अब राज्य में निवेश के नए सिरे से उपाय खोजने होंगे.
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