आधी-अधूरी जांच का हासिल!

Last Updated 16 Oct 2017 05:13:36 AM IST

सुनंदा पुष्कर (नौकरशाह से राजनेता बने शशि थरूर की पत्नी) के हत्यारों का पता नहीं चल पाने के सदमे से देश अभी उबर भी नहीं पाया था कि आरुषि तलवार और हेमराज के दोहरे हत्याकांड से उसका सामना हो गया.


आधी-अधूरी जांच.

ऐसा हत्याकांड जिसकी तफ्तीश आधी-अधूरी हुई. न अपराध स्थल को सील किया गया और न ही कमरे की वस्तुओं की जब्ती की गई. इन हत्याओं के कारण अभी भी अज्ञात हैं. कभी आत्महत्या माना गया तो कभी हत्या. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट्स बदली गई और फोरेंसिक विभागों के अधिकारियों पर दबाव डाले गए. टीवी चैनलों ने भारत की प्रमुख जांच एजेंसी की अक्षमता और अदक्षता को लेकर खासा शोरगुल मचाया.

अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आरुषि-हेमराज दोहरे हत्याकांड का फैसला आया है. जस्टिस बीके नारायण और एके मिश्र ने भ्रष्टाचार-निरोधक सीबीआई अदालत, गाजियाबाद के अतिरिक्त सत्र/विशेष न्यायाधीश एस लाल के फैसले को खारिज करते हुए डॉ. नुपुर तलवार और डॉ. राजेश तलवार को संदेह का लाभ देते हुए मामले से बरी कर दिया. उच्च न्यायालय ने कहा कि उनके खिलाफ परिस्थितिजन्य सबूत भले हों लेकिन जांच एजेंसियां उनके अपराध में लिप्त होने का ठोस प्रमाण पेश नहीं कर सकीं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राजेश और नुपुर तलवार की रिहाई का फैसला सुनाते हुए सही ही कहा है : ट्रायल जज ने अपने तरीके से गलत अनुमानों से भरे तथ्यों पर कहानी खड़ी कर ली और किसी फिल्म निर्देशक की तरह काम किया. खुद की भावनाओं के अनुरूप तथ्यों और साक्ष्यों का परीक्षण किया. पूरे घटनाक्रम पर खुद अपनी कल्पना से परिस्थितियों का दायरा बना लिया और इसी नजरिये से फैसला भी सुनाया. कुछ ने तलवार दंपति की रिहाई को खुशी का अवसर बताया है. इसलिए कि तलवार दंपति के साथ न्याय हुआ है.

दूसरी ओर, ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें उच्च न्यायालय का फैसला जंचा नहीं, क्योंकि वे मानते हैं कि राजेश और नुपुर तलवार ने अपनी बेटी को अपने नौकर हेमराज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखने पर उसकी हत्या कर दी. कोई भी तर्क मानें, लेकिन यह न्याय का मजाक ही है कि समूचे देश को स्तब्ध कर देने वाले इस दोहरे हत्याकांड के वास्तविक अपराधी खुले घूम रहे हैं. आरुषि के साथ वास्तविक न्याय तभी होगा जब सीबीआई और पुलिस हत्यारे को दबोच कर सींखचों के पीछे डाल दें. अगर तलवार दंपति निदरेष थे तो उन्हें ट्रायल कोर्ट द्वारा दोष सिद्ध किए जाने के बाद 2013 से ही जेल में क्यों रहना पड़ा? इतने वर्षो तक जेल में कलंकित, एकाकी और कैदी जीवन भोगने की भरपाई कौन करेगा? दूसरी ओर, यदि दोषी थे तो पर्याप्त प्रमाण के अभाव में उन्हें रिहा किया गया..न्याय कहां हुआ. यह समूचा घटनाक्रम सार्वजनिक रूप से घटा, जिससे जांच एजेंसी की विसनीयता पर बड़ा सवालिया निशान लगता है. या तो जांच एजेंसी बेहद लापरवाही बरतती दिखी या फिर जान-बूझ कर किसी की शै पर पूरे मामले को दबाती-छुपाती दिखी. बहरहाल, कारण कुछ भी रहा हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जांच र्ढेनुमा और पूरी तरह से नाकाम साबित हुई और यह इस बात की नसीहत है कि जांच के दौरान कौन-सी चूक या नादानी नहीं की जानी चाहिए. जांच एजेंसी को अनेक सवालों के जवाब देने होंगे. 2008 में चौदह वर्षीय आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या की गई थी.



दो दिनों तक पुलिस ने घटनास्थल को सील नहीं किया. मीडिया और आस-पड़ोस के लोगों समेत हर कोई वहां तक मटरगश्ती अंदाज में आ-जा रहा था. फोटो ले रहा था, सबूत लेने के नाम पर महत्त्वपूर्ण वस्तुओं को छेड़-छू कर लौट रहा था. यह सब दो दिनों तक चलता रहा. तब तत्कालीन उपाधीक्षक केके गौतम घटना स्थल पर पहुंचे और पुलिस से छत की ओर जाने वाली खून की लकीर की पीछा करने को कहा. पुलिस खून की लकीर का पीछा करते हुए ऊपर पहुंची तो वहां हेमराज का शव पड़ा पाया. पुलिस के खोजी कुत्ते घटनास्थल पर नहीं लाए गए. उंगलियों के निशान नहीं उठाए गए. हेमराज का मोबाइल फोन जब्त नहीं किया गया.

इन शुरुआती बातों पर ध्यान दिया गया होता तो उच्च न्यायालय को तलवार दंपति या अज्ञात हत्यारों को सबूत के अभाव में रिहा नहीं करना पड़ता. जांच एजेंसियों द्वारा जुटाए गए सबूतों के आधार पर मामला बिना शक साबित हो गया होता. पुलिस जांच में पता चला कि नौ वर्ष बाद (मीडिया ट्रायल समेत) भी तथ्य यह है कि घटना के दिन मकान में जबरन प्रवेश की बात सामने नहीं आई. मरने वालों के साथ अंतिम बार तलवार दंपति ही थे. लेकिन हत्याओं के पीछे के कारणों को लेकर अनेक प्रश्न अनुत्तरित हैं. किसने गोल्फ स्टिक को धोया और छिपाया. आरुषि और हेमराज की बर्बर हत्या के बाद किसने स्कॉच पी और किसने आरुषि के सिर पर चोट पहुंचाई और सर्जिकल ब्लेड (जिसे पुलिस बरामद नहीं कर सकी) से गला काट डाला.

पुलिस ने कहा कि आरुषि और हेमराज के आपत्तिजनक स्थिति में देख गुस्साए राजेश तलवार ने गोल्फ स्टिक से आरुषि और हेमराज पर हमला कर दिया. आरुषि का गला काट डाला. इससे भौंचक तलवार दंपति ने जोरदार विरोध किया. तब उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया. सीबाआई की पहली टीम ने अरुण कुमार के नेतृत्व में कंपाउंडर कृष्ण और राजकुमार और विजय मंडल नाम के दो पड़ोसी नौकरों पर शक जताया. उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया. लेकिन सबूत के अभाव में आरोप पत्र दायर नहीं कर सकी और उन्हें छोड़ना पड़ा. जांचकर्ताओं की दूसरी टीम ने शक की सुई को तलवार दंपति की तरफ मोड़ते हुए सीबीआई कोर्ट में सबूतों के अभाव कहते हुए क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी. बहरहाल, शुरू से लग रहा था कि कोई तो है, जो सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर रहा था. अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय को तलवार दंपति को महज इसलिए रिहा करना पड़ा है कि मामला सबूतों के अभाव में साबित नहीं हो सका. आरुषि को नौ वर्ष बाद भी न्याय नहीं मिल पाया है. जांच में लापरवाही या उच्च पदासीनों के चलते जांच आधी-अधूरी रह गई. 

मोनिका अरोड़ा


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