मीडिया : पटाखे भी हिंदू होते हैं!

Last Updated 15 Oct 2017 12:52:13 AM IST

एक अपील को सुनते हुए बड़ी अदालत ने पटाखों की सेल पर बैन लगाया. इस पर एक अंग्रेजी के लेखक ने कुछ इस आशय का ट्वीट मारा कि ‘परंपरागत कल्चर’ पर ‘बैन’ ठीक नहीं है.


मीडिया : पटाखे भी हिंदू होते हैं!

इस तरह इस बार पटाखे भी ‘हिंदू’ बन गए. पटाखों पर बैन का मतलब हिंदू त्योहार पर बैन. एक से एक हिंदुत्ववादी रणबांकुरे चैनलों पर आ बिराजे और दहाड़ने लगे कि सिर्फ हिंदू त्योहार को ही निशाना क्यों बनाया जाता है? ईद है, मुहर्रम है, अजान है उनको निशाना क्यों नहीं बनाया जाता?

मीडिया में ऐसी बहसें देख-सुन अदालत तक को कहना कि वह इसे सांप्रदायिक रंग देने से दुखी है! रहे दुखी!हमें तो अपने धर्म की चिंता करनी है. हमारा साथ देने वाला मीडिया है. जब कई चैनल हमारी ही भाषा में हमारी बात जनता तक पहुंचा रहे हैं तो हमें क्या? हम भी जम के कहेंगे कि अपने ही देश में हिंदू आहत होता है. उसी को क्यों निशाना बनाया जाता है? किसी और को क्यों नहीं?

एक अंग्रेजी चैनल ने यह ‘हैसटैग’ लगाकर बहस कराई कि क्या हिंदू को निशाना बनाया जा रहा है?अगर ऐसा हैसटेग हो तो क्या कहने. हमारी तंदुरुस्ती की चिंता में हलकान परेशान होने वाले  एनजीओ बोले कि दिल्ली की हवा  पहले ही प्रदूषित  है तिस पर पटाखों का प्रदूषण. दिल्ली रहने लायक नहीं बचेगी. बच्चों के फेफड़े बर्बाद होंगे दिल के डॉक्टर बताने लगे कि दीवाली के पटाखों के धुएं से हृदयाघात दमा और कैंसर तक हो सकता है. इसलिए बैन ठीक है. पिछले बरस भी हुआ था!

जबाव देने के लिए कई तरह के हिंदूवादी आ गए और कहने लगे यह परंपरागत त्योहार का सवाल है. दिल्ली तो यों ही प्रदूषित है. ट्रक-कारें धुआं करती हैं. एक दिन चलने वाले पटाखे तो ऊंट के मुंह में जीरा हैं. एक चैनल ने नाप-जोख कर बताया कि एक सांप जलाने से सात सौ सिगरेट बराबर धुआं बनता है. एक चकरी के जलाने से दो सौ सिगरेट बराबर धुआं होता है. बैन तो पिछले बरस भी लगा था, लेकिन तब पटाखे ‘हिंदू’ नहीं बने थे. इस बार पटाखे ‘हिंदू’ हो गए. कारण यह कि इस बार अंग्रेजी के एक लेखक ने पटाखों का हिंदूकरण कर दिया.
हमारी चिंता यह नहीं कि मुखर हिंदुत्ववादी पटाखों का भी हिंदूकरण कर रहे हैं. वे तो ऐसा कर ही सकते हैं. हमारी असली चिंता यह है कि एक जाना-माना अंग्रेजी लेखक भी ऐसा सोचने लगा है और सिर्फ टीआरपी की खातिर मीडिया भी ऐसे तत्वों को ‘विभाजनकारी’ राजनीति करने का पूरा अवसर देने लगा है. अंग्रेजी का वह लेखक अगर ऐसे विभाजनवादी ट्वीट न करता तो किसकी नजर जाती और सोशल मीडिया में ये लाइन क्यों वायरल होती? 

पहली बार देश को मालूम पड़ा कि पटाखों की सेल पर जो बैन लगा वह ‘हिंदू संस्कृति’ को लगा है पटाखों को नहीं. ऐसा बैन न ईद पर लगता है कि न मुहर्रम पर लगता है. सिर्फ दीवाली होली पर लगता है क़्यों? यही नहीं एक राज्यपाल तक बोल उठे कि एक दिन ऐसा आ सकता है, जब हिंदू के मरने पर भी बैन लग जाए क्योंकि शव जलाने से भी धुआं होता है.
भाजपा की एक प्रवक्ता कहती रहीं इसे धार्मिक रंग न दें प्रदूषण की बात समझें दीवाली मनाएं लेकिन प्रदूषण से बचें. लेकिन कौन सुनता है? किसी ने एक बार ‘हिंदू निशाने पर है’ की बात कह दी तो हिंदुत्ववादी शुरू हो जाते हैं कि हिंदू तो पांच हजार साल से निशाने पर हैं. आजादी के बाद से और अधिक विक्टिम बनाया गया हैं. अब तो अपना राज है. अब  कोई निशाना नहीं बना सकता. यह बैन ‘हिंदू विरोधी’ है.

ऐसी बहसें जब-जब टीवी में आती हैं, तब-तब वे दर्शकों को विभाजित करती चली जाती हैं. ‘हिंदू निशाने पर है.’ यह सुनकर कर हिंदू दर्शक समझता है कि उसके खिलाफ साजिश रची जा रही है, जबकि जिस समय ‘बहुमतवादी’ विचार का जोर हो उस समय ‘बहुमतवादी’ तत्वों का स्वयं को निशाने पर समझना नए वर्चस्ववाद की नई तरकीब भर है. यों अदालत का यह फैसला एक सीमित अर्थ वाला फैसला है. वह सेल पर तो बैन लगाता है, लेकिन पटाखे चलाने पर नहीं लगाता. अगर कोई ऑन लाइन पटाखे मंगाकर फोड़ता है तो फोड़ सकता है. यानी बैन सेल पर है चलाने पर नहीं है. लेकिन तत्ववादियों ने यही समझा कि ‘चलाने’ पर भी बैन है. बहरहाल, हमारा सवाल अंग्रेजी के लेखक और चैनलों से है कि क्या वे भी हिंदुत्ववादी हो गए हैं, जो ऐसे विभाजनकारी मुद्दों को प्राइम टाइम में जगह देते हैं?
क्या पटाखे भी हिंदू होते हैं?

सुधीश पचौरी


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