आरबीआई : तारी है महंगाई की चिंता

Last Updated 06 Oct 2017 12:22:04 AM IST

बुधवार 4 अक्टूबर को एक बार फिर वही हुआ जो अक्सर होता रहा है. महंगाई को थामने की चिंता भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के विद्वतजनों पर तारी रही और उन्होंने नीतिगत प्रमुख दरों में कटौती करने से परहेज किया.


आरबीआई : तारी है महंगाई की चिंता

उन्होंने इसकी भी परवाह नहीं कि चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर में पहले से ही गिरावट के अनुमान व्यक्त किए जा चुके हैं और देश में मैन्युफैक्चिरंग से लेकर पूरे अनौपचारिक क्षेत्र तक खासकर, जीएसटी को लेकर बदहाली की स्थिति है. मांग में कमी, निर्यात क्षेत्र की कमजोरी, इन सबका देश में रोजगार सृजन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिसकी सरकार फिक्र करती तो नजर आती है पर जब ऐसे अवसर आते हैं तो चूक जाती है.

देखा जाए तो सरकार के लिए प्रमुख ब्याज दरों में कटौती करने का अभी माकूल समय था क्योंकि महंगाई चाहे लाख सिर उठा रही हो, लेकिन बहुत हद तक वह नियंत्रण के दायरे में ही है. पर इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक हमेशा से ही दुविधा में दिखता नजर आया है. विकास दर के मुकाबले, महंगाई उसकी प्राथमिकता में हमेशा आगे रही है. दरअसल, सरकार अर्थव्यवस्था से जुड़े कई मोचरे पर परेशानियों का सामना कर रही है. सरकार चाहे लाख दुहाई दे. लेकिन सच्चाई यही है कि वह जीएसटी से देश के खासकर, छोटे और मझोले उद्योग धंघों पर पड़ने वाले असर से बखूबी वाकिफ है. यही वजह है कि गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय कंपनी सचिव संस्थान के एक कार्यक्रम में इस मुद्दे पर न केवल सरकार की चिंताओं की बात की बल्कि यह भी कहा कि जीएसटी काउंसिल इस पर पूरा विचार रही है और इसके बहुत आसार हैं कि जीएसटी की वर्तमान उच्च दरों में कमी की जाएगी और उद्यमियों की दूसरी समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाएगा.

दूसरी तरफ, महंगाई डायन भले ही अभी बेकाबू न हुई हो मगर इसके लक्षण फिलहाल अच्छे दिखाई नहीं दे रहे. मुद्रास्फीति दर पांच माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, जिसकी वजह से खाद्य वस्तुओं की कीमतों में खासा इजाफा हो चुका है. कोर महंगाई दर, जिसमें खाद्य वस्तुएं और इंधन शामिल नहीं हैं, में भी तेजी आई है. ‘कोढ़ में खाज’ यह है कि आने वाले समय में हालात और खराब हाने के ही आसार हैं क्योंकि खरीफ खाद्यान्न के उत्पादन का अनुमान भी बहुत अनुकूल नहीं है. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने जीडीपी अनुमान को इस वर्ष घटाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया, जबकि अगस्त में 7.3 प्रतिशत की भविष्यवाणी की गई थी.

जीडीपी पहली तिमाही में गिर कर 5.7 प्रतिशत पर आ चुकी है और पिछली पांच तिमाहियों से इसमें लगातार गिरावट आ ही रही है. जीडीपी वृद्धि दर की गिरावट ने दर्शा दिया है कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे सरकार के महत्त्वाकांक्षी कदमों ने कम-से-कम अल्प अवधि में अर्थव्यवस्था को जरूर नुकसान पहुंचाया है. सरकार पर विकास दर को बढ़ावा देने के लिए अब प्रोत्साहन पैकज देने का दबाव भी बढ़ने  लगा है. यह तय है कि अगर सरकार के लिए आगे की राह बहुत आसान नहीं है. राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए सरकारें चाहे वे किसी भी दल की क्यों न हों, ऋण माफी जैसे कदमों को बढ़ावा देती रही हैं और मौजूदा सरकार भी इसका कोई अपवाद नहीं है. केंद्र सरकार को राज्य सरकारों  पर दबाव डालना चाहिए कि वे ऐसी सस्ती लोकप्रियता और देश की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ने वाले कदमों से परहेज करें.

जीएसटी के वर्तमान स्वरूप और खासकर इसकी उच्च दरों और देश के छोटे और मझोले व्यापारियों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को लेकर भी सरकार को सोचना होगा और फौरी समाधान ढूंढ़ना होगा. हालांकि प्रधानमंत्री ने इसके संकेत दे दिए हैं कि इस दिशा में सरकार में मंथन  शुरू हो गया है और जल्द ही जीएसटी दरों को सरल बनाने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जाएंगे. सरकार को खासकर, बुनियादी ढांचों से संबंधित अंतराल को पाटने की आवश्यकता है और इस क्षेत्र से जुड़ी अहम निवेश परियोजनाओं को जितना जल्द अमलीजामा पहना दिया जाए, देश के विकास के लिए उतना ही फायदेमंद होगा. व्यवसाय करने की सुगमता को लेकर बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती रही हैं किंतु वे दिखें भी, यह सुनिश्चित करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है. प्रधानमंत्री ने बेशक यह कहा हो कि देश में सुधार से संबंधित दर्जनों फैसले लिये जा चुके हैं, लेकिन वे सुधार जमीनी स्तर पर भी दिखाई दें, इसकी दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.

शशि झा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment