खतरे में समुद्री जीव-जंतु

Last Updated 20 Nov 2017 05:08:50 AM IST

प्लास्टिक कचरे की समस्या से आज समूचा विश्व जूझ रहा है. इससे मानव ही नहीं बल्कि समूचा जीव-जंतु एवं पक्षी जगत प्रभावित है.


प्लास्टिक कचरे से समुद्री जीव-जंतु खतरे में (फाइल फोटो)

इस पर यदि शीघ्र अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में स्थिति और विकराल हो जाएगी. कहने का तात्पर्य यह कि उस समय स्थिति की भयावहता का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय प्राणी जगत यानी जीव-जंतुओं एवं पक्षियों का अस्तित्व ही समाप्ति के निकट होगा. देखा जाए तो आज प्लास्टिक कचरा पर्यावरण और जीव-जगत के लिए गंभीर खतरा बन चुका है. वैज्ञानिकों के शोध-अध्ययन इसके के प्रमाण हैं.

एक अध्ययन में कहा गया है कि बढ़ते प्लास्टिक कचरे के कारण धरती की सांस फूलने लगी है. सबसे बड़ी चौंकाने वाली और खतरनाक बात यह है कि यह समुद्री नमक में भी जहर घोल रहा है. इससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव अवयंभावी है. इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता. कारण यह है कि प्लास्टिक एक बार समुद्र में पहुंच जाने के बाद विषाक्त पदार्थों और प्रदूषकों के लिए चुम्बक बन जाते हैं. अमेरिका के लोग हर साल प्लास्टिक के 660 से अधिक कण निगल रहे हैं. अध्ययनों ने इसे प्रमाणित भी कर दिया है. यही नहीं असलियत तो यह है कि धरती पर घास-फूस पर अपना जीवन निर्वाह करने वाले जीव-जंतु भी प्लास्टिक से अपनी जान गंवा ही रहे हैं, समुद्री जीव-जंतु, मछलियां और पक्षी भी इससे अपनी जान गंवाने को विवश हैं.

आर्कटिक सागर के बारे में किये गए शोध और अध्ययन और चौंकाने वाले हैं. शोध के अनुसार 2050 में इस सागर में मछलियां कम होंगी और प्लास्टिक सबसे ज्यादा. आर्कटिक के बहते जल में इस समय 100 से 1200 टन के बीच प्लास्टिक हो सकता है जो तरह-तरह की धाराओं के जरिये समुद्र में जमा हो रहा है. प्लास्टिक के यह छोटे-बड़े टुकड़े सागर के जल में ही नहीं पाए गए हैं बल्कि यह मछलियों के शरीर में भी बहुतायत में पाए गए हैं. ग्रीनलैंड के पास के समुद्र में इनकी तादाद सर्वाधिक मात्रा में पाई गई है. इसमें दो राय नहीं कि दुनिया के तकरीब 90 फीसद समुद्री जीव-जंतु-पक्षी किसी न किसी रूप में प्लास्टिक खा रहे हैं. यह प्लास्टिक उनके पेट में ही रह जाती है जो उनके लिए जानलेवा साबित हो रही है.

यह प्लास्टिक प्लास्टिक के थैलों, बोतल के ढक्कनों और सिंथेटिक कपड़ों से निकले प्लास्टिक के धागे शहरी इलाकों से होकर सीवर और शहरी कचरे से बहकर नदियों के रास्ते समुद्र में आती है. समुद्री पक्षी प्लास्टिक की इन चमकदार वस्तुओं को गलती से खाने वाली चीज समझकर निगल लेते हैं. नतीजतन उन्हें आंत से संबंधित बीमारी होती है, उनका वजन घटने लगता है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि बीते कुछ दशकों से समुद्र में फेंके जाने वाले प्लास्टिक से समुद्री जीवों की जान खतरे में आ गई है. अगर जल्दी ही समुद्र में किसी भी तरह से आ रहे प्लास्टिक पर रोक नहीं लगाई गई तो तीन दशकों में पक्षियों की बहुत बड़ी तादाद खतरे में पड़ जाएगी.



आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच का तस्मानिया सागर का इलाका सर्वाधिक प्रभावित इलाका है. पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित अमेरिकी वैज्ञानिक एरिक वैन सेबाइल और क्रिस विलकॉक्स के शोध के मुताबिक 1960 के दशक से लेकर अब तक समुद्र में पक्षियों के पेट में पाए जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा दिनोंदिन तेजी से बढ़ती ही जा रही है.

इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि 1960 में पक्षियों के आहार में केवल पांच फीसद ही प्लास्टिक की मात्रा पाई गई थी. आने वाले 33 सालों के बाद 2050 में हालत यह होगी कि 99 फीसद समुदी पक्षियों के पेट में प्लास्टिक मिलने की संभावना होगी. यदि दुनिया जहां के हालात पर नजर डालें तो पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर पिछले सात दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन कई गुणा बढ़ा है. इस दौरान करीब 8.3 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक उत्पादन हुआ. इसमें से 6.3 अरब टन प्लास्टिक कचरे का ढेर लग चुका है, जिसका महज 9 फीसद ही रिसाइकिल किया जा सका है.

साल 1950 में दुनिया में प्लास्टिक का उत्पादन केवल 20 लाख मीट्रिक टन था, जो 65 साल में यानी 2015 तक बढ़कर 40 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है. हमारे यहां हर साल 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा निकलता है. पूरे देश के हालात की बात तो दीगर है, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें तो दिल्ली में 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा हर रोज फेंका जाता है. दुख इस बात का है कि इस दिशा में सरकारों की बेरुखी समझ से परे है.

ज्ञानेन्द्र रावत


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