प्लास्टिक : प्रदूषण का बड़ा कारक
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आईवीआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा एक बैल के लाइव ऑपरेशन को अपनी आंखों से देखा.
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ऑपरेशन के दौरान बैल के पेट से पूरे 50 किलो प्लास्टिक निकली देख प्रधानमंत्री हैरान रह गए. इसके बाद उन्होंने हर नागरिक से पॉलीथिन से दूर रहने की अपील की. दरअसल, जब-जब प्लास्टिक के खतरनाक पहलुओं के बारे में सोचा जाता है, तो यकायक उन गायों की याद जरूर आ जाती है, जो पेट में प्लास्टिक जमा हो जाने के कारण अक्सर अनचाहे मौत के मुंह में चली जाती हैं.
सच तो यह है कि प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है. वैज्ञानिक तो बरसों से इसके दुष्परिणामों के बारे में चेता रहे हैं. हमारे यहां समस्या खासकर इसलिए और भयावह शक्ल अख्तियार कर चुकी है कि स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लास्टिकयुक्त कचरे से क्या गांव, क्या कस्बा, क्या नगर-महानगर यहां तक कि देश की राजधानी तक अछूती नहीं है. विडम्बना यह कि प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबंदी है. लेकिन बावजूद इसके प्लास्टिक का इस्तेमाल बदस्तूर है. इस बाबत राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने कड़ा ऐतराज जताया है. न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने पाबंदी के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी में प्लास्टिक के व्यापक और अंधाधुंध इस्तेमाल पर दिल्ली सरकार को पिछले दिनों कड़ी फटकार लगाई है. यह निर्देश दिया है कि पीठ के लगाए प्रतिबंध को राजधानी में तत्काल लागू करवाया जाए.
आजकल एक ओर तो सफाई अभियान का डंका पीटा जा रहा है, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यों के मंत्री, राष्ट्रीय से लेकर गली-मोहल्लों के भाजपा नेता- पदाधिकारी-कार्यकर्ता तक सड़कों पर झाड़ू लगाते-फोटो खिंचवाते नजर आ रहे हैं, अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन प्रकाशित कराए जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर जगह-जगह गलियों के नुक्कड़ों पर पड़े प्लास्टिकयुक्त कूड़े के ढेरों पर आवारा मवेशियों के झुंड मुंह मारते देखे जा सकते हैं.
अध्ययन साबित करते हैं कि प्लास्टिक कचरे के चलते समुद्र में मछलियों का जीवन भी सुरक्षित नहीं है. माइक्रोप्लास्टिक जैसा घातक तत्व आम तौर पर कचरे जैसे कि प्लास्टिक के थैलों, बोतलों के ढक्कन और डिब्बों के जलप्रवाह और पराबैंगनी किरणों के टूटने तथा कॉस्मेटिक्स और टूथपेस्ट में भारी मात्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले माइक्रोबीड्स के कारण बनता है. वह खतरनाक रसायनों को अवशोषित कर लेता है, और पक्षी एवं मछलियां जब इसे खा लेते हैं, तो यह उनके शरीर में चला जाता है. आर्कटिक सागर के बारे में ताजा अध्ययन प्रमाणित करता है कि आने वाले तीन दशकों में प्लास्टिक तो ज्यादा होगी लेकिन मछलियों के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे.
कहने का तात्पर्य यह कि सागर में उस समय मछलियों की तादाद बहुत कम होगी. सागर में अलग-अलग धाराओं से आकर बहुत बड़ी मात्रा में बरसों से प्लास्टिक के छोटे-बड़े टुकड़े लगातार जमा हो रहे हैं. इनकी मात्रा तकरीब 100 से 1200 टन आंकी जा रही है. ग्रीनलैंड के समुद्र में इनकी तादाद बहुतायत में है. आशंका जताई जा रही है कि आर्कटिक सागर में प्लास्टिक के टुकड़े तेजी से बढ़ने के कारण आसपास के देशों का समुद्र प्रदूषित हो सकता है. अध्ययनों से साबित हो गया है कि दुनिया के महासागरों में साल 2010 तक तकरीब 80 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा मिल चुका है, और दिन-ब-दिन इसमें बढ़ोतरी जारी है, जो खतरनाक संकेत है.
इस बारे में जॉर्जिया यूनिवर्सिटी की प्रो. जेना जैमबेक का कहना है कि अधिकांशत: प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता. यही वह अहम वजह है कि आज पैदा किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों साल तक बना रहेगा जो हमारे जीवन और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करता रहेगा जिसकी भरपाई असंभव होगी. ऐसे में हमें इसके उत्पादन और निस्तारण को लेकर गंभीरतापूर्वक विचार किए जाने की जरूरत है. इसमें दो राय नहीं कि धरती पर प्लास्टिक जितना कम होगा, उतना ही वह समुद्र में कम पहुंचेगा. इसलिए समुद्र में प्लास्टिक कम करना है, तो हमें धरती पर उसका इस्तेमाल कम करना होगा. चूंकि समुद्र का प्रदूषण धरती के प्रदूषण का ही विस्तार है. इसलिए यह हमारे जीवन के लिए धरती के प्रदूषण से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है. उस स्थिति में जबकि आज दुनिया प्लास्टिक कचरे के ढेर में तब्दील हो चुकी है, इसमें किंचित भी संदेह नहीं है कि समुद्र तभी स्वच्छ रह पाएगा जबधरती प्रदूषण-मुक्त हो. प्लास्टिक तो एक कारक है.
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