मुद्दा : सड़क हादसों पर लगे ब्रेक
भारत में हर वर्ष सड़क दुर्घटना में मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है. 2015 में 400 लोगों के प्रतिदिन मौतों की तुलना में पिछले साल 2016 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं में कम-से-कम 413 लोगों की प्रतिदिन मौत का आंकड़ा दर्ज किया गया.
मुद्दा : सड़क हादसों पर लगे ब्रेक |
जबकि देश में हर रोज 13 सौ से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें चार सौ से अधिक लोगों की मौत हो जाती है. इनमें आधे से ज्यादा लोग 18 से 35 वर्ष की आयु के होते हैं.
हाल में सड़क परिवहन मंत्रालय ने देश में 2016 में हुई सड़क दुर्घटनाओं के बारे में एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि देश में हर दिन 1317 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें 413 लोगों की मौत हो जाती है. यानी हर घंटे 55 दुघर्टनाओं में शिकार 17 लोगों की मौते हो रही हैं. यह ठीक है कि वर्ष 2015 की तुलना में वर्ष 2016 में सड़क दुर्घटनाओं में 4.1 प्रतिशत की कमी आयी है लेकिन इनमें मरने वालों लोगों की संख्या 3.2 प्रतिशत बढ़ी है.
रिपोर्ट के अनुसार 2016 में चार लाख 80 हजार 652 सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें एक लाख 50 हजार 785 लोगों की मौत हुई और चार लाख 94 हजार 624 लोग घायल हुए. इन दुर्घटनाओं में मरने वाले 69 हजार 851 लोग 35 साल की उम्र के थे, जो सड़क दुर्घटनाओं में मरे लोगों का 46.3 प्रतिशत है. मृतकों में 18 से 60 साल की उम्र के लोगों की संख्या 83.3 प्रतिशत है. वहीं इस रिपोर्ट में कहा कि देश के 13 राज्यों में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं. आंकड़े साफ बयां कर रहे हैं कि रफ्तार, शराब पीकर वाहन चलाने और हेलमेट जैसे सुरक्षा उपायों का इस्तेमाल नहीं करने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में तेजी से इजाफा हो रहा है.
रिपोर्ट में जिन 13 राज्यों में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, इनमें उत्तर प्रदेश 12.8 प्रतिशत घटनाओं के साथ पहले स्थान पर, 11.4 प्रतिशत के साथ तमिलनाडु दूसरे और 8.6 प्रतिशत के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है. सड़क दुर्घटनाओं में इन 13 राज्यों में ही सबसे अधिक 87.8 प्रतिशत लोग घायल हुए हैं और तमिलनाडु इस मामले में पहले स्थान पर है. अहम बात सड़क दुर्घटना रिपोर्ट में यह कहा गया है कि देश में राष्ट्रीय राजमागरे की संख्या कुल सड़क नेटवर्क के दो फीसद के बराबर है लेकिन वर्ष 2016 के दौरान 30 प्रतिशत दुर्घटनाएं राष्ट्रीय राजमागरे पर ही हुई हैं और इन दुर्घटनाओं में 37 प्रतिशत लोगों की जान गई हैं.
बहरहाल, दुनिया भर में हर साल बारह लाख लोग से ज्यादा दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. कई देशों ने सड़क सुरक्षा के उपाय अपनाए हैं, पर भारत जैसे देशों की इस मामले में स्थिति बताती है कि हालात दिनों-दिन खराब होते जा रहे हैं. जैसे-जैसे तेज रफ्तार गाड़ियां सड़कों पर आ रही हैं, दुर्घटनाओं में इजाफा हो रहा है. सिर्फ एक राज्य में नहीं, बल्कि पूरे देश की स्थिति यही है. पिछले दस साल की अवधि में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में साढ़े 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसी अवधि में आबादी में सिर्फ साढ़े 14 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
ज्यादातर मौतें टू-व्हीलर की दुर्घटना में हुई हैं और तेज और लापरवाह ड्राइविंग उनका कारण रही है. पिछले एक दशक के दौरान दस लाख से अधिक भारतीय देश की सड़कों पर अपना दम तोड़ चुके हैं, जो कि पूरी दुनिया में सबसे खतरनाक मानी जाती हैं. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक रोड एक्सीडेंट से हर साल भारत की इकोनॉमी को जीडीपी में 3 फीसद (55,000 करोड़ रु पये या 8.2 अरब डॉलर) का नुकसान होता है.
यह ठीक है कि दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए वाहनों के निर्माण और सड़कों के निर्माण में तकनीकी सुधार लाने की बात जरूर कही जा रही है. सड़क दुर्घटनाओं की संख्या और उनमें मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि पिछले साल प्रधानमंत्री ने अपने रेडियो संदेश ‘मन की बात’ में भी उसका जिक्र किया था. उन्होंने दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई और लोगों की जान बचाने के लिए कदम उठाने की घोषणा की. जाहिर है, सड़क दुर्घटनाओं की त्रासदी वर्तमान की सबसे घातक बीमारी बनती जा रही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की सड़क सुरक्षा 2015 पर जारी वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क दुर्घटना विभर में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है और मरने वालों में विशेष रूप से गरीब देशों के गरीब लोगों की संख्या में अविसनीय रूप से वृद्धि हुई है. हालांकि केंद्र सरकार सड़क दुर्घटनाओं की संख्या देखकर चिंतित है और इसकी रोकथाम के लिए प्रयासरत भी है. देखना है कि सरकार अपने मंसूबों में कब सफल होती है.
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