टू जी घोटाला : कौन सच्चा, कौन झूठा!

Last Updated 23 Dec 2017 03:56:06 AM IST

देश के आर्थिक घोटालों का सरताज कहे जा सकने वाले टू जी स्पेक्ट्रम नीलामी मामले का जो कानूनी अंजाम 21 दिसम्बर को आया उससे देश हैरान है.


टू जी घोटाला : कौन सच्चा, कौन झूठा!

कानून और अदालतों के सच और विद्रूप पर बनी फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ के गुगगुदाते संवादों से भी ज्यादा दिलचस्प बयानों के साथ जब सीबीआई की विशेष अदालत के जज ओ.पी. सैनी ने फैसला सुनाया तो न सिर्फ सारे अभियुक्तों को एक बार में बरी कर दिया बल्कि सारे मामले को भी रफा-दफा कर दिया. मैं तो छुट्टियों में भी बैठकर सबूत आने का इंतजार करता रहा पर कोई ठोस सबूत न आया जैसा बयान देकर उन्होंने आगे के लिए भी केस को न ठहरने वाला बना दिया है.
महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में 1,76,0000000000 अर्थात एक लाख 76 हजार करोड़ रु पये के घोटाले को जब सीबीआई भारी हंगामे और सीधे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अदालत में ले आई थी तभी यह मामला 30984 करोड रु पये का ही रह गया था. अब न घोटाला हुआ, न पैसों का लेनदेन हुआ, न सरकारी धन की लूट हुई, न किसी को नाजायज लाभ मिला. अदालती फैसले का व्यावहारिक मतलब है कि न तो टू जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में अनियमितता हुआ, न किसी एस्सार ने फर्जी कम्पनियां बनवाकर लाइसेंस हासिल किए, न इस पक्षपात के लिए डी.राजा और कनिमोझी जैसे नेताओं को लाभ पहुंचाया गया, न किसी अधिकारी ने तथ्य छुपाए, न 2000 के रेट पर 2008 में आवंटन हुआ. यह व्यावहारिक मतलब ही है, वरना अदालत ने इन गडबड़ियों की तरफ संकेत किया है, शीर्ष अधिकारियों पर शक किया ह. पर कुल मिलाकर यह मामला टांय-टांय फिस्स हो गया है.

