केरल : वर्चस्व की लड़ाई
केरल भारत का सामाजिक-राजनैतिक रूप से बेजोड़ राज्य राज्य है. उपाख्यानों के मुताबिक, इसकी स्थापना ऋषि परशुराम ने की थी.
![]() भाजपा अध्यक्ष अमित शाह |
यह शकंराचार्य की भूमि है, जिन्होंने सनातन धर्म और भारतीयता के भाव को पुनर्जीवन दिया था. विश्व के संगठित ईसाई समुदाय का और सर्वाधिक प्राचीन गिरजाघरों में शुमार गिरजाघर यहां है. सर्वाधिक पुरानी मस्जिदों में शुमार चेरामन पेरुमल मस्जिद भी यहां है. इसी धरती पर लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित विश्व की पहली कम्युनिस्ट सरकार बनी थी.
केरल में ही बीती सदी में महान सामाजिक और आध्यात्मिक सुधार देखने को मिले. श्री नारायन गुरु, चत्ताम्बी स्वामी और अय्यानकली जैसे समाज सुधारक और आध्यात्मिक पुरुषों ने यहां जन्म लिया. केरल की जनसंख्या में 50-54 प्रतिशत हिंदू, करीब 20 प्रतिशत ईसाई और 27 प्रतिशत मुस्लिम हैं. केरल के राजनैतिक पटल पर बीते दशकों से कांग्रेस-नीत यूडीएफ और कम्युनिस्टों के नेतृत्व वाले एलडीएफ के बीच रस्साकशी चलती आ रही है.
इनके अलावा, समुदाय-आधारित राजनैतिक दल भी यहां हैं. मुस्लिम लीग राज्य के मुस्लिम मतदाताओं के करीब 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से पर वर्चस्व रखती है. केरल कांग्रेस और कांग्रेस-नीत यूडीएफ ईसाई मतदाताओं के करीब 80 प्रतिशत से ज्यादा को अपनी झोली में डाल लेते हैं. केरल की आबादी 3.5 करोड़ के आसपास है. ज्यादातर कांग्रेस और कम्युनिस्टों का राजनीति में वर्चस्व रहा है. केरल की आबादी में करीब 50 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले हिंदू मतदाताओं के वोट बैंक पर काबिज होने के लिए माकपा, कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा संघर्ष है. हिंदुओं में प्रमुखत: नायर, इझवा और ब्राह्मण जातियों का दबदबा है. पुलाया, अनुसूचित जाति/जनजाति भी हिंदू जातियों में शुमार हैं.
नायर समुदाय के मुद्दों को कभी नायर सर्विस सोसाइटी मुखर करती थी, जिसे भारत केसरी मन्नथ पद्माभन ने स्थापित किया था. इझवा समुदाय को श्री नारायन गुरु ने संगठित किया. उनके शिष्य डॉ. पल्पु ने इस समुदाय को एकजुट करने के लिए एनएनडीपी गठित की. पुलाया समुदाय को अय्यानकली ने संगठित किया. उन्हें गांधी जी ने ‘पुलाया राजा’ के नाम से पुकारा. बीती सदियों में बहुलतावादी समाज होने के बावजूद केरल में जातिवाद अपने चरम पर रहा. बहरहाल, एनएसएस और एनएसडीपी के राजनैतिक प्रयोग फलीभूत न हो सके. इसी प्रकार मन्नथ और आर शंकर के नेतृत्व वाले ‘हिंदू महामंडलम’ को भी सफलता नहीं मिल पाई. अब आरएसएस अपनी कोशिशों में जुट गई है. हिंदू आइकिया वेदी, विश्व हिंदू परिषद, क्षेत्र संरक्षणा समिति जैसे संगठनों के माध्यम से संघ ‘हिंदू हित’ का मुद्दा उठाकर राज्य में पैठ जमाने में जुटा है. माकपा के वोट बैंक में इझवा, नायर और अन्य हिंदू महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं. कांग्रेस नायर मतों और ट्रावनकोर ईसाइयों के मतों पर निर्भर रही है. भाजपा राज्य के चुनावी परिदृश्य में लंबे समय तक हाशिये पर रहने के पश्चात बीते विधान सभा चुनाव में उस समय अपना खाता खोल सकी जब उसके उम्मीदवार ओ राजगोपाल विजयी हुए. हाल के दिनों में केरल का सामाजिक माहौल कथित ‘लव जिहाद’ को लेकर गरमा गया.
