मीडिया : असली हिन्दू, नकली हिन्दू

Last Updated 03 Dec 2017 02:33:24 AM IST

ज्यों ही राहुल ने सोमनाथ मदिर में गैर-हिन्दू दर्शनार्थियों के रजिस्टर में दस्तखत किए त्यों ही भाजपा के नेताओं समेत मीडिया के कई एंकर पूछने लगे कि ‘वे हिन्दू हैं कि नहीं?’


मीडिया : असली हिन्दू, नकली हिन्दू

यह है आज के मीडिया की ‘विभाजनकारी राजनीति’. हम नहीं कहते कि सारा का सारा मीडिया ऐसा करता है, लेकिन हम देखते हैं कि इन दिनों कुछ चैनल और कुछ एंकर अपनी भाषा और प्रस्तुतियों के जरिए जाने या अनजाने धर्मिक किस्म की विभाजनकारी राजनीति के हिस्से बने जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि धार्मिक चैनलों की कमी है. अकेले हिन्दी में ही ऐसे कई ‘धार्मिक चैनल’ हैं, जो दिन-रात धार्मिक प्रवचनों और कार्यक्रमों को दिखाते रहते हैं. उनमें बड़े-बड़े कथावाचक धर्म-कर्म, रीति-नीति आदि के संदेश देते रहते हैं. राम कथा और भागवत कथा कहीं न कहीं होती दिखाई जाती रहती है.
ये चैनल काफी देखे जाते हैं. यहां धार्मिक संदेशों और प्रतीकों का सार्वजनिक प्रसारण होता है. कई खबर चैनलों में तरह-तरह के ज्योतिषी विघ्न नाशक कर्मकांड तथा भविष्य तक बांचते रहते हैं. इन चैनलों को कोई भी देख सकता है. उनमें दिख रहे देवी-देवताओं का कोई भी दर्शन कर सकता है. वे दर्शक से न ‘जाति’ पूछते हैं न ‘धर्म’ पूछते हैं. यह उनका नए किस्म का धर्म-संचार है. धार्मिक कार्यक्रमों के बीच-बीच में निहायत गैर-धार्मिक किस्म के विज्ञापन भी दिए जाते हैं ताकि चैनल आर्थिक रूप से सक्षम रहे. यह इन चैनलों का बिजनेस मॉडल है, जो मूलत: सेक्यूलर है. इन विज्ञापनों का चैनलों के धार्मिक कंटेंट से कोई झगड़ा नहीं दिखता. यहां बिजनेस और धर्म के बीच ‘मैत्री’ रहती है. यह निराले तरीके का धार्मिक संचार है, जो दर्शक की परीक्षा नहीं लेता फिरता कि पहले यह बता तू किस धर्म का है? हिन्दू हैं कि नहीं है?

यों अपना खबर मीडिया भी मूलत: सेक्यूलर मिजाज का है, लेकिन इन दिनों कई बार जाने-अनजाने वह समकालीन विभाजनकारी राजनीति का एक प्रवक्ता-सा बन जाने लगा है. उदाहरण के लिए राहुल गांधी ने सोमनाथ मंदिर में जाकर ‘गैर-हिन्दू’ रजिस्टर पर दस्तखत क्या कर दिए कि हंगामा बरपा हो गया. इससे पहले वे शायद उन्नीस मंदिरों में जा चुके थे. तब उनसे किसी मीडिया ने कोई सवाल नहीं किया, लेकिन सोमनाथ के दर्शन से निकलते ही उनको धार्मिक सवालों के कठघरे में घेर लिया गया.
भाजपा के नेता सवाल पूछते तो पूछते, लेकिन उनसे बढ़कर कई एंकर राहुल गांधी के पीछे ही पड़ गए कि राहुल बताएं कि वे हिन्दू हैं कि नहीं? इससे राहुल के रक्षक इतने रक्षात्मक हो उठे कि उनको जनेऊधारी शिवभक्त सिद्ध करने लगे. कपिल सिब्बल ने प्रतिक्रिया में आगे बढ़कर मोदी के लिए कह दिया कि वे हिन्दू ही नहीं हैं, वह तो हिन्दुत्ववादी हैं! यह दूसरी अति थी. चैनलों पर लाइनें लगने लगीं कि राहुल गांधी धार्मिक राजनीति कर रहे हैं. सांप्रदाियक राजनीति कर रहे हैं. इस विभाजनकारी राजनीति के प्रसारण का एक दूसरा सिरा भी रहा. धर्म के इस खेल के इस सिरे पर मोदी रहे जो गुजरात में ही कई मंदिरों में दर्शनार्थ गए, लेकिन मीडिया ने एक बार भी नहीं पूछा कि उनके जाने से ‘धार्मिक राजनीति’ हुई कि नहीं?
‘असली हिन्दू बरक्स नकली हिन्दू’ के इस कंपटीशन में सर्वाधिक अचरज की बात तब सामने आई जब चैनलों के जरिए हमारे जैसे ‘दर्शक’ को ज्ञान हुआ कि सोमनाथ के मंदिर में दर्शनार्थियों के लिए दो प्रकार के रजिस्टर होते हैं : एक ‘हिन्दू’ के लिए, दूसरा ‘गैर-हिन्दू’ के लिए. और उससे भी अधिक अचरज तब हुआ जब मीडिया मंदिर के व्यवस्थापकों के इस दोहरे रजिस्टर रखने के मानक पर चुप लगाए रहा. याद करें : कल तक जो मीडिया शनि सिंगनापुर मंदिर में स्त्री-पुरुष के बीच बरते जाते भेदभाव के खिलाफ एक आंदोलन को दिखाता रहा और पुजारियों से कठोर सवाल करता रहा, वही सोमनाथ मंदिर में हिन्दू और गैर-हिन्दू के लिए अलग-अलग रजिस्टर रखने की व्यवस्था को लेकर चुप्पी साध गया. क्यों? शायद इसलिए कि अपने सत्ता-प्रेम के चलते मीडिया स्वयं ‘विभाजनकारी राजनीति’ के दबाव में आ गया.
एक वक्त वह था, जब भक्तिकालीन भक्तों और संतों ने सारी कट्टरताओं को पीट-पीट कर किनारे कर दिया था, और ‘हरि को भजै सो हरि को होई’ का नारा पॉप्यूलर कर दिया था, और एक यह दो हजार सत्रह है कि मीडिया ‘असली हिन्दू बरक्स नकली हिन्दू’ जैसे मध्यकालीन मुद्दे को बड़ा मुद्दा बनाए जा रहा है. मीडिया को इस तरह की विभाजनकारी राजनीति को ‘क्रिटीकली’ देखना चाहिए क्योंकि यह बढ़ी तो मीडिया को भी हिन्दू-मुसलमान मीडिया बना डालेगी.

सुधीश पचौरी


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