संयुक्त राष्ट्र क्या बदलेगा पाकिस्तान?
जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अपने 20 मिनट के भाषण में भारत के खिलाफ जितना संभव था उतना जहर उगला, उसके बाद ही यह साफ हो गया था कि भारत की ओर से इसका करार जवाब दिया जाएगा.
क्या बदलेगा पाकिस्तान? |
भारत के पास इसके अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था. हालांकि पाकिस्तान की दुनिया में कोई इज्जत नहीं है. बावजूद इससे कुछ देशों के अंदर गलतफहमी पैदा हो सकती थी कि शायद पाकिस्तान का प्रधानमंत्री ठीक ही कह रहा है, अन्यथा भारत इस पर चुप क्यों रह गया? पिछले साल भी यही हुआ था. तब के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत के खिलाफ जहर उगला एवं कश्मीर को लेकर भारत के बारे में विकृत तस्वीर पेश की. जैसे इस बार प्रतिक्रिया देने के अधिकार के तहत भारत की प्रथम सचिव एनम गंभीर ने पाकिस्तान को टेररिस्तान कहते हुए आईना दिखाया वैसा ही उन्होंने पिछली बार भी किया था. इसके बाद अपने भाषण में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान के आरोपों का जवाब दिया और उसकी धज्जियां उड़ा दीं. वास्तव में खाकान अब्बासी एवं सुषमा स्वराज के भाषण में रेखांकित करने वाला पक्ष यह था कि जहां भारत ने एक आत्मविश्वास से भरे हुए विश्व कल्याण की भावना से भूमिका निभाने वाले वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी बात रखी वहीं पाकिस्तान की बातों में एक भटके हुए, विदृष्टिविहीन आरोप लगाने वाले देश की ध्वनि प्रबल थी.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अब्बासी ने अपने भाषण में 17 बार कश्मीर का नाम लिया और 14 बार भारत का. उन्होंने जो कुछ कहा वह पुराने ग्रामोफोन वाले रिकॉर्ड पर अटकी सुइयों की तरह था. मसलन, उन्होंने कहा कि भारत ने कश्मीरियों के संघर्ष को कुचलने के लिए 7 लाख सैनिकों को कश्मीर में तैनात कर दिया है. भारत सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को लागू करने से इनकार कर रहा है. हालांकि ऐसा कहते हुए वे भूल गए कि संयुक्त राष्ट्र ने उस प्रस्ताव में पहले पाकिस्तान को कश्मीर से अपनी सेना पूरी तरह हटाने के लिए कहा है. उसके बाद जनमत संग्रह की बात है.
अब्बासी कह रहे थे कि कश्मीर मुद्दे को न्यायसंगत, शांतिपूर्ण और तेजी से निपटाना चाहिए, जबकि भारत-पाकिस्तान से शांति वार्ता करने को तैयार नहीं है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को कश्मीर में एक विशेष दूत तैनात करना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र बार-बार कश्मीर में दखल देने से इनकार कर चुका है, लेकिन एक बचकाने देश की तरह पाकिस्तान हर बार उसे ही दुहराता है. सुषमा स्वराज ने जवाब जरूर दिया लेकिन उसमें एक वैश्विक शक्ति की तरह भारत की वि व्यवस्था के प्रति दृष्टिकोण की व्यापक झलक थी. दोनों के भाषणों से ही भारत और पाकिस्तान के चरित्र का अंतर साफ दिख रहा था. सुषमा ने अपने भाषण का आरंभ ही वि में उभरे वर्तमान संकटों से किया और अंत इसका समाधान कैसे होगा व वि कल्याण के संदर्भ में भारत की सोच क्या है इससे. उन्होंने हिंसा, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, समुद्री सुरक्षा, अपने देश से लोगों का पलायन, गरीबी, भूखमरी, रोजगार की कमी, साइबर खतरा आदि संकटों की चर्चा की.
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में 2030 तक के लिए संकटों से मुक्ति का जो एजेंडा तय किया था, उसकी चर्चा करते हुए साफ कहा कि अगर यह लक्ष्य पाना है तो वर्तमान स्थिति से बाहर निकलना होगा. इन सारे पहलुओं के द्वारा सुषमा ने पहले साफ कर दिया कि भारत की प्राथमिकताएं क्या हैं, भारत विश्व को किस रूप में देखना चाहता है, और दुनिया के लिए क्या करना चाहता है. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को उम्मीद के अनुरूप करारा प्रत्युत्तर दिया. सुषमा ने कश्मीर का एक बार भी जिक्र नहीं किया. उन्होंने विश्व के नेताओं को केवल यह याद दिलाया कि ‘शिमला समझौते’ और ‘लाहौर घोषणा पत्र’ में पाकिस्तान ने भारत के साथ मिलकर यह स्वयं तय किया है कि हम अपनी समस्या का आपस में बैठकर समाधान निकालेंगे. सुषमा जब 9 दिसम्बर 2015 को इस्लामाबाद गई थी तो उस समय के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ भविष्य के लिए बातचीत पर सहमति बनी थी और उसका नाम ही दिया गया था ‘कम्प्रिहेंसिव बाइलैटरल डायलॉग’ ताकि कोई संदेह न रह जाए कि किसी तीसरे पक्ष की इसमें भूमिका हो सकती है.
विश्व के नेताओं के सामने ये बातें रखनी इसलिए आवश्यक थी ताकि अब्बासी के इस झूठ का पर्दाफाश हो जाए कि पाकिस्तान तो भारत के साथ बातचीत करना चाहता है और भारत भागता है. सुषमा ने पाकिस्तान को आईना दिखाने के लिए जो तथ्य एवं तर्क दिए, उससे उसके नेतागण हिल गए होंगे. यह सामान्य बात नहीं है कि पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में भारत के साथ अफगानिस्तान और बंगलादेश की उलाहना भी सुननी पड़ी. ऐसा संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में पहली बार हुआ. भारतीय विदेश नीति के रणनीतिकार यह जानते हैं कि प्रत्युत्तर को किस सीमा तक ले जाना चाहिए.
अपने 21-22 मिनट के भाषण में तीन मिनट से थोड़ा ही ज्यादा समय सुषमा ने इस पर लगाया और उसके बाद संयुक्त राष्ट्र और विश्व की चुनौतियां और भारत की सोच वाले एजेंडे पर लौट आई. इस समय दुनिया के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद की है, परंतु संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच आतंकवाद की परिभाषा पर ही मतभेद हैं. यह भारत ही है, जो इस कटु सच को दुनिया के सामने रखने का साहस दिख सकता है कि सदस्य देश आपसी बैठकों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का संकल्प लेते हैं, संयुक्त वक्तव्य में इसे शामिल भी किया जाता है लेकिन व्यवहार में देश ऐसा नहीं करते.
भारत के पास यह कहने का पर्याप्त आधार है कि हम विश्व समुदाय के एक जिम्मेवार सदस्य के रूप में हर मामले पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं और यह किसी डर या विवशता में नहीं, अपनी पांच हजार वर्ष संस्कृति के कारण. भारत अपनी इस दृष्टि को दुनिया के सामने रखते हुए बता सकता है कि हम तो सबके सुख की कामना करते हैं और इसीलिए हमने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते की सफलता के लिए प्रतिबद्ध हैं. पाकिस्तान की सोच ही जब संकीर्ण है तो वह यह बात कहां से रख सकता था.
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