नशे में हैं नशा मुक्ति केंद्र

Last Updated 26 Jun 2017 05:27:13 AM IST

समाज और सरकार, दोनों की इच्छा है कि देश में एक ऐसे स्वस्थ समाज का निर्माण हो, जिसमें अपराध और नशाखोरी जैसी समस्याओं का कोई स्थान न हो.




नशे में हैं नशा मुक्ति केंद्र

बिहार में शराबबंदी के व्यापक फैसले के केंद्र में भी यही उम्मीद दिखती है और पूरे देश में फैले सरकारी और निजी नशा मुक्तिकेंद्रों की स्थापना में भी. शराबबंदी का फैसला कितना कारगर होगा- यह समय ही बताएगा पर जहां तक नशा मुक्ति केंद्रों की मदद से लोगों का नशा छुड़ाने की कोशिशों की बात है, तो इसकी सच्चाई यह है कि ऐसे ज्यादातर केंद्र यातना की जगहें बन गए हैं. हाल की कुछ घटनाएं इसकी गवाही भी देती हैं.

हरियाणा के सिरसा स्थित गांव हंजीरा का एक व्यक्ति रमेश नशा मुक्ति केंद्र में छह महीने रहने के बाद घर लौटा तो उसने सबसे पहले अपनी पत्नी की हत्या कर दी, उसके बाद खुद भी जहर खाकर जान दे दी. पुलिस ने मृतक पति रमेश के खिलाफ ही मामला दर्ज किया है, लेकिन परिवार वालों का कहना है कि इसके पीछे राजस्थान के नशा मुक्ति केंद्र सिद्धमुख में दी गई प्रताड़ना है. वहां जिस किस्म की यातनाएं उसे दी गई, उससे रमेश की नशे की लत तो छूट गई लेकिन उसकी दिमागी हालत बेहद खराब हो गई.

कुछ ऐसा ही हादसा देश की राजधानी दिल्ली के एक नशा मुक्ति केंद्र में इलाज के नाम पर की गई हैवानियत के रूप में देखने को मिला. वहां कर्मचारियों ने दिल्ली के रोहिणी से नशा छुड़ाने आए युवक को बंधक बनाकर बेरहमी से मारा-पीटा, उसके यौन-उत्पीड़न का भी आरोप है. पुलिस ने केंद्र के सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग जब्त कर ली है, लेकिन आरोपी कर्मचारियों के खिलाफ केस दर्ज नहीं किया. हरियाणा के ही जींद के एक नशा-मुक्ति केंद्र पर भिवानी की निवासी इंद्रावती ने अपने बेटे राजेश कौशिक के साथ इलाज के नाम पर यातनाएं देने का केस दर्ज कराया है. जींद के नया जीवन नशामुक्त एवं पुनर्वास समिति के संचालकों ने भरोसा दिया था कि राजेश को वहां कोई तकलीफ नहीं  होगी, लेकिन आरोप है कि केंद्र में पहुंचते ही लाठी-डंडों से उसकी पिटाई की गई और ठंडे पानी में डुबोया, जिससे वह बीमार हो गया.



लगातार प्रताड़ना के कारण उसे अल्सर हो गया- यह एक अन्य अस्पताल की जांच में भी साबित हुआ. ऐसा क्यों होता है कि नशा मुक्ति केंद्र इलाज के नाम पर मरीजों से मारपीट और हैवानियत के साथ पेश आते हैं. असल में, ज्यादातर केंद्रों के संचालकों को पता ही नहीं है कि नशे की बीमारी से कैसे निपटा जाए? नशा मुक्ति केंद्र भी असल में फायदे का एक धंधा बन गए हैं. ज्यादातर संचालक नशे के शिकार व्यक्ति के परिजनों को बेहतरीन इलाज का आासन देकर छह महीने के लिए पैसे (औसतन 5 हजार से 25 हजार रु पये प्रति माह) ले लेते हैं लेकिन मरीज के साथ बेरहमी से पेश आते हैं. केंद्र छोड़ने वाले मरीजों की फीस वापस नहीं होती और न ही ऐसी कोई जगह है, जहां इनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सके. एक अनुमान है कि देश में 500 से ज्यादा स्थापित या वैध नशा मुक्ति केंद्र हैं, पर सैकड़ों ऐसे भी हैं, जो शहरों के कोने-नुक्कड़ में चलते दिख जाएंगे. असल में वैध नशा-मुक्ति केंद्रों की संख्या महज 20 फीसद है, शेष 80 फीसद अवैध ढंग से सिर्फ  पैसा बनाने के लिए चलाए जा रहे हैं. जानकारों का दावा है कि ज्यादातर नशा-मुक्ति केंद्र में इलाज कराने गए नशा पीड़ितों से इसीलिए मारपीट होती है क्योंकि एक तो ये केंद्र सिर्फ पैसा कमाना चाहते हैं और दूसरे, इन्हें मालूम ही नहीं है कि नशे की लत से कैसे निपटें? 

उल्लेखनीय है कि हमारे देश की सरकार ने नशा मुक्ति केंद्रों को सामाजिक न्याय मंत्रालय के तहत रखा है. समस्या यह है कि इस मंत्रालय की प्राथमिकता सूची में नशा मुक्ति सातवें स्थान पर आती है. इसकी बजाय इसे छुआछूत, बुजुगरे-महिलाओं और भिखारियों की समस्याओं पर ज्यादा फोकस करना पड़ता है. यूं सरकार ने कुछ अरसे में नशा मुक्ति की समस्याओं का नोटिस लेना शुरू किया है. पिछले साल केंद्र सरकार ने नशा प्रभावित राज्यों को नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम करने के लिए राज्यों को विशेष एडवाइजरी जारी की थी और कहा था कि हर प्रदेश अपने सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में नशीली दवा पर निर्भर महिलाओं और बच्चों के लिए अलग और विशिष्टीकृत नशा मुक्ति उपचार केंद्रों व सुविधाओं की स्थापना करे. अच्छा हो कि नशे को नैतिक समस्या की बजाय एक बीमारी माना जाए और इसे सामाजिक न्याय मंत्रालय के बजाय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन लाया जाए.

 

 

मनीषा सिंह


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