आधार-पुनर्विचार की दरकार
झारखंड के सिमडेगा जिले की घटना ने पूरे देश को हिला दिया है. खबर यह आई कि एक गरीब परिवार सार्वजनिक जन वितरण प्रणाली से राशन न मिलने के कारण अपनी बच्ची को खाना नहीं खिला सका और वह मर गई.
भूख से बच्ची की मौत. |
मामला सिमडेगा जिले के जलडेगा ब्लॉक स्थित पतिअंबा पंचायत के गांव कारीमाटी का है. मीडिया में मृतका की मां कोयली देवी का जो बयान आया है, उसके अनुसार उसकी बेटी ने 4 दिन से कुछ भी नहीं खाया था. घर में मिट्टी का चूल्हा था, लकड़ियां थीं, लेकिन बनाने के लिए राशन नहीं था. उसके अनुसार 28 सितम्बर की दोपहर भूख की वजह से संतोषी के पेट में तेज दर्द होने लगा. उसे गांव के ही वैद्य को दिखाया था. मृतका संतोषी ने कहा था कि भूख लगी है, कुछ खा लूंगी तो दर्द ठीक हो जाएगा. रात करीब 10 बजे बेटी भात-भात कहकर रोने लगी. उसके हाथ-पैर अकड़ गए थे. उसके बाद मैंने चाय पत्ती और नमक मिलाकर काढ़ा बनाया और बेटी को पिलाना चाहा, लेकिन तब तक उसकी सांसें थम चुकी थीं.
बच्ची की मां का कहना है कि गांव के डीलर ने पिछले आठ महीनों से उसे राशन देना बंद कर दिया था, क्योंकि उसका राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं हो पाया था. कोयली देवी दातून बेचकर परिवार चलाती है. इस दर्दनाक घटना का संक्षिप्त विवरण यहां इसलिए आवश्यक है ताकि हम यह समझ सकें कि सरकारी नियमों के आंच में किस तरह देश की गरीब जनता छटपटा रही है. यह केवल एक बच्ची की मौत का मामला नहीं है. पता नहीं ऐसे कितनी संतोषी इन्हीं कारणों से भूख से बिलबिला रही होगी. अगर मामला मीडिया की सुर्खियां नहीं बनता तो सरकार का और हमारा आपको ध्यान भी इस ओर नहीं जाता.
मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री तक को इसका संज्ञान लेना पड़ा और दोनों स्तरों पर जांच की जा रही है. यह सरकारों के काम करने का तरीका है. जो कुछ सामने दिख रहा है उसमें भी जब तक सरकार के स्तर पर जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती सच कोई स्वीकार नहीं कर सकता. सरकारी तंत्र कैसे काम करता है यह हम सब जानते हैं. सिमेडेगा प्रशासन ने कह दिया है कि उस लड़की की मौत भूख से नहीं, मलेरिया से हुई है. अगर कुछ क्षण के लिए मान भी लिया जाए कि उसकी मौत के पीछे मलेरिया कारण था तो भी इससे इस भयावह सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि उस परिवार को पिछले आठ महीनों से राशन नहीं मिला था.
अब प्रदेश एवं केंद्र सरकार दोनों की ओर से कहा जा रहा है कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि जिसका राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं हो उसे राशन नहीं दिया जाए. यह दावा सफेद झूठ है. केंद्र सरकार ने आधार को जिस तरह से हर कार्य के लिए अनिवार्य कर दिया है वह एक सच्चाई है. केंद्र की ओर से दावा किया जाता है कि राशन कार्ड को आधार से लिंक करने के साथ लाखों राशन कार्ड फर्जी पाए गए और उससे जो सामान गरीबों के नाम पर कालाबाजारी में जा रहा था वह बच गया. इसे सरकार भ्रष्टाचार के विरु द्ध अपनी एक बड़ी सफलता के रूप में पेश करती है. आधार को लेकर ऐसी ही दावे अन्य क्षेत्रों में किए जाते हैं. मसलन, बुजुर्गों के पेंशन में इतना बच गया, विधवा पेंशन में इतना बचा, छात्रों के वजीफे में इतना बचा, गैस सिलेंडर की खपत इतनी कम हो गई आदि-आदि.
