भ्रष्टाचार : चौंकाती है तंत्र की अनदेखी

Last Updated 26 Dec 2017 05:33:34 AM IST

जरा सोचिए कि आपकी रक्षा का दावा करने वाला ही अगर आपकी झूठी मौत का दावा करे तो इसे क्या कहेंगे?


भ्रष्टाचार : चौंकाती है तंत्र की अनदेखी

सोचिए कि शिकायत निपटाने का दावा करने वाला तंत्र ही अगर प्रक्रियाओं की अनदेखी करे तो उसकी विश्वसनीयता पर भरोसा कौन करेगा? दरअसल, दिल्ली पुलिस द्वारा सीसीटीवी खरीदने में कथित घोटाले की बात सामने आई है. आरोप है कि 45 हजार का सीसीटीवी 6 लाख से भी ज्यादा कीमत में खरीदा गया. लिहाजा, मुश्किल से 3309 सीसीटीवी कैमरों की जो खरीद 15 करोड़ रुपये में हो जानी चाहिए थी, वो खरीद 227 करोड़ में हुई.
हैरानी की बात यह है कि पीएमओ में इसकी शिकायत करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता हरपाल राणा को दिल्ली पुलिस ने यह कह कर मानसिक तौर पर बीमार बता दिया कि वह बेटे की मौत के सदमे में हैं. विडंबना तो देखिए कि पीएमओ ने बिना किसी जांच के सच मानकर शिकायत को रद्द भी कर दिया. लेकिन, बाद में दिल्ली पुलिस की दलील झूठी साबित हुई. दरअसल, हरपाल के पुत्र अभी भी जिंदा हैं. इस मामले से कई सवाल खड़े होते हैं. पहला, अपराधियों पर शिंकजा कसने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है, लेकिन पुलिस ही अगर अपराधियों जैसा बर्ताव करे तो लोग जाएं किसके पास? लोग भ्रष्टाचारियों की शिकायत लेकर पुलिस के पास जाते हैं, लेकिन अगर पुलिस ही भ्रष्टाचारी निकल जाए तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा कैसे?

दूसरा, 80 प्रतिशत शिकायत निपटाने का दावा करने वाला पीएमओ अगर जांच में इतनी बड़ी चूक करेगा तो लोगों के पास कौन सी उम्मीद बचेगी? क्योंकि, जब पीएमओ के स्तर पर इतनी बड़ी लापरवाही हो सकती है, तो बाकी संस्थानों की हालत क्या होगी? क्या पीएमओ को शिकायतकर्ता के स्तर पर भी जांच नहीं करनी चाहिए थी? क्या पीएमओ जैसी संस्था द्वारा एकतरफा जांच करके मामले को रफा दफा कर देना, उसकी विसनीयता पर सवाल खड़े नहीं करता है? सवाल यह भी है कि आरटीआई द्वारा हासिल दस्तावेज पर पीएमओ ने गौर न करके दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट को ही क्यों माना? ये कुछ ऐसे सवाल हैं,  जो पीएमओ के अधिकारियों की नीयत पर भी सवाल करते हैं. जाहिर है कि इन सभी पहलुओं की गंभीरता से जांच होनी चाहिए. दरअसल, हमें इस मामले की गंभीरता को समझना होगा. पुलिस द्वारा भ्रष्टाचार और जांच को भटकाने जैसे मामले लोगों में यह डर पैदा करने के लिए काफी है, न जाने कब, कौन पुलिस का शिकार हो जाए. फिर लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के बजाय उसके साथ सामंजस्य स्थापित करना शुरू कर देंगे. पुलिस की यह बदनीयती हमारे समाज को खोखला कर देगी. फिर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं देश के लिए नासूर बन जाएंगी. हालांकि, भ्रष्टाचार अभी भी इस देश के लिए सबसे बड़ी समस्या है. लेकिन, पुलिस जैसी संस्था ही इसमें संलिप्त पाई जाएगी तो भ्रष्टाचार उन्मूलन की उम्मीद भी बेमानी होगी.
सवाल यह भी है कि अगर शिकायतकर्ता को इस प्रकार पागल  घोषित कर दिया जाए तो कोई भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश कैसे करेगा? गौर कीजिए कि अगर हर विभाग में ही शिकायतकर्ता के खिलाफ इस प्रकार साजिश होने लगे तो सिस्टम कैसे चल पाएगा? अनियमितताओं की शिकायत और उस पर संज्ञान लेना गड़बड़ियों पर अंकुश लगाने का बेहतर तरीका है, लेकिन सरकारी महकमों द्वारा ही इसमें शिथिलता बरतने से भ्रष्टाचार रुकेगा कैसे? सरकार को सोचना होगा कि कानून व्यवस्था को कायम रखने वाली संस्था की इस कथित धांधली को रोका कैसे जाए? दिल्ली पुलिस के इस कृत्य ने पूरे पुलिस महकमे पर सवालिया निशान लगा दिया है.
पुलिस विभाग को भी सोचना होगा कि इस प्रकार की अनियमितताओं से विभाग की छवि खराब होती है. इस प्रकार की गड़बड़ियां कानून-व्यवस्था को बनाए रखने में बहुत बड़ी रुकावट हैं. इससे पुलिस का नैतिक पतन तो होगा ही, सामाजिक स्तर पर भी सौहार्द को कायम करना भी मुश्किल होगा. इसलिए अगर यह मामला रिवायत में तब्दील हो गया तो लोगों की नजरों में कानून-व्यवस्था की अहमियत खत्म हो जाएगी. बहरहाल, सरकारी तंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार को भी गंभीर पहल करनी होगी और इस प्रकार के भ्रष्टाचार के मामले पर कठोर कार्रवाई कर सख्त संदेश देना होगा ताकि इस प्रकार की गड़बड़ियां विभागों की छवि को दागदार न करें.

रिजवान अंसारी


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