वन क्षेत्र : ..तो खत्म हो जाएगा सब कुछ

Last Updated 18 Nov 2017 04:39:24 AM IST

दुनिया के 17 वृहद जैव विविधता वाले देशों में से एक भारत है.


वन क्षेत्र : ..तो खत्म हो जाएगा सब कुछ

इस जैव विविधता का एक मतलब यह है कि इस देश की जमीन पर जंगल हैं और उनमें विविध प्रकार का वन्य जीवन, जड़ी-बूटियां, घने वृक्ष और समूची पारिस्थितिकी मौजूद है. पर जैव विविधता को सहारा देने वाले जंगलों का दायरा हमारे देश में लगातार घट रहा है, जिसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई इलाकों में फैल जाने वाली जहरीली धुंध के रूप में अक्सर दिख जाता है. साफ है कि जैसे-जैसे जंगल घटेंगे, स्मॉग, सूखा, बाढ़ जैसी आपदाओं का दायरा बढ़ेगा.

इधर, ऐसी कई रिपोर्टे आई हैं, जिनसे देश में तेजी से घटते वन क्षेत्रों का पता चलता है. प्रतिष्ठित जर्नल-नेचर की एक ताजा रिपोर्ट कह रही है कि भारत में अब सिर्फ  35 अरब पेड़ बचे हैं. देश की आबादी से तुलना करें तो हर व्यक्ति के हिस्से 28 पेड़ आते हैं. देखने में यह आंकड़ा सुकून देने वाला लग सकता है पर इसमें कुछ पेच हैं. जैसे, ये ज्यादातर पेड़ हमारे शहरों-कस्बों में नहीं, बल्कि जंगलों में हैं और वहां भी उनकी संख्या अवैध कटाई और बांध-सड़क जैसे निर्माण कार्यों आदि कारणों से लगातार घट रही है. भारत से अच्छी स्थिति में रूस (641 अरब पेड़), कनाडा (318 अरब पेड़), ब्राजील (301 अरब पेड़) और अमेरिका (228 अरब पेड़) हैं.

इन देशों में तुलना में हमारे देश की स्थिति इसलिए ज्यादा खराब है क्योंकि एक तरफ वृक्षारोपण बहुत धीमी गति और कई लापरवाहियों के साथ किया जा रहा है और दूसरे, अवैध कटाई का सिलसिला निरंतर जारी है. गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया हर साल करीब 15.3 अरब पेड़ खो रही है, यानी कि प्रति व्यक्ति के अनुसार दो पेड़ से भी ज्यादा का नुकसान हर साल हो रहा है. दूसरी ओर की तस्वीर यह है कि हम बहुत कम संख्या में पौधे लगा रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि सभ्यता की शुरु आत से अब तक पूरी दुनिया में तीन लाख करोड़ से ज्यादा पेड़ इमारती लकड़ी, ईधन और कागज के निर्माण के वास्ते काटे जा चुके हैं. इस तरह जर्नल-नेचर की रिपोर्ट बताती है कि सभ्यता की शुरुआत में जितने पेड़ पृथ्वी पर थे, उनमें अब तक 46 फीसद की कमी आ चुकी है, यानी तकरीबन आधे जंगलों का सफाया हो चुका है. आगे भी कोई राहत भरी खबर बची हुई नहीं है क्योंकि दुनिया में हर साल करीब 10 अरब पेड़ विभिन्न कारणों से काटे जा रहे हैं.

सवाल है कि हर पर्यावरण दिवस और कई अन्य मौकों पर सरकारें विशालकाय वृक्षारोपण कार्यक्रमों का जो आयोजन करती हैं, आखिर उसका हासिल क्या है. जैसे पिछले साल यूपी में 24 घंटे के भीतर पांच करोड़ पौधे लगाने का कीर्तिमान बनाया गया था, उस हिसाब से तो इस राज्य में कुछ तो हरियाली दिखनी चाहिए थी. वृक्षारोपण के साथ योजना थी कि पौधों की सुरक्षा और बढ़वार सुनिश्चित करने के लिए सैटेलाइट सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा. लेकिन यह योजना सिरे ही नहीं चढ़ी, लिहाजा देखरेख के अभाव में कई लाख पौधे तो लगाए जाने के कुछ दिनों में ही खत्म हो गए. बाकी बचे पौधे भी या तो जानवर चर गए होंगे या सूख गए होंगे. अफसोस सिर्फ  यूपी को लेकर नहीं है.

देश के दूसरे राज्यों में भी हालात खराब ही हैं. भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, देश में सघन वनों का क्षेत्रफल घट रहा है. सन 1999 में सघन वन 11.48 प्रतिशत थे, जो 2015 में 2.61 प्रतिशत रह गए. इस कसौटी पर देखें तो 2013 से 2015 के बीच ही मिजोरम में 306 वर्ग किलोमीटर, उत्तराखंड में 268 वर्ग किमी, तेलंगाना में 168 वर्ग किमी, नागालैंड में 78 वर्ग किमी और अरु णाचल प्रदेश में 73 वर्ग किमी वन-क्षेत्र घट गया. इनके अलावा असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और दादर नागर हवेली में भी वन घटे हैं.

कुल मिलाकर देश के 16 राज्यों में जंगल घट गए हैं. सघन वनों को ही वास्तविक जंगल मानना चाहिए क्योंकि वन्यजीवन से लेकर पर्यावरण तक को इन्हीं से कुछ लाभ है. सघन वनों में गिरावट के कारण ही वन्यजीव अपने आश्रय छोड़कर शहरों-कस्बों में घुस रहे हैं, जिससे इंसानों से उनकी मुठभेड़ बढ़ रही हैं. जंगल नहीं रहने पर पर्यावरण क्षति किस तरह हानिकारक हो जाती है, उत्तर भारत की जहरीली धुंध इन दिनों यही साबित कर रही है. मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट‘ के अनुसार, हर साल वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख से ज्यादा भारतीय मारे जाते हैं.

अभिषेक कुमार


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