गुरदासपुर : हार-जीत के निहितार्थ
किसी एक लोकसभा सीट का उपचुनाव राजनीतिक विश्लेषकों के लिए ज्यादा मायने नहीं रखता लेकिन पंजाब के गुरदासपुर का मामला ऐसा नहीं है.
गुरदासपुर : हार-जीत के निहितार्थ |
इसके मायने गहरे हैं. वास्तव में कांग्रेस के लिए गुरदासपुर लोक सभा सीट पर विजय निश्चय ही उत्साहित करने वाली है. भाजपा से स्व. विनोद खन्ना यहां से 4 बार (1998, 1999, 2004 और 2014) सांसद रहे थे. तो यह भाजपा की परंपरागत सीट रही है. इस नाते कांग्रेस के लिए यह विजय मायने रखती है. यह कोई स्थानीय चुनाव नहीं, लोक सभा सीट का उपचुनाव था. जीत का अंतर भी काफी है. कांग्रेस के उम्मीदवार सुनील जाखड़ ने भाजपा के स्वर्ण सलारिया को 1 लाख 93 हजार 219 के बड़े अंतर से हराया है. यह विजय ऐसे समय मिली है, जब हिमाचल एवं गुजरात विधान सभा चुनाव का बिगुल फुंक चुका है. राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का मंच भी सज गया है. ऐसे समय इस जीत का राजनीतिक महत्त्व कम से कम कांग्रेस के लिए तो बढ़ ही जाता है.
कांग्रेस इस विजय को दोनों विधान सभा चुनावों में व्यापक रूप से प्रचारित करेगी. उसका स्वर क्या होगा, कांग्रेस नेताओं के बयानों से स्पष्ट है. वे कह रहे हैं कि यह जीत दोनों विधान सभा चुनावों तथा उसके बाद कांग्रेस के लिए विजय का पूर्व संकेतक है. हालांकि किसी एक उपचुनाव की जीत-हार को भावी चुनावों से जोड़कर देखना या निष्कर्ष निकाल लेना कि वाकई पार्टी के लिए जीत की शुरु आत हो गई है, राजनीतिक विश्लेषण के किसी कोण से व्यावहारिक नहीं ठहरता. किंतु कल्पना करिए, कांग्रेस चुनाव हार गई होती तो आज क्या होता? निश्चय ही भाजपा इसे व्यापक रूप से प्रचारित करती और उसका स्वर यही होता कि कांग्रेस मुक्त भारत के अपने लक्ष्य में वह एक कदम और आगे बढ़ी है.
भाजपा भी इसे कांग्रेस को जनता द्वारा नकारने के तौर पर प्रस्तुत करती तथा इसे भावी विधान सभा चुनावों के परिणामों की पूर्व पीठिका साबित करती. भाजपा का जो काम करने का तरीका है उसमें गुरदासपुर उपचुनाव परिणाम में उसकी विजय के बाद आज का माहौल ही दूसरा होता. भाजपा इस पर चुप है तो इसका अर्थ साफ समझा जा सकता है. हम यह नहीं कह रहे कि भाजपा के लिए यह इतना बड़ा आघात है जिससे वह उबर नहीं सकती. लेकिन यह एक आघात है इसे स्वीकार करना होगा. और भाजपा के लिए जो आघात है, वह कांग्रेस के लिए राहतकारी तो होगा ही.
कांग्रेस के नेता यह भी कह रहे हैं कि राहुल के अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा के साथ यह परिणाम आया है तो फिर जब वे अध्यक्ष बन जाएंगे तो निश्चय ही इससे अच्छे परिणाम हमें देखने को मिलेंगे. पंजाब में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू तो कह रहे हैं कि पंजाब में पंजे के थप्पड़ की गूंज दूर तक जाएगी. यह उनका तरीका है और इस पर ज्यादा टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं. तात्पर्य यह कि कांग्रेस के लिए इस विजय का समय काफी महत्त्वपूर्ण है. दो विधान सभा चुनाव नहीं होते तथा राहुल के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का समय नहीं होता तो इसका कुछ समय बाद लोग इस विजय को भुला देते. हालांकि इसका एक अर्थ यह निकाला जा रहा है और जो गलत नहीं है कि कांग्रेस के लिए छह महीने पहले पंजाब में विधान सभा चुनाव में विजय का जो माहौल था, वह कायम है.