सीबीआई के मनोबल का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है क्योंकि अब असली अपराधी वही बन गई है, जबकि उसने यह काम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से हाथ में लिया था. हालांकि अदालती फैसला आने के बाद हाईकोर्ट जाने की घोषणा की गई है, पर वहां सीबीआई किस तरह से नये सबूत जुटाएगी यह समझना मुश्किल है. और यह बात सरकार के नजरिये पर भी निर्भर करेगी क्योंकि अब उसका स्वार्थ पहले की तरह मामले को तेजी से चलाना और कांग्रेस और उसके राजनैतिक दोस्तों को घेरना नहीं रह गया है. बल्कि जिस द्रमुक के लोगों को मुख्य अपराधी बताया जा रहा था उससे दोस्ती की पहल हो चुकी है. यह फैसला इस नई दोस्ती को मजबूती दे सकता है. जिसे हम आप और दुनिया एक बड़ा आर्थिक अपराध मान रही थी, वह इस फैसले के बाद मुख्यत: एक राजनैतिक मसला बनकर रह जाए तो हैरानी न होगी. अदालत का फैसला आने के आधे घंटे के अंदर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह , वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम समेत सारे प्रमुख कांग्रेसी नेता सामने आ गए, कनिमोझी, के. स्टालिन और ए. राजा जश्न मनाने लगे और केंद्रीय वित्त मंत्री समेत भाजपाई समूह भी मैदान में आ डटा, वह बताता है कि मामले के राजनैतिक लाभ घाटे का हिसाब अभी भी चल रहा है. इसमे वह अन्ना हजारे, प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल नहीं दिखे जिन्होंने इस प्रकरण का पर्याप्त राजनैतिक लाभ लिया पर आखिरी लड़ाई, अर्थात 2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा और नरेन्द्र मोदी के हाथों पिट गए. पर जिस आदमी का मौन सबसे ज्यादा अखर रहा था, वह थे पूर्व महालेखा परीक्षक विनोद राय, जो इस रिपोर्ट देने की मलाई देश के सबसे कमाऊ खेल संगठन का कर्ता-धर्ता बनकर खा रहे हैं.
अब कोई यह हिसाब लगाए कि सरकारी विश्वविद्यालय/अस्पताल में जिस कोर्स/इलाज की फीस दो हजार भी नहीं है वही चीज प्राइवेट संस्थान/अस्पताल में दो लाख में होती है. इस प्रकार सरकार सौ गुने नुकसान पर काम कर रही है. कहना न होगा कि सरकारी नुकसान का हिसाब लगाने का यह तरीका टू जी स्पेक्ट्रम नीलामी या कोयला ब्लाक आवंटन को बहुत बड़ा बना देता है, पर इस चक्कार में जो गड़बड़ हुई, जो अनियमितताएं हुई, जो संसाधनों की लूट-खसोट हुई, वह सवाल पीछे चला गया. अब किसी के लिए भी उसे साबित करके दोषियों को सजा दिलवाना प्राथमिकता नहीं रही. अदालत का काम सबूतों पर चलता है. उस पर किसी का ध्यान ही नहीं रहा.
सीबीआई जैसी एजेंसियों का कसूर है कि उन्होंने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया और वह भी इसी हंगामे और राजनैतिक लड़ाई का उपकरण बन गई. कायदे से उसे प्रशांत भूषण जैसे तेज-तर्रार वकीलों से सहयोग लेकर केस खड़ा करना था. उल्टे राजनैतिक कारणों से उसने ऐसे लोगों को दुश्मन मान लिया. केंद्र की सरकार चला रही भाजपा इसे कांग्रेस को घेरने का उपकरण बनाते हुए मामले को और तेजी से उठाती है या तमिलनाडु की राजनीति में पांव जमाने के लिए  अन्नाद्रमुक की जगह द्रमुक की तरफ मुड़ चुकी उसकी रणनीति इस अदालती फैसले को अपनी नई दोस्ती के लिए इस्तेमाल करेगी यह देखने की चीज होगा. नरेन्द्र मोदी और उनकी टोली 39 सांसदों वाले प्रदेश को जीतने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ेगी. पर जिस सरकार पर टू जी के साथ कॉमनवेल्थ घोटाला, कोलगेट घोटाला, आदर्श सोसाइटी समेट जाने कितने घोटालों का आरोप लगा और जो सबसे बदनाम होकर विदा हुई, उसने हर मामले की जांच की पहल की, अपने मंत्री तक को जेल भेजा, अन्य आरोपितों के खिलाफ भी कार्रवाई की तो भी उसे राजनीतिक पराजय का मुंह देखना पड़ा.
अगले कुछ दिन बहुत दिलचस्प होने वाले हैं. एक तो जिस दिन अदालत का फैसला आया ठीक उसी दिन स्व. जयललिता के आरके नगर निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव था. वहां इस फैसले की गूंज तत्काल सुनाई दी. एक तो देखना होगा कि जयललिता की पारंपरिक सीट किसके हाथ जाती है. तमिलनाडु की राजनीति आज वैसे एक नये मोड़ पर है. भाजपा ही नहीं सभी ‘बाहरी’ दल अपनी जगह तलाश रहे हैं. पर मुल्क की राजनीति भी महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है. गुजरात ने भाजपा को जिताते हुए जो संदेश दिया है, उसमें वह भी ज्यादा मनमानी नहीं कर सकती. टू जी ऐसा मुद्दा है, जिसको भाजपा आसानी से निकलने नहीं देगी. पर अदालत के फैसले के बाद उसे संभाल लेना भी आसान नहीं है.

अरविन्द मोहन


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