प्रसंगवश : भारतीय नारी चेतना
कस्तूरबाई माखनजी कापड़िया की लाडली कस्तूर की कस्तूरबा गांधी और फिर ‘बा’ बनने की गाथा से लोग सामान्यत: बहुत परिचित नहीं हैं.
![]() कस्तूरबा गांधी (file photo) |
गांधी जी से चार साल कम उम्र पाने वाली बा ने तेरह साल की उम्र में जो सफर उनके साथ शुरू किया, वह पूरे साठ साल चला. पोरबन्दर में सीमित से परिवेश में जन्मी और पली-बढ़ी कस्तूर से बा होती कस्तूर का अस्तित्व अपने मोहन (जो आगे चल कर ‘महात्मा’ हो गया) की बड़ी छाया के नीचे आम तौर पर टिकता नहीं दिखता. सत्रह की होते न होते वह पहली बार मां बनी पर बच्चा जीवित न रहा. जब बीस की हुई तो दूसरी बार मां बनी और गोद में हरिलाल को लिए पति मोहन दास को कानून की पढ़ाई करने के लिए भारी मन से लंदन जाने के लिए विदा किया.
अठारह साल के गांधी पूरे तीन वर्ष इंग्लैंड में रह कर बैरिस्टर बन 1891 में भारत लौटे. इस तरह के अलगाव का मौका जल्द ही फिर आया जब दो साल बाद 1893 में गांधी जी वकालत के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए. इस बार भी तीन साल बाहर रह कर 1896 में देश वापस लौटे. बार-बार के लंबे अलगाव ने पति-पत्नी के बीच प्यार और आकर्षण को और तीव्र बनाया और जिसके उद्दाम रूप से उबरने की गांधी ने आजीवन कोशिश की. गौरतलब है कि तीव्र यौनिक रु झान से उबरने के लिए गांधी ने अड़तीस की उम्र में ही आगे के जीवन में ब्रह्मचर्य धारण करने की प्रतीज्ञा की और कस्तूरबा ने भी कथित रूप से सहयोग किया (हालांकि स्त्रियों के साथ उनके संबंध और प्रयोग को लेकर तीखी आलोचना भी हुई है, और जो आज के स्त्रीवादी विचारकों के अनुसंधान का विषय बन रहा है).
1897 में गांधी जी दुबारा दक्षिण अफ्रीका गए और इस बार कस्तूरबा भी उनके साथ थीं अपने दो बच्चों के साथ. वहां की जटिल सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों में भारतीय प्रवासियों के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध दर्ज कराने और नागरिक अधिकारों को बहाल करने की मुहिम छेड़ी. घर से बाहर निकल कर कस्तूरबा ने अपने को दृढ़ किया और सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में गांधी जी के साथ खड़ी हो गई. 1904 में डरबन के पास फिनिक्स आश्रम बनाने और चलाने में पति की मदद की. अफ्रीका में भी दो बच्चे हुए. दोनों के कुल चार पुत्र हुए : हरिलाल(1888), मणिलाल (1893), रामदास (1997) और देवदास (1900). अफ्रीका में रहते हुए कस्तूरबा प्रवासियों के खिलाफ जुल्म के विरोध में गिरफ्तार हुई. ऐसे भी अवसर आए जब गांधी जी, कस्तूरबा और बच्चे अलग-अलग जेलों में बंद रहे. दक्षिण अफ्रीका की सरकार को अंतत: झुकना पड़ा और भारतीय प्रवासियों के अधिकारों को बहाल करना पड़ा. अहिंसा और सत्याग्रह की इस जीत का श्रेय कस्तूरबा को भी जाता है. अगले साल इंग्लैंड होते हुए 1914 में भारत आने के बाद कस्तूरबा ने आजादी की जंग में हिस्सा लिया. वे ‘बा’ बनीं.
वह गांधी जी के साथ चंपारण भी गई और वहां की ग्रामीण महिलाओं में स्वास्थ्य तथा पढ़ाई के लिए जागरूकता फैलाई. 1922 के बोरसाड के सत्याग्रह में भाग लिया. कई बार जेल गई. 1939 में राजकोट में अहिंसक सत्याग्रह में भाग लिया. 1942 में ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ के देशव्यापी आंदोलन में गिरफ्तार भी हुई. पुणे के आगा खान पैलेस में देहांत हुआ और जेल में ही उनका दाहकर्म भी किया गया. सच्चे अथरे में सहधर्मिंणी रहीं बा गांधी जी के बाहरी दायरे के विस्तार के साथ घर-परिवार और कुटुम्ब से जोड़ते रहने में बा की विशेष भूमिका थी.
गिरिराज किशोर अपनी औपन्यासिक रचना ‘बा’ में एक प्रसंग उद्धृत करते हैं. ‘कस्तूरबा से एक बार पूछा गया कि बापू के ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में आप कहां हैं?’ कस्तूरबा ने कहा, ‘मैंने पढ़ी तो नहीं, पढ़ ही नहीं सकती थी. मैं जानती हूं कि उन्होंने अनपढ़ होने का दायित्व दोनों के बीच बांटा है. मैं सजाकर रखी गई एक मूर्ति की तरह, उसमें मौजूद हूं. बापू ने उसमें मेरी सुंदरता का बयान भी किया है, और उपयोग का भी. बड़े दीवान जी के न रहने का कारण मैं ही हूं. बापू ने जो सत्य के साथ प्रयोग किए हैं, उन्हें मैंने भोगा है.’ बा कभी-कभी सोचती थीं कि क्या वह बापू के सच को नापने का मापक थीं या माध्यम. जीवन में गतिशील और परिवर्तनकामी गांधी के साथ कदम मिला कर चलना सरल न था. सत्याग्रह, प्यार, समर्पण, त्याग और मौन के रूप में बा महात्मा के व्यक्तित्व में छा गई. मोहनदास के महात्मा गांधी के रूप परिष्कार होने में कस्तूरबा की सेवा, सहिष्णुता, धैर्य की भूमिका नहीं भुलाई जा सकती.
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