सवाल अब भी जिंदा

Last Updated 26 Jun 2017 05:37:15 AM IST

आज भारत के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, ओडिशा, राजस्थान सहित अन्य प्रांतों में किसानों के कर्ज माफी और कृषि उत्पाद के लाभकारी मूल्य तय करने की मांग को लेकर किसान आंदोलित हैं.


सवाल अब भी जिंदा

किसानों पर हमले और फायरिंग में किसानों के मरने की खबर आ रही है. इसी परिप्रेक्ष्य में आजादी के आंदोलन के समय अखिल भारतीय किसान सभा द्वारा 1936 में स्वामी सहजानन्द सरस्वती की अगुवाई में जमींदारी उन्मूलन के साथ किसानों के सभी प्रकार के कर्ज माफी का उठाया गया सवाल 81 वर्ष बाद भी जिंदा है.

26 जून भारत में किसान आंदोलन के जनक और किसान संघर्ष के सिद्धांतकार, सूत्रधार और संघषर्कार स्वामी सहजानन्द सरस्वती जी का महाप्रयाण दिवस है. इस मौके पर स्वामी जी द्वारा अंग्रेजी हुकूमत और जमींदारों के खिलाफ आवाज उठाना कितना साहस भरा अभियान रहा होगा आज उसे याद कर हमें ऊर्जा प्राप्त करने और स्वामी जी के अधूरे सपने को पूरा करने का वक्त है.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला के देवा ग्राम में जन्मा दैदीप्यमान, सत्यनिष्ठ, विचारक और लेखक, त्याग की मूर्ति, अनासत, क्रांतिकारी योद्धा, वेदान्त और मीमांसा के मर्मज्ञ नौजवान उत्तर प्रदेश में सामाजिक और जातीय भेदभाव को चुनौती देते हुए धार्मिक कट्टरता और ब्राह्म्णोत्तर जातियों को दंड धारण नहीं करने देने सहित अन्य आडम्बरों के खिलाफ चुनौती देते हुए सिद्ध किया कि ‘सभी योग्य व्यक्ति संन्यास ग्रहण की पात्रता रखता है.’ उन्होंने ‘मानव-मानव एक समान’ और ‘सर्वधर्म समभाव’ और मानवता का उत्थान एकमात्र उद्देश्य को प्रतिस्थापित किया.

स्वामी जी ने कहा ‘मैं ईश्वर को ढ़ूंढ़ने चला था मैंने उसे जंगलों और पहाड़ों में ढ़ूंढ़ा, ग्रंथों और पुस्तकों में भी कम नहीं ढंढ़ा मगर उसे पा नहीं सका. अगर वह मुझे कहीं मिला तो किसानों में. किसान ही मेरे भगवान हैं और मैं उन्हीं की पूजा किया करता हूं और यह तो मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई मेरे भगवान का अपमान करे.’ स्वामी जी ने आजादी के संघर्ष के दरम्यान पाया कि किसान अंग्रेजों से भी ज्यादा जमींदारों के शोषण से त्रस्त है.

उन्होंने सामंती व्यवस्था के अमानवीय रूप को करीब से देखा. फिर क्या था उन्होंने सामाज्यवादी और सामंती दोनों शोषण के खिलाफ एक साथ आंदोलन का एलान कर दिया. आजादी के संघर्ष के साथ किसानों की जिंदगी सुधारना उनका प्रमुख लक्ष्य बन गया. किसान-मजदूर राज ही उनका सपना था और कमानेवाली जनता की मुक्ति ही पूर्ण आजादी थी. स्वामी जी ने 1927 में पटना जिला के बिहटा में श्री सीताराम आश्रम बनाकर उसे किसान आंदोलन का केंद्र बनाया और पश्चिमी पटना किसान सभा की स्थापना की फिर 1929 में सोनपुर (छपरा) में बिहार प्रांतीय किसान सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें स्वामी जी को अध्यक्ष चुना गया, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह को प्रांतीय मंत्री और यमुना कार्यी, गुरु सहाय लाल और कैलाश बिहारी लाल को प्रमंडलीय मंत्री चुना गया.



किसान सभा ने सरकार के समक्ष कास्तकारी जमीन के स्थानांतरण के संबंध में किसानों को पूर्ण अधिकार देने और कास्तकारी जमीन में घर बनाने, कुंआ खोदने का अधिकार सुनिश्चित करने का सवाल रखा. 1936  में कांग्रेस के लखनऊ सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना हुई. स्वामी जी को उसका अध्यक्ष चुना गया और देश के प्रमुख नेता एन.जी रंगा, नम्बुदरीपाद, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, पंडित कार्यानन्द शर्मा, पंडित यमुना कार्यी, राहुल सांकृत्यायन, आचार्य नरेन्द्र देव, पी. सुन्दरैया आदि नेता किसान सभा से जुड़े और सुभाष चन्द्र बोस के साथ मिलकर स्वामी जी ने किसान आंदोलन को तेज किया. 

स्वामी जी ने बिहार के बिहटा चीनी मिल में तीन बार हड़ताल कराई. इसी प्रकार टेकारी, रेवड़ी, साम्बे, अंबारी, धरहरा, बरहिया टाल, कुसुम्बा टाल, गुजरात किसान आंदोलन, गया, शहाबाद, दरभंगा, सारण, पटना, भागलपुर, पंजाब सभी जगह आंदोलन का सुत्रपात किया. बिहार में बकास्त संघषर्, बंगाल में तेभागा संघषर्, बरली का आदिवासी संघषर्, त्रिपुरा, आंध्र, केरल सभी जगह किसान संघर्ष किसान सभा द्वारा पैदा किए गए लहरों का परिणाम था और आजादी के बाद कांग्रेस भू-सुधार संबंधी कानून बनाने को मजबूर हुई. किसान सभा के कायरे को लेकर स्वामी को विरोध और असहयोग का भी दंश झेलना पड़ा.


1934 में बिहार में भूकंप की त्रासदी में सहायता कार्य चला रहे स्वामी जी ने पाया कि उस आपदा की घड़ी में भी जमींदार किसानों पर कर वसूली के लिए बेरहमी से दवाब बना रहे हैं. उन्होंने महात्मा गांधी से इस बात की शिकायत की. गांधी जी ने उन्हें दरभंगा महाराज से बात करने की सलाह दी. स्वामी जी को यह सलाह अच्छी नहीं लगी. उन्होंने ने कहा दरभंगा महाराज स्वयं किसानों का सबसे बड़ा शोषक हैं और स्वामी जी ने गांधी जी से अपना रिश्ता तोड़ लिया. 1936 में कांगेस कार्यसमिति ने प्रस्ताव कर किसान-मजदूरों के वर्ग संघर्ष पर रोक लगा दिया. इसके खिलाफ स्वामी जी और सुभाष चंद्र बोस ने पूरे देश में ‘प्रतिवाद दिवस’ मनाया. कांग्रेस ने दोनों नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करते हुए कांग्रेस से निष्कासित कर दिया. 1940 में तो रामगढ़ में ‘अखिल भारतीय समझौता विरोधी सम्मेलन’ में तो दोनों नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कड़ा रुख लेते हुए 19 मार्च 1940 को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा कर आंदोलन तेज कर दिया. 19 अप्रैल 1940 को स्वामी जी को गिरफ्तार कर 3 वर्षो की सजा दे दी गई.


इसके खिलाफ सुभाष चन्द्र बोस ने ‘ऑल इंडिया स्वामी सहजानन्द डे’ मनाकर भारत बंद करा दिया. आज आजादी के 70 वर्ष के बाद कृषि विकास का चेहरा अरबों खर्चने के बावजूद लाखों किसानों की आत्महत्या, खेती छोड़ने, खेती छोड़ गांव से पलायन करने का बना हुआ है. हम आज तक खेती को लाभकारी नहीं बना सके हैं, किसान भूख और तबाही की खेती कर रहा है. वैीकरण के प्रभाव तथा खेती के आधुनिकीकरण के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बीजों पर कब्जा कर लिया है. हमारी हजारों वर्षो की टिकाऊ परम्परागत बीजों को नष्ट किया जा रहा है. आज आजाद भारत में किसानों के पीड़ा की दवा स्वामी जी के विचारों और संघर्ष के रास्तों में ही है. इस परिप्रेक्ष्य में पुन: स्वामी सहजानन्द का आह्वान जिंदा है.

 

 

डॉ. आनंद किशोर


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