विजन 'नये हिमाचल' का
हिमाचल प्रदेश में चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. चुनाव की घोषणा के साथ ही पिछले कुछ महीनों से जनता के बीच ताल ठोक रही बीजेपी और कांग्रेस अब अपनी अपनी चुनावी बिसात बिछाने में जुट गई है.
विजन 'नये हिमाचल' का |
एक तरफ जहां चुनाव की प्रभावी और असरदार रणनीति पर काम हो रहा है तो वहीं जिताऊ उम्मीदवारों के नामों पर गहन चर्चा हो रही है. नामांकन का काम 16 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. लिहाजा सियासी गहमागहमी चरम पर है. हालांकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ही शुरुआती चुनौती अपने अपने उम्मीदवार फाइनल करने को लेकर है.
प्रदेश में इस बार 'न्यू हिमाचल विद न्यू विजन' की बयार है. बड़ा सवाल ये है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह 'न्यू इंडिया' के निर्माण में दिन-रात एक किए हुए हैं, क्या उसी तर्ज पर 'न्यू हिमाचल' का निर्माण भी होगा. बीजेपी और कांग्रेस के पास क्या इस पहाड़ी राज्य को विकास की राह पर आगे ले जाने का रोडमैप तैयार है.
हिमाचल में पिछले पांच साल से कांग्रेस का राज है. लिहाजा सत्ता विरोधी लहर का सबसे ज्यादा खतरा उसे ही है. वहीं केंद्र की मोदी सरकार और अमित शाह का दावा है कि पिछले तीन सालों में जनता के कल्याण के लिए 106 योजनाएं लॉन्च कीं. लेकिन इन योजनाओं का लाभ हिमाचल की जनता तक कितना पहुंचा इसके आकलन का कोई पैमाना नहीं है. इस कारण दोनों ही पार्टयिों पर जन सरोकार से जुड़े चुनावी मुद्दे उठाने और उन्हें अपने-अपने घोषणा-पत्र में प्राथमिकता देने का दबाव है. हिमाचल विधान सभा चुनाव में इस बार भी सबसे संवेदनशील मुद्दा युवा सरोकार ही है.
प्रदेश में 29.5 प्रतिशत युवा मतदाता हैं. इनमें से 40,567 युवा पहली बार अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे. 2.5 लाख नौजवान ऐसे हैं, जिनकी आयु 18-19 साल की है, जबकि 20-29 आयु वर्ग के युवा मतदाताओं की संख्या 12.3 लाख है. वहीं, प्रदेश के मेधावी युवाओं को बेहतर शिक्षा और नौकरी के लिए आज भी पंजाब, हरियाणा और दिल्ली का रु ख करना पड़ता है. औद्योगिक नगर नालागढ़, बद्दी और बरोटीवाला को छोड़ दें तो प्रदेश के बाकी जिलों में उद्योग धंधे ना के बराबर हैं. प्रदेश व केंद्र सरकार ने कौशल विकास भत्ता समेत बेरोजगारी भत्ता और अन्य योजनाओं से युवाओं के लिए रोजगार सृजन के कई प्रयास किए हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि प्रदेश में बेरोजगार नौजवानों की संख्या 9 लाख से भी ज्यादा है, जो बढ़ती जा रही है. प्रदेश में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों, 'न्यू इंडिया' और विशेष औद्योगिक पैकेज से भी रोजगार के हालात नहीं सुधरे हैं.
आईआईटी, आईआईआईटी और एम्स की सौगात प्रदेश की जनता को मिली है. मगर बेरोजगारों की बढ़ती भीड़ के आगे सब कुछ 'ऊंट के मुंह में जीरे' समान साबित हो रहा है. प्रदेश में पहली बार महिला सुरक्षा बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है. इस पूरे मसले को जिस गैर जिम्मेदाराना-गैर पेशेवर तरीके से वीरभद्र सरकार और पुलिस ने डील किया, उससे महिलाओं का एक बड़ा तबका सरकार से बेहद नाराज है. राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या 49 फीसद है. 2017 में हुए एक एजेंसी के सर्वे में हिमाचल को पूरे देश में सबसे कम भ्रष्ट राज्य के खिताब से नवाजा गया है. किंतु विडम्बना ये है कि सूबे के सीएम वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, बेटा और बेटी सब आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में बुरी तरह फंसे हैं.
कानूनी पचड़ों से घिरे वीरभद्र सिंह बीजेपी के लिए फायदे का सौदा है. इसका सीधा प्रमाण उस वक्त मिल भी गया, जब बिलासपुर की जनसभा में पीएम ने वीरभद्र सिंह को जमानती सीएम करार दिया. लिहाजा अब ये साफ है कि चुनाव में बीजेपी राजनीतिक शुचिता के साथ ही भ्रष्टाचार मुक्त हिमाचल का नारा आक्रमकता के साथ बुलंद करेगी. हिमाचल में नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे पर राज्यव्यापी आक्रोश को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मोदी सरकार की इस आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक को सूबे की जनता भूली नहीं है. यही वजह है कि कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने बढ़ती महंगाई और अर्थव्यवस्था की बदहाली को मोदी सरकार की बड़ी नाकामी करार देते हुए चुनावी मुद्दा बनाने का खुलेआम ऐलान कर दिया.
हिमाचल में 90 फीसद जनता आज भी गांवों में रहती है. पिछले दस-पंद्रह सालों में दूरदराज के गांवों में सड़कों का जाल बिछा है. विकास के कई काम हुए हैं लेकिन कृषि पैदावार की स्थिति बिगड़ी है. बहरहाल इन तमाम मुद्दों पर प्रदेश की जनता 9 नवम्बर को निर्णायक फैसला देगी और नया जनादेश 18 दिसम्बर को सार्वजनिक होगा.
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