ईवीएम : सवाल फिर भी हैं

Last Updated 23 Dec 2017 03:52:39 AM IST

निष्पक्ष चुनाव ही लोकतंत्र की साथर्कता का प्रमुख आधार हैं. विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की चुनावी प्रक्रिया पर इन दिनों एक बार पुन: सवाल उठाए जा रहे हैं.


ईवीएम : सवाल फिर भी हैं

हारे हुए दलों के नेता जीतने वाले दल पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी कराकर ही अमुक दल के प्रत्याशी चुनाव जीते हैं. पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में चुनाव सम्पन्न हुए थे. तब भी यह सवाल उठाया गया था.
पिछले महीने सम्पन्न हुए उत्तर प्रदेश नगर निकाय के चुनावों में भी यह बात उठी थी. तर्क था कि नगर निगम की सोलह में से चौदह सीटें भाजपा को कैसे मिल गई, जबकि नगरपालिका और नगर पंचायतों में अधिकांश जगहों पर भाजपा पराजित हुई है. नगर निगमों के चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से हुए थे, जबकि नगर पालिका और नगर पंचायत के चुनाव बैलेट पेपर से हुए थे. अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम आने के बाद एक बार फिर से ईवीएम पर ऊंगली उठ रही है.  चुनाव आयोग शुरू से ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी को नकारता आ रहा है. बात सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंची थी परन्तु गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले अपनी बात का कोई ठोस आधार नहीं प्रस्तुत कर पाए. ये लोग गड़बड़ी होने के जो आधार दे रहे हैं या जिस तरह की सम्भावनाएं जता रहे हैं, उनसे मशीनों में गड़बड़ी की संभावना न के बराबर ही है. कोई कहता है कि मशीनों को रिमोट कंट्रोल से हैक करके दल विशेष के प्रत्याशी को जिताया जाता है. किसी का कहना है कि मशीनों में पहले से ही इस तरह की सेटिंग कर दी जाती है.

बटन चाहे जो भी दबे वोट भाजपा प्रत्याशी को ही जाता है. तब फिर प्रश्न उठता है कि जहां गैर भाजपा प्रत्याशी विजयी हुए हैं वहां की मशीनों में ऐसा क्यों नहीं हुआ? कुल मिलाकर ईवीएम में गड़बड़ी होने का कोई ठोस आधार अब तक किसी के भी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सका है. दरअसल चुनावों में गड़बड़ी रोकने के लिए ही कभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की परिकल्पना की गई थी. बैलेट पेपर से होने वाले चुनावों में फर्जी मतदान और बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं धीरे-धीरे आम हो रही थीं. कई बार लोग बैलेट बक्स ही उठा ले जाते थे तो कहीं उसमें पानी डाल कर मतपत्र खराब कर दिए जाते थे. जबकि ईवीएम से चुनाव कराने में इस तरह की घटनाएं अब नहीं होती हैं. परन्तु निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए इजाद हुई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन भी अब आरोपों के घेरे में है. यद्यपि मशीन से मतदान शुरू होने से पूर्व सभी प्रत्याशियों के चुनाव अभिकर्ताओं के समक्ष प्रत्येक प्रत्याशी के पक्ष में चार-चार, छह-छह वोट डालकर मशीन का परीक्षण किया जाता है. अभिकर्ताओं की संतुष्टि के बाद ही चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न करायी जाती है. तब फिर वोटिंग मशीन में गड़बड़ी का आरोप किस आधार पर लगाया जा रहा है?
अब प्रश्न उठता है कि ईवीएम में तकनीकी दृष्टि से गड़बड़ी करके क्या किसी प्रत्याशी विशेष के मतों की संख्या वास्तव में बढ़ाई जा सकती है? क्या ऐसा कर पाना सम्भव है? और यदि है तो कैसे? वस्तुत: ईवीएम मशीन में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर प्रणाली के द्वारा ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि कौन सा बटन दबाने से किस प्रत्याशी को वोट प्राप्त होगा? इस तरह से सभी प्रत्याशियों को प्राप्त मतों की संख्या वोटिंग मशीन की मेमोरी में स्टोर होती जाती है. मतगणना के समय मशीन की मेमोरी में स्टोर उक्त संख्या को निकालकर ही प्रत्येक प्रत्याशी के प्राप्त मतों की घोषणा की जाती है. इसका अर्थ यह है कि चुनाव की सम्पूर्ण प्रक्रिया का निर्धारण उक्त कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से ही होता है. तब फिर कोई यह कैसे कह सकता है कि ईवीएम में गड़बड़ी की सम्भावना बिलकुल भी नहीं है. इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि अब तक के चुनावों में गड़बड़ी की ही गई है.
गड़बड़ी करना या न करना यह अलग विषय है परन्तु गड़बड़ी करने की सम्भावना को सिरे से कतई खारिज नहीं किया जा सकता है. क्योंकि सफ्टवेयर बनाने वाला चाहे तो सब कुछ संभव है. इसके लिए उसे अपने सफ्टवेयर में बहुत ही मामूली इंस्ट्रक्शन्स जोड़ने होंगे. परन्तु यह उच्च स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना कदापि सम्भव नहीं है. इसलिए अब इसका निर्धारण चुनाव आयोग को ही करना होगा कि वोटिंग मशीन में भले ही किसी प्रकार की गड़बड़ी न हुई हो परन्तु संदेह की स्थिति भी स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए कतई ठीक नहीं है. यदि बाकी देश ईवीएम छोड़कर बैलेट पेपर के युग में लौट सकते हैं तो फिर भारत क्यों नहीं?

दीप शुक्ला


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