सोशल मीडिया- संयम से निखरेगी छवि

Last Updated 23 Oct 2017 05:44:39 AM IST

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान (आईआईटीटीएम) ग्वालियर के अध्ययन में एक रोचक तथ्य सामने आया है. इसके अनुसार भारत आने वाले 89 फीसद पर्यटक सोशल मीडिया के जरिये ही भारत के बारे में जानकारियां प्राप्त करते हैं.


सोशल मीडिया

यहां तक कि इनमें से 18 फीसद लोगों ने तो भारत आने की योजना तब बनाई जब सोशल मीडिया से प्राप्त कंटेंट ने इनके दिमाग में भारत की बेहतरीन छवि गढ़ी. इस रिपोर्ट से एक बात तो तय हो गई कि सोशल मीडिया देश की छवि को काफी हद तक प्रभावित करने लगा है. इसका प्रमाण इससे भी मिलता है कि विगत कई वर्षो में विदेशी पर्यटकों में लगातार वृद्धि हो रही है.

वर्ष 2014 में 76 लाख, 2015 में 80 लाख तो 2016 में 88 लाख विदेशी पर्यटक भारत आए. इतना ही नहीं देश के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन की हिस्सेदारी 9.6 प्रतिशत है. इससे पता चलता है कि हमारा आदर्श व्यवहार राष्ट्र निर्माण में कितना सहायक हो सकता है. लेकिन आज के युवा वर्ग द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल का तरीका बेहद चिंताजनक है. गौरतलब है कि देश की लगभग 15 करोड़ आबादी सोशल मीडिया से जुड़ी है. मगर विडंबना है कि लोग तथ्यहीन बातों को आधार बनाकर देश की फिजा को बिगाड़ने का काम करते हैं.

पिछले कुछ दिनों में देश के अंदर दंगे की वजह सोशल मीडिया ही थी. ऐसा करके लोग अपने ही देश और समाज के लिए चुनौती बनने का कार्य कर रहे हैं. बंगलादेश और मिश्र में सत्ता परिवर्तन और राजनीतिक परिवर्तन के लिए अरब-स्प्रिंग क्रांति-श्रृंखला के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग क्या हम भूल गए? क्या इस बात की कल्पना भी किसी ने की होगी कि एक युवा सब्जी विक्रेता की आवाज ट्यूनीशिया से अरब के लगभग 15 विभिन्न देशों में पहुंच जाएगी? क्या किसी ने सोचा होगा कि एक बेहद ढांचागत तरीके से दूरदराज के लोगों को क्रांति से जोड़ा जा सकेगा? लेकिन यह संभव हो सका, केवल सोशल मीडिया के कारण.



सरकार के कुशासन और तानाशाही के खिलाफ सोशल मीडिया पर जन सैलाब उमड़ पड़ा और कई देशों के दिग्गज शासकों को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी, साथ ही कितनों को जेल की हवा भी खानी पड़ी.  ऐसे समय में जब लोगों की फेसबुक या ट्विटर प्रोफाइल उनकी नौकरी के जाने या रहने की वजह बन जाए, तब इसकी महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता. सोचिए कि अगर हमारे इस्तेमाल का उद्देश्य केवल नफरत फैलाना ही हो जाए तो, वैिक स्तर पर हमारे देश की कितनी किरकिरी होगी? फेसबुक के अनुसार पिछले वर्ष जुलाई से दिसम्बर तक की अवधि में भारत में 719 आपत्तिजनक कंटेंट्स को हटाया गया. ये वो कंटेंट्स थे, जो उन कानूनों का उल्लंघन करते थे जो धार्मिंक भावनाएं और राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने का निषेध करने के लिए बने हैं. एक छोटी अवधि में इतनी बड़ी संख्याओं में आपत्तिजनक कंटेंट्स का होना सोशल मीडिया के एक बड़े दुरूपयोग की तरफ इशारा करता है.

गौर करने की बात यह है कि जब बात हिन्दुस्तान-पाकिस्तान मैच की हो, जब चीन या पाकिस्तान के साथ हमारी सीमा समस्या की बात हो या चाइनीज सामानों का हमारे बाजारों में प्रभुत्त्व कायम कर लेने की बात हो. तो अचानक ही हमारे अंदर राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना जाग उठती है और हम देश के समर्थन में खड़े हो जाते हैं. फिर जब बात वैश्विक स्तर पर हमारी छवि की हो, महाशक्ति बनने के सपने को आकार देने की बात हो, बात हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की हो तब देश के साथ खड़े रहने की भावना कहां खो जाती है? दरअसल, हम उन्हीं मुद्दों को तरजीह देते हैं जो हमें समझ में आते हैं.

उन मुद्दों पर हम कभी सोचते जो हमारी समझ वाले तो नहीं होते, लेकिन वे देश को मजबूती प्रदान करने वाले जरूर होते हैं. एक ऐसे समय में जब राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर पूरे देश में बहस छिड़ी है, तब हम में राष्ट्रवाद की भावना और राष्ट्र निर्माण की सोच कितनी है, यह मंथन करने की जरूरत है. जरूरी नहीं कि हम अपने खून-पसीने को बहा कर ही देश को मजबूत करें. अगर हमारे अच्छे व्यवहार से ही देश का भला हो रहा है तो इसकी पहल जरूर करनी चाहिए.

 

 

रिजवान अंसारी


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