अमेरिका : पाकिस्तान पर कसता शिंकजा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अगस्त, 2017 में अपनी दक्षिण एशिया नीति की घोषणा करने के दौरान स्पष्ट किया था कि पूर्व के अन्य राष्ट्रपतियों के विपरीत वह पाकिस्तान द्वारा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों को दी जा रही पनाह के मामले में चुप नहीं बैठेंगे.
अमेरिका : पाकिस्तान पर कसता शिंकजा |
तब से अब तक पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी दृष्टिकोण में रत्ती भर फर्क नहीं आया है. कहना अतिश्योक्ति न होगी कि ट्रंप का पाकिस्तान पर शिंकजा कसता जा रहा है. हाल में अपनी पहली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की घोषणा करते हुए ट्रंप प्रशासन ने कहा कि पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया गया है कि अमेरिका पाकिस्तान से सहयोग की आकांक्षा रखता है, और उसकी जमीन से सक्रिय आतंकवादी संगठनों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई चाहता है.
बीती 18 दिसम्बर को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में अनेक सक्रिय अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों की पाकिस्तान में उपस्थिति, जिसे अमेरिका और उसके मित्र देशों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया गया है, के अतिरिक्त पाकिस्तान के नाभिकीय हथियारों और उनसे जुड़ी तकनीक के सुरक्षित संरक्षण/प्रबंधन का प्रश्न भी उठाया गया है. इस नई रणनीति में दक्षिण एशिया में अमेरिकी प्राथमिकताओं को भी काफी हद तक स्पष्ट कर दिया गया है, जिसके केंद्र में अमेरिका और मित्र देशों की सुरक्षा-चिंता बढ़ाने वाले आतंकी खतरों से लोहा लेना, पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद से जन्मे सैन्य और नाभिकीय संघर्ष की संभावनाओं को खत्म करना तथा नाभिकीय शस्त्रों और तकनीक तक आतंकवादियों की पहुंच रोकना है. इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उठाए जाने वाले कदमों में मुख्य रूप से भारत के साथ रणनीतिक सहयोग बढ़ाना, हिन्द महासागर तथा सीमावर्ती क्षेत्र में भारत के नेतृत्व को समर्थन देने के साथ-साथ पाकिस्तान पर आतंकवाद विरोधी अभियान को तेज करने के लिए दबाव डालना और नाभिकीय हथियारों की सुरक्षा प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित करना शामिल हैं.
अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के दक्षिण एशियाई पहलू से पर्याप्त संकेत मिलते हैं कि हिन्द महासागर और सीमावर्ती क्षेत्र में भारत के अलावा किसी और देश (चीन) के हस्तक्षेप या उसकी बढ़ती उपस्थिति को ट्रंप प्रशासन स्वीकार नहीं करेगा. अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेन्स ने भी अपने अप्रत्याशित अफगानिस्थान दौरे के दौरान 21 दिसम्बर को बगराम एयरफील्ड में सैनिकों को संबोधित करते हुए पाकिस्तान को चेताया कि आतंकवादी संगठनों की सुरक्षित शरणगाह न बने.
गौरतलब है कि चीन दक्षिण एशिया में अपनी अवस्थिति को सुदृढ़ करने को प्रयासरत है. पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे तथा उससे संबंधित अन्य परियोजनाओं में अब तक वह लगभग 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर चुका है. इन परियोजनाओं के केंद्र में पाकिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह को चीन के जिनिजयांग प्रांत के काशगर शहर से जोड़ना है. बहुत से विश्लेषकों का मानना है कि चीन के लिए इन परियोजनाओं का आर्थिक कम सामरिक महत्त्व अधिक है. इनके माध्यम से वह हिन्द महासागर में न केवल पहुंच सुनिश्चित करने की कोशिश में है, बल्कि भारत के अब तक के एकाधिकार को चुनौती भी दे रहा है. ऐसे समय में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में हिन्द महासागर तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत के नेतृत्व को समर्थन देना अपने आप में अभूतपूर्व है. पाकिस्तानी सत्ता की केंद्रीय संस्थाओं विशेषकर पाकिस्तानी सेना, जो नवाज शरीफ के पद से हटने के बाद सत्ता पर काबिज दिख रही है, से इस पर प्रतिक्रिया स्वाभाविक था. मेजर जनरल आसिफ गफूर, आईएसपीआर महानिदेशक, ने कैपिटल टेलीविजन के टॉक शो में इस मामले में प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि पाकिस्तान ने अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान में रखते हुए आतंकवाद-विरोधी युद्ध, जो उस पर थोपा गया था, लड़ा न कि अमेरिकी पैसे के लिए. पाकिस्तान ऐसे किसी भी निर्णय को नामंजूर कर देगा जो उसके राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं होगा. वहीं पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया में अमेरिकी नीतियों की आलोचना की. अमेरिकी प्रशासन के आरोपों को बेबुनियाद और जमीनी सच्चाई को झुठलाने वाला बताया. 19 दिसम्बर को जारी इस प्रतिक्रिया में पाकिस्तान को राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का शिकार बताते हुए अप्रत्यक्ष रूप से भारत और अफगानिस्तान पर अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाया गया. अमेरिका द्वारा हिन्द महासागर और सीमावर्ती इलाकों में भारतीय नेतृत्व को समर्थन देने के फैसले से उपजी उद्विग्नता की झलक उस तथ्य से भी मिलती है, जिसमें कहा गया है, ‘देश अपने रचनात्मक योगदानों के आधार पर क्षेत्रीय या वैश्विक ताकत के रूप में उभरते हैं. यह किसी देश (अमेरिका) के ऊपर नहीं होता कि किसी दूसरे देश (भारत) को इस दरजे से नवाजे.’
यद्यपि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की पाकिस्तान ने सार्वजनिक तौर पर कड़ी आलोचना की है, लेकिन इसके नुकसान और उसकी भरपाई के संभावित कदमों पर चर्चा के लिए 21 दिसम्बर को नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक बुलाई गई जिसमें प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, आंतरिक मामलों के मंत्री समेत तीनों सेनाओं के अध्यक्ष, आईएसआई महानिदेशक, स्ट्रेटेजिक प्लांस डिवीजन के महानिदेशक और अन्य आला आधिकारी मौजूद थे. बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण का जायजा लेने के अतिरिक्त पाकिस्तान के न्यूक्लियर सेक्योरिटी रिजीम की विस्तारपूर्वक समीक्षा की गई. यह स्पष्ट किया गया कि पाकिस्तान किसी भी तरह की आक्रामकता/अतिक्रमण से निपटने की क्षमता रखता है. यह भी कहा गया कि वह हमेशा फुल स्पेक्ट्रम डिटरेन्स बनाए रखेगा. इस बदलती हुई भू-राजनीतिक परिस्थिति में अमेरिका अपने कहे पर अडिग रहता है, और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के दक्षिण एशियाई पहलू पर बाकायदा अमल करता है, तो भारत को निश्चित तौर पर लाभ होगा. कहना यह कि भारत के नीति-निर्माताओं को इस पक्ष पर न केवल ध्यान देने की जरूरत है, बल्कि इस सुअवसर का अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप समुचित दोहन करने की ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए.
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