गहराती दोस्ती से चिंतित चीन

Last Updated 17 Sep 2017 01:39:46 AM IST

भारतीय पटरियों पर बुलेट ट्रेन को रफ्तार पकड़ने में अभी भले ही समय हो, लेकिन इसके सिग्नल ने ही एशिया समेत दुनिया के कई देशों में कूटनीतिक गति पकड़ ली है.


गहराती दोस्ती से चिंतित चीन

बुलेट ट्रेन की पृष्ठभूमि में भारत और जापान के बीच बने नए संबंधों ने वैश्विक मंच पर राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक रणनीति को उलट-पलट दिया है. मोदी-आबे के बीच बढ़ी निकटता ने कल तक भारत को आंखें दिखाने वाले चीन के माथे पर बल डाल दिए हैं, तो दूसरी ओर जापान को धमकाने वाला उत्तर कोरिया भी फिलहाल दबाव में आता दिख रहा है. जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के भारत दौरे के बीच उ.कोरिया ने जिस तरीके से जापान के आसमान से मिसाइल का परीक्षण किया है क्या वह अनायास है? या फिर जापान को खुली धमकी? शिंजो आबे ने इसे नाकाबिले बर्दाश्त बताया है. बावजूद इसके सवाल ये हैं कि क्या उ.कोरिया ने चीन की शह पर ऐसा किया है? या, फिर यह उसकी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की बेहतर समझ के अनुरूप है, जिसका मकसद अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत-अमेरिका-जापान और चीन-उ.कोरिया के ध्रुवों में बांटने की कोशिश है.
साबरमती के रिवरफ्रंट का व्यू तब भी हमने देखा था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूला झूल रहे थे और उधर चीन की आर्मी भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रही थी. उसी साबरमती के रिवरफ्रंट पर शिंजो आबे के साथ नरेन्द्र मोदी का साथ होना संभवत: चीन को नागवार गुजरा और उसने इस बार उ.कोरिया के हाथों भारत के साथ-साथ जापान को भी संदेश भिजवा दिया है. जापानी आसमान से मिसाइल छोड़े जाने का संदेश यही है.

