पाकिस्तान : खतरे में पत्रकारिता

Last Updated 11 Nov 2017 05:45:45 AM IST

पाकिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता के संबंध में अंतरराष्ट्रीय मीडिया एडवोकेसी ग्रुप के रिपोर्टरों द्वारा तैयार वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पाकिस्तान को खतरनाक देशों की सूची में 139वें स्थान पर रखा गया है.


पाकिस्तान : खतरे में पत्रकारिता

पाकिस्तान में पिछले 15 सालों में 100 पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया, जिनमें केवल तीन के हत्यारों की शिनाख्त हुई है. इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि पाक की राजधानी इस्लामाबाद जहां संसद, सर्वोच्च न्यायालय व बड़ी संख्या में पुलिस, सुरक्षाबल और फौज तैनात हैं, इन दिनों पत्रकारों के लिए सबसे असुरक्षित शहर बन गया है.

हाल ही में पत्रकार अहमद नूरानी जो किसी खबर के सिलसिले में रावलपिंडी गए थे, वापसी पर इस्लामाबाद में तीन मोटरसाइकिल सवारों ने उन पर जानलेवा हमला कर दिया. घटनास्थल के निकट ही कुछ पुलिसकर्मी मौजूद थे लेकिन उन्होंने इस पर आंखें मूंद ली और हमलावरों को फरार होने दिया. ऐसे ही इससे पहले इस्लामाबाद में तीन ओर पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया. दरअसल, पाकिस्तान वि में पत्रकारों के लिए सर्वाधिक खतरनाक देशों की सूची में शामिल है, जहां सशस्त्र समूहों, देश की खुफिया एजेंसियों, विशेष तौर पर आईएसआई पत्रकारों के लिए खतरा पैदा करती है.

पत्रकारों को खतरे की एक बड़ी वजह यह है कि निशाना बनाने वालों के खिलाफ बहुत कम मामलों में नाममात्र ही कार्रवाई होती है. कुछ अरसा पहले पाक के खौजी पत्रकार सलीम शहजाद ने लापता होने से दो दिन पहले अपने एक लेख में पाक नौसेना के खुफिया अफसरान का अलकायदा से सांठगांठ का जिक्र किया था जो पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई को नागवार गुजरा और उसके बाद शहजाद की हत्या कर दी गई. इसकी हर तरफ से कड़े शब्दों में निंदा हुई. लेकिन इसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला क्योंकि इसके बाद भी पत्रकारों की हत्या का सिलसिला जारी रहा.

ऐसे ही जब जियो न्यूज ने फौज और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के मानव अधिकारों के उल्लंघन के कई मामलों का साहसिक खुलासा किया तो जियो समूह के एंकर हामिद मीर पर कातिलाना हमला किया गया. इसके पीछे भी आईएसआई का हाथ सामने आया. इन दिनों फिर पत्रकार हामिद मीर पर सन् 2010 में आईएसआई के शीर्ष अधिकारी के अपहरण और हत्या के मामले में कथित संलिप्त होने को लेकर एक मामला दर्ज किया गया है. दरअसल, पाक में पत्रकारों को कई कोनों से खतरे का सामना करना पड़ रहा है. मिसाल के तौर पर बम धमाके की कवरेज के दौरान पाकिस्तानी फौज की नुक्ताचीनी पर फौजी अफसरान या तालिबान की नुक्ताचीनी पर तालीबान की नाराजगी झेलनी पड़ती है और रिपोर्टरों को रिपोर्टिग का खमियाजा भुगतना पड़ता है.

अगर किसी रिपोर्टर की रिपोर्टिग से किसी को यह महसूस होता है कि वह इसका समर्थन नहीं करता या किसी और का समर्थन करता है तो वह मारा जाता है. उन पर यह भी आरोप लगाया जाता है कि पत्रकार दुश्मनों के लिए जासूसी कर रहे हैं. कबाइली क्षेत्र विशेष तौर पर उत्तरी वजीरीस्तान, खैबरपख्तून ख्वा व बलूचिस्तान प्रांतों में रिपोर्टिंग करना सबसे ज्यादा खतरनाक है. इन क्षेत्रों में पत्रकारों को अपनी जान को जोखिम में डालकर काम करना पड़ता है. पाकिस्तानी तालिबान और दूसरे आतंकवादी संगठनों ने इन दिनों पाक सरकार का नाक में दम कर रखा है. पाक तालिबान समझते हैं कि वर्तमान सरकार बहुत कमजोर है और वह इसका फायदा उठाकर पाक में शरीयत का राज कायम करना चाहते हैं. वह पाक के संविधान को नहीं मानते. पाकिस्तान के राजनीतिक हालात इतने खराब हो गये हैं कि शायद अगले साल जून में संसद का जो चुनाव होना है वह भी न हो सके और इससे पहले एक बार फिर फौज सत्ता पर कब्जा कर सकती है.

पाक सरकार तालिबान के साथ शांति वार्ता द्वारा शांति बहाल की बात करते-करते निराश नजर आ रही है क्योंकि तालिबान से बातचीत आगे नहीं बढ़ रही है. देखा जाए तो पाकिस्तान में प्रेस पर अंकुश लगाने का इतिहास बहुत लंबा है. जनरल अयूब के जमाने में पत्रकारों को तरह-तरह की यातनाएं दी गई. जनरल जिया उल हक के जमाने में पत्रकारों को कोड़े मारे जाते रहे हैं. यहां तक की पाक की जनता द्वारा चुनी हुई सरकारों ने भी कुछ ऐसे कानून बनाए, जिससे प्रेस की बुनियादी स्वतंत्रता पर प्रतिकूल असर पड़ा. गरज यहे कि पाक में मीडिया अभी भी स्वतंत्र नहीं है. यही कहा जा सकता है कि पाकिस्तान पत्रकारों के लिए दुनिया में सर्वाधिक खतरनाक देश बन गया है. वि में मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा व मानवाधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाओं को इसका सख्ती से नोटिस लेना चाहिए.

कुलदीप तलवार


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