वास्तव में केंद्र सरकार ने आधार को परम ब्रह्म जैसा बना दिया है. सरकार मान लेती है कि ऊपर से हमने जो नियम बना दिए वह उसी रूप में ईमानदारी और संवेदनशीलता से लागू हो रहा होगा. आश्चर्य की बात है कि यही सरकार के मंत्रीगण जब विपक्ष में होते हैं तो नीचे स्तर पर भ्रष्टाचार और आम आदमी की कठिनाइयों के लिए आवाज उठाते हैं लेकिन सरकार में आते ही वो बदल जाते हैं. आधार के कारण न जाने कितनी त्रासदियों हो रहीं हैं, लोग छटपटा रहे हैं, अधिकारियों तक अगर संभव हो पाता है तो अपनी शिकायत भी लेकर जा रहे हैं, स्थानीय नेताओं से भी शिकायत करते हैं...लेकिन आधार के बारे में सरकार अपने रुख पर पुनर्विचार करने की जगह उस पर और अडिग दिखाई पड़ती है. सरकार यह समझ नहीं पा रही है जिस आधार को वह परम ब्रह्म बना चुकी है उसके कारण उसके प्रति आम जन में असंतोष बढ़ रहा है, क्योंकि उन्हें अनावश्यक परेशानियों से गुजरता पड़ता है. आधार के कारण देश में न जाने कितने लोगों का वृद्धा पेंशन नहीं मिल रहा है. इसका एक कारण तो सबका आधार कार्ड न बनना है.
दूसरे, आधार कार्ड में नाम और पता में अगर एक वर्ण इधर-से-उधर हो गया या हट गया तो फिर आप मिलने वाले सारी सेवाओं से वंचित. इस समय बैंक में हर खाताधारक को यह संदेश आ रहा है कि आप अपने खाते को आधार से लिंक कराइए. रिजर्व बैंक ने भी इस निर्देश को सार्वजनिक कर दिया है. जिसके पास आधार नहीं उसका अपना ही पैसा उसे नहीं मिलेगा. यह कौन सा नियम है? खाता खोलने के लिए पहले कोई एक खाताधारी की गवाह पर्याप्त होती थी. धीरे-धीरे नियम कड़े किए गए. एक ओर सरकार जनधन खाते को बिना पहचान से खुलवाने का दावा कर रही है वहीं दूसरी ओर बैंकों में खाता रखने को कठिन बना रही हैं. ऐसे लोगों की संख्या हर शहर में है जो कमाते हुए कुछ जमा करना चाहते हैं लेकिन उनका खाता नहीं खुल रहा क्योंकि उनके पास न पैन कार्ड है न आधार कार्ड. भारत में मोबाइल क्रांति इसलिए आई कि आम आदमी के लिए कहीं से सिम लेना आसान था. अब आपके पास मोबाइल नंबर है तो उसे आधार से लिंक करिए नहीं तो मोबाइल बंद हो जाएगा.
भई, यह कौन सा नियम हुआ और इससे मिलेगा क्या? जाहिर है, इसका असर पड़ रहा है. मान लीजिए, देश में 20 करोड़ लोगों के पास भी आधार कार्ड नहीं हैं तो वो सारी सुविधाओं से वंचित. सिमेडेगा की घटना से यह तो साबित हो गया कि देश में अभी भी लोग आधार कार्ड से वंचित हैं. सरकारी विज्ञापनों में आधार कार्ड बनवाना जितना आसान बताया जाता है उतना है नहीं. जो भी हो केंद्र सरकार झारखंड की इस त्रासदपूर्ण घटना को गंभीरता से ले एवं आधार को लेकर अपनी सोच व व्यवहार में परिवर्तन लाए. भ्रष्टाचार से लड़ने के दूसरे तरीकों पर विचार करे. आज का सच यह है कि ‘आधार’ मोदी सरकार की अलोकप्रियता का एक बड़ा कारण बन रहा है.
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