अर्थव्यवस्था : रणनीति से बदलेगी सूरत
यकीनन, इस समय राष्ट्रीय और वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों में देश की विकास दर घटने के आंकड़े प्रस्तुत हो रहे हैं.
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ऐसे में 4 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अर्थव्यवस्था का विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था के आधारभूत संकेतक मजबूत हैं. लेकिन सरकार तात्कालिक परिवेश में अर्थव्यवस्था में गिरावट थामने के लिए औद्योगिक विकास, रोजगार और निवेश बढ़ाने के उपाय जारी रखेगी. छह अक्टूबर को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में भी राहतकारी बदलाव किए गए. इससे विकास दर बढ़ेगी और देश दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की डगर पर आगे बढ़ेगा.
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी मार्गन स्टेनली ने अपनी शोध अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि आगामी 10 वर्षो में भारत डिजिटलीकरण, युवा कौशल प्रशिक्षित आबादी और विभिन्न आर्थिक सुधारों की बदौलत दुनिया की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ी हुई अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई देगा. वर्ष 2027 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद 6000 अरब डॉलर के स्तर पर होगा और विकास दर करीब 11 फीसदी होगी. इसी तरह विविख्यात ब्रिटिश ब्रोकरेज कंपनी हांगकांग एंड शंघाई बैंक कॉरपोरेशन (एचएसबीसी) ने अपनी एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2028 तक भारत, जापान और जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. अभी उसका क्रम दुनिया में पांचवां है. पहला और दूसरा क्रम क्रमश: अमेरिका और चीन का है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चाहे वर्ष 2016-17 के पिछले साल के कुछ सुधारों से भारत की आर्थिक वृद्धि के रास्ते में बाधा उत्पन्न हुई है लेकिन कुछ समय बाद इन सुधारों से भारत की क्षमता का पूरा उपयोग होगा.
भारत को आर्थिक और कारोबार सुधारों के साथ-साथ स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखना होगा, ऐसे सुधारों से 2018-19 के बाद अर्थव्यवस्था का प्रभावी रूप दिखाई देगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की र्वल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट और विश्व बैंक की वैश्विक आर्थिक विकास रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत 2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभर सकता है. यद्यपि दुनिया की विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में दस-बारह वर्ष बाद भारत के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की बात एकमत से कही जा रही है. यह सरल काम नहीं है.
लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सकारात्मक पक्ष भी स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं. शेयर बाजार, विदेशी मुद्रा भंडार और भारतीय रुपया अच्छी स्थिति में है. जीडीपी में प्रत्यक्ष कर का योगदान बढ़ा है. फिर भी विकास दर घटने के परिदृश्य को बदलने और तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को सतत आर्थिक-सामाजिक सुधार की जरूरत है. माहौल और तंत्र विकसित करना आवश्यक है. लेकिन सरकार को बड़े लक्ष्यों को पाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग, कृषि और सेवा क्षेत्र के योगदान का मौजूदा स्तर बढ़ाना होगा. रोजगार के अवसर पैदा करना होंगे. यह भी जरूरी है कि नोटबंदी और जीएसटी की शुरुआती दिक्कतों के कारण सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए प्रोत्साहन पैकेज पर विचार किया जाए.
निश्चित रूप से अब अर्थव्यवस्था को ऊंचाई देने के लिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की अहम भूमिका बनाई जानी जरूरी है. प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ योजना को गतिशील करना होगा. उन ढांचागत सुधारों पर जोर देना होगा जिससे निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके. ऐसा किए जाने से भारत में आर्थिक एवं औद्योगिक विकास की संभावनाएं आकार ग्रहण कर सकती हैं. पिछले दिनों विश् बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देकर भारत चीन और पश्चिमी देशों को पीछे छोड़कर दुनिया का नया कारखाना बन सकता है. यद्यपि इस समय दुनिया के कुल उत्पादन का 18.6 फीसदी उत्पादन अकेला चीन करता है. लेकिन कुछ वर्षो से चीन में लगातार सुस्ती एवं युवा कार्यशील आबादी में कमी और बढ़ती श्रम लागत के कारण चीन में औद्योगिक उत्पादन में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.
ऐसे में उत्पादन गुणवत्ता के मामले में चीन से आगे चल रहे भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आगे बढ़ने की अच्छी संभावनाएं मानी जा रही हैं. वैश्विक शोध संगठन स्टैटिस्टा और डालिया रिसर्च द्वारा मेड इन कंट्री इंडेक्स 2016 में उत्पादों की साख के अध्ययन के आधार पर कहा गया है कि गुणवत्ता के मामले में मेड इन इंडिया मेड इन चायना से आगे है. इस सव्रेक्षण के तहत लिए गए मानकों में उत्पादों की गुणवत्ता, सुरक्षा मानक, कीमत वसूली, विशिष्टता, डिजाइन, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, भरोसा, टिकाऊपन, सही उत्पादन और प्रतिष्ठा शामिल हैं. यूरोपीय संघ और दुनिया के 49 बड़े देशों को लेकर जारी इस इंडेक्स में उत्पादों की साख के मामले में चीन भारत से सात पायदान पीछे है.
प्रभावी मांग बढ़ाने और तेज विकास दर के लिए ऐसे प्रयास करने होंगे जिनसे आम आदमी की मुट्ठी में कुछ अधिक धन आए. उसकी क्रय क्षमता बढ़ जाए. महंगाई बढ़ाने वाले मध्यस्थों का दुष्चक्र रोकना होगा. सरकार द्वारा रोजगार बढ़ाने वाली विभिन्न योजनाओं और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सतत समीक्षा की जानी होगी. रोजगार सुरक्षा बढ़ाना होगी. इनके साथ-साथ श्रम सुधार, बैंकिंग सुधार और वित्तीय सुधार की डगर पर भी आगे बढ़ना होगा. नई पीढ़ी को हमें नये आर्थिक माहौल के अनुरूप पल्लवित-पुष्पित करना होगा.
आर्थिक स्थायित्व और विकास दर बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा पिछले तीन वर्षो में जो विभिन्न ऐतिहासिक नीतिगत फैसले लिए गए हैं, उन्हें शीघ्रतापूर्वक कार्यान्वित करना होगा. साथ ही, संसद में पारित अभूतपूर्व आर्थिक सुधारों को कारगर तरीके से लागू किया जाना होगा. उम्मीद करें कि मोदी सरकार नीति आयोग के सुधारवादी एजेंडे को कार्यान्वित करने के लिए कारगर प्रयास करेगी. ऐसा होने पर निश्चित रूप से भारत अगले 10-12 वर्षो में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई देगा.
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