किंतु इस निष्कर्ष और तथ्य से भाजपा को राहत नहीं मिल सकती. विधान सभा चुनाव और लोक सभा सीट के चुनाव में कुछ गुणात्मक अंतर होता है. विधान सभा चुनाव में लोग मूलत: स्थानीयता को ध्यान में रखकर मतदान करते हैं. लोक सभा सीट पर मतदान करते समय भले वह उपचुनाव ही क्यों न हो, मतदाता राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य का ध्यान रखते ही हैं. इस नाते विचार करें तो कम से कम पंजाब में भाजपा के लिए संकेत अच्छे नहीं हैं. इसका एक निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि उसकी राष्ट्रीय नीति को लेकर पंजाब में पक्ष का माहौल नहीं है. कांग्रेस के नेता नोटबंदी एवं जीएसटी के साथ मोदी सरकार की कुछ नीतियों को निशाना बना रहे हैं.
भाजपा को इस पराजय से घबराने की आवश्यकता नहीं है किंतु आत्मचिंतन तो करना ही चाहिए. क्या पंजाब के बाहर भी नोटबंदी एवं उसके नकारात्मक परिणामों से बाहर निकलने के पूर्व ही जीएसटी लाने के कारण दूसरे राज्यों में भी असंतोष तो नहीं है? वस्तुत: भाजपा के लिए आत्मचिंतन करना कई कारणों से आवश्यक है. दो विधान सभा चुनावों का परिणाम अपने पक्ष में लाने की चुनौती उसके सामने है. गुरदासपुर का वहां जवाब देना होगा. निश्चय ही भाजपा के रणनीतिकार इस पर विचार कर रहे होंगे कि इसका क्या जवाब दिया जाएगा. किंतु उसके पास ऐसा कोई जवाब नहीं होगा जिससे आसानी से कोई सहमत हो सकता. तो वह ज्यादा से ज्यादा इस पर चुप्पी साध सकती है. गुजरात भाजपा के लिए विशेष चुनौती वाला राज्य साबित हो रहा है.
वहां नोटबंदी और जीएसटी का असर है. कुछ जातियां भी उनसे नाराज बताई जा रही हैं. मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी जैसा लोकप्रिय तथा जनता को आलोड़ित करने वाला व्यक्तित्व भी नहीं है. कांग्रेस अब गुरदासपुर परिणाम के उत्साह में कुछ ज्यादा आक्रामक होगी. चुनाव हार गई होती तो उसके अंदर निराशा का भाव होता. उसकी आक्रामकता पर भाजपा व्यंग्यबाण चला सकती थी. भाजपा के हाथ से यह विकल्प निकल गया है एवं कांग्रेस के तूणीर में एक बड़ा तीर आ गया है जिसका इस्तेमाल उसने करना आरंभ भी कर दिया है. भाजपा समर्थकों को नहीं भूलना चाहिए कि अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के लोक सभा चुनाव में 350 सीटों का लक्ष्य रखा है. यह तभी संभव है जब आप 2014 के सारे विजीत स्थानों को बनाए रखते हुए 70 अतिरिक्त सीटें जीतें. इसमें पंजाब को आप अलग नहीं कर सकते. वहां भी उसके लिए पहले से बेहतर प्रदर्शन करना जरूरी है, जबकि पराजय हो गई है. क्यों हुआ ऐसा इसके लिए भाजपा उसी तरह आत्मचिंतन करे जैसे किसी आम चुनाव में हारने पर किया जाता है. नांदेड़ नगर महापालिका चुनाव में भी कांग्रेस ने जैसा प्रदर्शन किया है, उससे भी उसका उत्साह बढ़ा हुआ है, और भाजपा के पास इसका कोई जवाब नहीं है.
| Tweet |