इतिहास : गांधी, जिन्ना और पाकिस्तान

Last Updated 15 Aug 2017 12:30:35 AM IST

महात्मा गांधी ने जब दो राष्ट्रों के सिद्धांत और लीग की पाकिस्तान की मांग के बारे में सुना तो चकित रह गए और उन्हें सहसा विश्वास नहीं हुआ.


गांधी, जिन्ना और पाकिस्तान

उन्होंने दो राष्ट्रों के सिद्धांत को असत्य बताते हुए कहा कि धर्म के परिवर्तन से राष्ट्रीयता नहीं बदलती. धर्म भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन उससे संस्कृति भिन्न नहीं हो जाती. बंगाली मुसलमान, हिन्दू बंगाली की ही भाषा बोलता है, वैसा ही खाना खाता है, वेशभूषा भी दोनों की एक जैसी होती है. गांधी ने यह भी कहा कि जिन्ना साहब का नाम भी मुझे तो हिन्दू नाम ही मालूम पड़ता है. पहली बार जब मैं उनसे मिला तो जान भी न पाया कि वह मुसलमान हैं. मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की जिन्ना की मांग को खारिज करते हुए स्वयं गांधी ने जिन्ना से पूछा-‘क्या उनके अपने बेटे हरिलाल गांधी की राष्ट्रीयता मुसलमान बन जाने से बदल गई है.’
लंदन से शिक्षा प्राप्त कर आधुनिक जीवनशैली जीने वाले मोहम्मद अली जिन्ना कभी धर्मनिरपेक्षता का नकली चोला ओढ़कर देश का बड़ा नेता बनने का ख्वाब देखते थे, लेकिन गांधी के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव ने जिन्ना की हसरतों और ऊंची महत्त्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया. वे स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी के प्रभाव से बुरी तरह चिढ़े रहते थे. जिन्ना के मुताबिक गांधी का मतलब था, जहर और कड़वाहट. जिन्ना गांधी से इतने भयभीत थे कि उन्हें गांधी जैसी अपमानजनक गूढ़ पहेली के साये में जीवित रहने के बजाय अपनी छोटी सी पार्टी का बतौर मुखिया लड़ते हुए मर जाना अधिक पसंद था. यही नहीं, मोहम्मद अली जिन्ना, गांधी को पाकिस्तान के निर्माण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा समझते थे. जिन्ना की पाकिस्तान की अंग्रेजों से मांग पर गांधी ने पूरे विश्वास से कहा था-‘अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद स्वतंत्रता के वातावरण में दोनों सम्प्रदाय मिलजुल कर रहना सीख लेंगे और बंटवारे की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.’ जिन्ना को गांधी के इस विश्वास से इतना डर लगता था कि वह आजादी के पहले ही बंटवारे की बात पर अड़ गए. गांधी का साफ मत था कि स्वतंत्रता के वातावरण में ही विभिन्न जातियों और सम्प्रदायों के परस्पर विरोधी दावों को सही ढंग से निपटाया जा सकता है.

जिन्ना के कुत्सित इरादों को गांधी बखूबी जानते थे और वे किसी भी कीमत पर देश का विभाजन रोकना चाहते थे. उन्होंने माउंटबेटन के सामने एक प्रस्ताव रखा की कैबिनेट मिशन के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलने के बावजूद मिस्टर जिन्ना को सरकार गठित करने का पहला मौका दिया जाना चाहिए.
गांधी जिन्ना की हसरतों से पूरी तरह वाकिफ भी थे, इसलिए उन्होंने देश को विभाजन से बचाने का ये अनूठा तरीका अपनाया था. हालांकि अन्यान्य कारणों से माउंटबेटन ने गांधी के इन विचारों से कभी जिन्ना को अवगत ही नहीं कराया. हिन्दू, मुसलमान और अंग्रेजों पर गांधी के प्रभाव से जिन्ना को जब लगने लगा कि पाकिस्तान बनना मुश्किल है तो उन्होंने साम्प्रदायिक दंगों का खतरनाक दांव खेला. इस बार जिन्ना की यह चाल कामयाब रही और पूरा देश झुलस गया. लेकिन गांधी अपने एक देश के विचार से फिर भी विचलित नहीं हुए. 31 मई 1947 को उन्होंने अपनी प्रार्थना सभा में कहा था की ‘यदि सम्पूर्ण भारत भी जलता रहे और मुस्लिम लीग तलवार की नोक पर इसे मांगते हैं तो भी हम पाकिस्तान स्वीकार नहीं करेंगे.’
7 अगस्त 1947 को सुबह जिन्ना अपनी बहन के साथ जब नई दिल्ली से कराची पहुंचे तो हवाई अड्डे से लेकर उनके सरकारी निवास तक हजारों लोग ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे. अपने सरकारी भवन की सीढ़ियां चढ़ते हुए जिन्ना ने नौसेना के लेफ्टिनेंट एस.एम. एहसान की ओर मुखातिब हो कर कहा,‘तुम्हें पता नहीं होगा कि मैंने इस जिंदगी में पाकिस्तान बनते देखने की उम्मीद नहीं की थी. इस मंजिल पर पहुंचने के लिए हमें खुदा का बहुत-बहुत शुक्रगुजार होना चाहिए.’ वास्तव में जिन्ना को गांधी के रहते पाकिस्तान का निर्माण एक सपना लगता था और जब साम्प्रदायिक राजनीति के बूते वह पाकिस्तान बनाने में कामयाब हो गया तो उन्हें अपनी सफलता पर भरोसा ही नहीं हुआ.

ब्रह्मदीप अलूने
लेखक


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