जबरन धर्म परिवर्तन के आरोपों और युवाओं के आईआईएस में शामिल होने की खबरों से सामाजिक जीवन बाधित-सा हो गया है. हिंदुओं खासकर मध्यवर्गीय हिंदुओं में असुरक्षा का भाव पैदा हो गया है. पढ़े-लिखे हिंदू मध्य वर्ग के लोगों में यह भावना पनप गई है कि मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां उनके हितों की अनदेखी करती हैं. सेंटर लेफ्ट कांग्रेस, वामपंथी माकपा, भाकपा अपने-अपने मतदाताओं को अविश्वास और असुरक्षा के भय से उभार नहीं सकी हैं. ‘अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण’ का आरोप दिनोंदिन लोगों को सच्चा लगने लगा है. केरल के वरिष्ठ कांग्रेस नेता पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तो यहां तक कहा है कि ‘अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण’ हिंदू समुदाय के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है. केरल में भाजपा और संघ का उत्साह कुलांचे मार रहा है. उन्हें लगता है कि ‘मोहभंग से गुजर रहा हिंदू मध्य वर्ग’ आगे बढ़कर उनका साथ देगा. उनने फिल्म जगत और क्रिकेट जैसे खेल से सुरेश गोपी और श्रीनाथ जैसे दिग्गों को भी अपने साथ जोड़ लिया है.
ऐसी खबरें हैं कि ऐसे क्षेत्रों से कुछ अन्य दिग्गज भी जल्द ही भाजपा की सदस्यता ले सकते हैं. दरअसल, केरल के जनांकाक्षा पाले वर्ग की नजरों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक ब्रांड के रूप में उभरे हैं. नया-नया उभरा यह वर्ग आये दिन की हिंसा और मौतों से आजिज आ गया है. चाहे वामपंथी की मौत हो या दक्षिणपंथी की, माकपा के काडर की मौत हो या संघ कार्यकर्ता की-आम मलयाली को व्यथित कर देती है. केरल देश का सर्वाधिक शिक्षित लोगों का प्रांत है. खाड़ी देशों और पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) में यहां के लोग बड़ी संख्या में नियोजित हैं. शिक्षित होने के बावजूद यहां आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत भी ऊंचा है. परिवारों में विघटन, नशे का सेवन जैसे मुद्दे आमजन को हलकान किए हुए हैं. केरल के पुलिस महानिदेशक श्री सिबी मैथ्यू की डॉक्टोरल थिसिस के मुताबिक, राज्य में आत्महत्या करने वालों में 80 फीसद हिंदू होते हैं.
दुर्भाग्य से इन सामाजिक मुद्दों को लेकर किसी भी राजनीतिक पार्टी ने कोई अभियान नहीं छेड़ा. भाजपा राजनीतिक हत्याओं के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाने में सफल हुई है. हालांकि आम जन केरल को ‘राजनीतिक हत्याओं का मैदान’ कहे जाने से सहमत नहीं है. केरल भाजपा ने श्रीकुम्मानम के नेतृत्व में ‘जन रक्षा यात्रा’ निकाली. इसे झंडी दिखाकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रवाना किया था. बहरहाल, भगवान की धरती कहे जाने वाले केरल में आने वाले दिनों में राजनीति क्या रूप अख्यितार करती है, देखा जाना है. अभी तो इस सुंदर धरती पर राजनैतिक घटनाक्रम रोचक हो चला है, देखते ही ऊंट किस करवट बैठता है.
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