रैगिंग : संवाद और सामंजस्य बनाएं

Last Updated 17 Oct 2017 12:55:08 AM IST

देश की शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग की रोकथाम को लेकर सरकार हर साल गाइडलाइंस बनाती है, इसके बावजूद रैगिंग की घटना कहीं-न-कहीं से प्रकाश में आ जाती है.


रैगिंग : संवाद और सामंजस्य बनाएं

ताजा मामला हाल ही चर्चा में रहे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में घटित हुआ है.

यहां फिजी के एक छात्र से पहले तो रैगिंग की गई और जब छात्र ने इसकी शिकायत प्रॉक्टोरियल बोर्ड से की तो सीनियर छात्रों ने उसकी सरेराह पिटाई कर दी. इस मामले में थाने में मुकदमा भी दर्ज हुआ है, लेकिन फिलहाल दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई है. इसी तरह, देश के प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर में रैगिंग के आरोप में 22 विद्यार्थियों को एक से तीन साल तक के लिए सस्पेंड कर दिया गया है. वहीं पिछले महीने देश के नम्बर एक मेडिकल  इंस्टीटय़ूट एम्स के 12 छात्रों को कुछ जूनियर छात्रों के साथ गलत व्यवहार करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया. रैगिंग की सजा से बचने की कोशिश में तो प्रथम वर्ष का एक छात्र बुरी तरह घायल भी हो गया यानी यदा-कदा रैगिंग का भूत अभी भी शिक्षण संस्थानों में मंडराता फिर रहा है.

यह सब कुछ तब है, जब रैगिंग को लेकर काफी कड़े नियम-कानून बनाए गए हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) एक्ट, 1956 में सभी संस्थानों में रैगिंग-विरोधी नीति अपनाना अनिवार्य बनाया गया था. किंतु इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी यह एक्ट अभी तक अप्रभावी सिद्ध हुआ है, और रैगिंग का चलन निरंतर जारी है. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ‘रैगिंग’ पर सख्त रुख अपनाते हुए शिक्षण संस्थाओं को इन घटनाओं में अनिवार्य रूप से प्राथमिकी दर्ज कराने के आदेश दे चुका है. रैगिंग को मानवाधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में लेते हुए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व निदेशक ए राघवन की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई गई थी, जिसने शिक्षा संस्थानों में रैगिंग के विरुद्ध कड़े निर्देश जारी किए. कई राज्यों ने भी इस पर रोक लगाने के लिए कानून भी बनाए. वास्तव में कॉलेज में प्रवेश के बाद सीनियर्स का मार्गदर्शन सकारात्मक होने के स्थान पर नये विद्यार्थियों के लिए जानलेवा हो जाता है. यह माहौल किसी एक शिक्षा संस्थान में नहीं बल्कि पूरे देश में हो गया है. इसकी गिरफ्त में उच्च स्तर के शिक्षा संस्थान ज्यादा हैं, जहां पर दूरदराज के विद्यार्थी अध्यनरत होते हैं.

यूजीसी के आंकड़ों के अनुसार साल 2009 से  2015 तक उत्तर प्रदेश में 565, पश्चिम बंगाल में  375, मध्य प्रदेश में 313, ओडिशा में 289 और महाराष्ट्र  में 170 रैंगिंग के मामले सामने आए. लेकिन ये आंकड़े पूरी कहानी बयां नहीं करते. एक सर्वेक्षण के अनुसार देश भर के कॉलेजों में करीब 40 फीसद छात्र-छात्राओं को रैगिंग का दंश झेलना पड़ता है. लेकिन उनमें से सिर्फ  8.6 फीसद घटनाएं दर्ज की जाती हैं. ज्यादातर नये छात्रों के साथ रैगिंग की वारदात होती हैं. ऐसे माहौल में तकरीबन 25 फीसद छात्र पढ़ाई पर ध्यान नहीं लगा पाते जबकि 65 फीसद छात्रों का आत्मविश्वास इन हादसों के कारण खत्म हो जाता है.

रैगिंग को लेकर यूजीसी की गाइडलाइंस के अनुसार शिक्षा संस्थानों में-रैगिंग विरोधी समितियों के गठन की जिम्मेदारी संस्थान प्रमुख की है. साथ ही, ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए कॉलेज-हॉस्टल में रैगिंग विरोधी दस्तों की अचानक छापेमारी, कॉलेज कैम्पस में रैगिंग रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाना और शैक्षणिक सत्रों की शुरुआत के दौरान खास-खास जगहों पर पुलिस की मौजूदगी की व्यवस्था सुनिश्चित करना है.

देखा जा रहा है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों की बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्तियां शांति और विकास के तमाम पूर्वानुमानों को धराशायी करते हुए शिक्षा के उद्देश्यों को ही हतोत्साहित कर रही हैं. रैगिंग रोकने के तमाम उपायों के बावजूद इसके न रुकने का कारण दुर्भाग्यपूर्ण शैक्षणिक वातावरण है. ऐसी घटनाओं के लिए सिर्फ छात्रों को जिम्मेदार ठहराना समस्या का हल नहीं है. शिक्षण संस्थानों में नैतिक शिक्षा का अभाव, उपभोक्तावादी जीवन और असंतुलित विकास जानलेवा बनता जा रहा है. एंटी रैगिंग कमिटी द्वारा युवाओं पर कार्रवाई करने से समस्या रुकने वाली नहीं है, बल्कि विद्यार्थी-शिक्षक संवाद और उनमें सामंजस्य स्थापित किए जाने के प्रयास होना चाहिए. बच्चों को घर से ही नैतिक शिक्षा दी जाए. उन्हें अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाए. अफसोस कि ऐसे सकारात्मक प्रयास और विद्यार्थियों के रचनात्मक विकास करने में हमारी शैक्षणिक संस्थाएं बुरी तरह विफल रही हैं.

राजीव मंडल


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