चीन ने खुलकर भारत से यह भी कहा है कि बुलेट ट्रेन परियोजना में उसने दिल्ली से नागपुर और दिल्ली से चेन्नई रूट पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट तक तैयार कर लिया है और वह भारत को पूरा सहयोग देने को तैयार है. मगर भारत ने इस मसले पर बिना जवाब दिए यह साफ कर दिया है कि जापान ही उसका सही मददगार साबित होगा. बुलेट ट्रेन के शिलान्यास समारोह में पीएम मोदी ने ये साफ कर दिया था कि जापान से मिली मदद दीर्घावधि है और बहुत मामूली ब्याज पर है. इसकी अदायगी 15 साल बाद शुरू करनी है और कुल मिलाकर यह मुफ्त मदद के समान है. जाहिर है इस जापानी मदद के मुकाबले चीन या कोई और मदद भारत के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं रहेगी, भारत ने इसे साफ कर दिया है.
उ.कोरिया के मिसाइल परीक्षण की टाइमिंग की कूटनीति पर विमर्श से पहले जो चर्चा अंतरराष्ट्रीय जगत में हो रही थी, वह यह कि भारत और जापान स्वाभाविक दोस्त बनकर एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं. हिन्द महासागर और चीन सागर में जिस तरीके से चीन साम्राज्यवादी विस्तार में लगा हुआ है, उसका मुकाबला करने के लिए भारत और जापान को एक-दूसरे के करीब आना होगा. लिहाजा शिंजो आबे का भारत दौरा महज व्यापारिक रिश्ते बनाना या मजबूत करना नहीं है. इसका मकसद कूटनीतिक है. यहां शिंजो आबे का वह बयान गौरतलब है, जिसमें उन्होंने डोकलाम का नाम लिए बगैर इस मसले पर खुले तौर पर भारत का समर्थन किया. आबे ने कहा,‘हम ताकत के बल पर सीमा में किसी भी बदलाव का विरोध करते हैं. भारत का शक्तिशाली बनना जापान के लिए और जापान का पॉवरफुल होना भारत के हित में है. चीन ने जब भारतीय दावे वाले कश्मीर से होते हुए वन बेल्ट वन रोड ‘ओबीओआर’ की महत्त्वाकांक्षी परियोजना शुरू की और अफ्रीका, मध्य पूर्व और यूरोप के बाजार तक पहुंचने की रणनीति सामने रखी, तो भारत के साथ जापान भी चौंक गया. उसके बाद दोनों देशों ने मिलकर एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर प्रॉजेक्ट की योजना बनाई. गुजरात में हुए अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक की बैठक में प्रॉजेक्ट का जारी किया गया विजन डॉक्यूमेंट मोदी-शिंजो की साझा सोच थी.
भारत के पास नेतृत्व क्षमता और मानव शक्ति है तो जापान के पास तकनीकी श्रेष्ठता. और दोनों मिलकर अफ्रीकी देशों का कायाकल्प कर सकते हैं. इसका विश्वास खुद अफ्रीकी देशों को भी है. लेकिन अकेले यह काम न तो भारत के वश में है, न जापान के. ऐसे में भारत और जापान ने साझा पहल कर चीन की ‘ओबीओआर’ को चुनौती दी है. यह बात भी चीन को नागवार गुजरी है. बाजार पर असरदार नियंत्रण की लड़ाई अब अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों से छिटक कर दो एशियाई देशों चीन और भारत के दरम्यान शुरू हो चुकी है. खुद दोनों महाशक्तियों ने परोक्ष रूप से इस बदलाव में अपनी-अपनी भूमिका भी देखना शुरू कर दिया है. जापान खुलकर भारत के साथ आ खड़ा हुआ है तो अमेरिका का भी भारत-जापान को समर्थन है. यही वजह है कि डोकलाम में लम्बे गतिरोध के बाद भारत और चीन ने सम्मानजनक तरीके से युद्ध की स्थिति को टाला. इसके लिए चीन ने अपने देश में उन लोगों को सफाई दी है, जो डोकलाम में भारत से युद्ध करने के पक्ष में थे. चीन ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा है कि युद्ध का विकल्प था,लेकिन उसकी टाइमिंग भी सही हो, चीन ने इस पर ज्यादा ध्यान दिया. मतलब साफ है कि चीन भी भांप रहा है कि इस वक्त भारत को युद्ध से डराया नहीं जा सकता. कूटनीति ही रास्ता है.
चीन लगातार भारत पर दबाव बनाने की कूटनीति चल रहा है. भारत से सटे लम्बे सीमा क्षेत्र में अलग-अलग समय पर अलग-अलग क्षेत्र में तनाव पैदा करने वाले बयान इसी रणनीति का हिस्सा है. पाकिस्तान को आर्थिक मदद और ‘ओबीओआर’ में शामिल कर उसने भारत की चिंता बढ़ाई है. ऐसा नहीं है कि उसने पाकिस्तान को खुश करने के लिए या उससे दोस्ती की किसी जरूरत की रणनीति के तहत यह कदम उठाया है. वरना बुलेट ट्रेन के लिए जापानी मदद के बाद जब चीन ने भारत को मदद की पेशकश की, तो पाकिस्तान ने आगे आकर अपने लिए ऐसी मदद मांगी जिसे चीन ने ठुकरा दिया. यह बात खुद पाकिस्तान के मंत्री ने संसद में स्वीकार की है. इससे साबित यही होता है कि चीन के लिए पाकिस्तान को मदद बस रणनीतिक मकसद से है और यह मकसद भारत के खिलाफ है. भारत ने अगर रोहिंग्या मुसलमानों के मसले पर म्यांमार से कोई तकरार नहीं मोला है तो इसकी वजह भी चीन ही है. चीन भी म्यांमार को लुभाने में लगा है. उसने भी कभी रोहिंग्या मुसलमानों की फिक्र करने की जरूरत नहीं समझी. एशिया का शक्ति संतुलन भारत के लिए म्यांमार को नाराज करने की इजाजत नहीं देता. वैसे भारत ने संकट की घड़ी में मानवीय सहायता उपलब्ध कराकर रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति अपनी सद्भावना जरूर दिखलाई है.
जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की सफल भारत यात्रा को दरअसल चीन चुनौती के रूप में देख रहा है और इस बात को समझते हुए भी भारत और जापान दोनों इससे बेपरवाह हैं. इससे कहीं न कहीं संदेश साफ है कि चीन की साम्राज्यवादी और विस्तारवादी नीति का मुकाबला करने के लिए आज भारत और जापान साथ हुए हैं, तो कल बाकी देश भी हाथ मिला सकते हैं. इसलिए अच्छा यही होगा कि चीन अपनी महत्त्वाकांक्षा पर विराम लगाए. 

उपेन्द्र राय
लेखक ‘तहलका’ के सीईओ व एडिटर इन चीफ


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment