स्पीड ब्रेकर : जिंदगी पर लगती ब्रेक
स्पीड ब्रेकरों के कारण रोज 30 दुर्घटनाएं होती हैं. इनमें से नौ लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें से एक मौत तो दिल्ली में ही होती है.
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एम्स जेपीएन ट्रामा सेंटर के पूर्व निदेशक न्यूरो सर्जन एमसी मिश्रा ने अपने दो सालों के अध्ययन के बाद ये आंकड़े जुटाए हैं.
स्पीड ब्रेकर का काम यातायात को सुचारु बनाना है. लेकिन अपने यहां तो नियमों को ताक पर रख कर बिना किसी तय नाप-जोख के ईट-रोड़ी से बंप्स बना लिए जाते हैं. खासकर सर्विस रोड या रिहाइशी इलाकों में लोग अपने घरों के सामने यातायात की गति को सीमित करने के लोभ में इस तरह के व्यवधान शौकिया भी बनवाते रहते हैं.
यही नहीं महत्त्वपूर्ण सड़कों पर यदि ताकतवर या संपन्न व्यक्ति रहता है तो वह भी शेखी के लिए अपनी रिहाइश के इर्द-गिर्द ऊंचे-ऊंचे स्पीड ब्रेकर बनावा लेता है. ऐसे तमाम लोगों को स्पीड ब्रेकरों के कारण जीवन पर लगने वाली ब्रेक के बारे में बताया जाना जरूरी है. केंद्र सरकार के स्वाथ्य सचिव सीके मिश्रा का भी मानना है कि हर सड़क पर बने स्पीड ब्रेकर आपकी हड्डी तक तुड़वा सकते हैं. रीढ़, कूल्हे कमर की हड्डियों के क्षतिग्रस्त होने के यही कारण होते हैं.
बड़े शहरों या मुख्य मागरे पर स्पीड ब्रेकर हैं तो बी-सी कैटेगरी के शहरों की संकरी सड़कों पर बेतरतीब गड्ढे या खुली हुई नालियां वाहन को उछलने से नहीं रोक सकतीं. निजी वाहनों में लंबी यात्राएं करने वालों के लिए दुरुस्त रहना इन कारणों से भी बहुत मुश्किल है.
देश में जितने लोग आतंकवाद या प्राकृतिक आपदाओं से मरते हैं, उससे कहीं ज्यादा सड़क हादसों में मारे जाते हैं. आंकड़े बता रहे हैं कि 410 लोग रोज सड़क दुर्घटना में मारे जा रहे हैं. यह संख्या प्रति वर्ष तेजी से बढ़ रही है. सड़कों पर दुर्घटनाग्रस्त होने वालों में सबसे ज्यादा युवा होते हैं. यह अपने-आप में बहुत ही डरावना आंकड़ा है. मरने वालों में 14 वर्ष से कम के 20 बच्चे भी होते हैं. 2016 में देश भर में डेढ़ लाख लोगों के सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने की बात सरकार स्वीकार चुकी है.
इंटरनेशनल रोड फेडेरेशन के अध्यक्ष के अनुसार, जब तक हम सुरक्षित प्रयोग करने वाले, सुरक्षित सड़कें, सुरक्षित वाहनों, यातायात कानूनों को कड़ाई से लागू करने और उनका उल्लंघन करने वालों से सख्ती से निपटने के लिए मुस्तैद नहीं होते, तब तक स्थिति सुधरने की उम्मीद बहुत कम है. यह तय है कि यातायात कानूनों का पालन करने के प्रति लोगों में अरुचि है. वे आदतन लाल बत्ती फर्लागते हैं. कठिन मोड़ों पर भी संकेत देने में कोताही करते हैं. आनन-फानन कट मारते हुए चलना, उनकी आदत में शुमार हो चुका है.
जल्दबाजी के चक्कर में वे गाड़ी को जिग-जैग करते चलने को अपनी शान समझते हैं. दरअसल, लेन में चलना उनको उबाऊ लगता है. यह स्वीकारने में हमें जरा नहीं हिचकना चाहिए कि यातायात सुरक्षा में जुटे कर्मी कई दफा भ्रष्ट भी होते हैं. वे सड़क पर वाहनों को रोकने और उन्हें पकड़ने में सिर्फ इसीलिए रुचि लेते हैं कि उनकी मुट्ठी गरम हो जाए. वाहन चालक इसलिए भी नियमों को ताक में रखकर चलता है. मान कर चलता है कि नियमों की धज्जियां उड़ाता पकड़ा गया तो वर्दी वाले की जेब में सौ रुपल्ली ठूंस कर आगे बढ़ जाएगा.
दूसरे, रोड एक्सीडेंट का बड़ा कारण मोबाइल फोन भी बनते जा रहे हैं. कुल सड़क दुर्घटनाओं के आधे कारणों में चालक का फोन पर बातें करना भी शामिल पाया जाता है. बार-बार यातायात नियमों की दुहाई देने के बावजूद लोगों में व्यस्त सड़क से गुजरते हुए फोन पर व्यस्त रहने की आदतों पर कोई सुधार नहीं है. यह तय है कि लोगों की व्यस्तताएं बढ़ी हैं. उन पर जिम्मेदारियों के बोझ हैं. कई बार कॉल बहुत महत्त्वपूर्ण भी हो सकती है, लेकिन जान की कीमत पर फोन सुनना सिर्फ जोखिम ही है.
वाहन चालक ही नहीं, सड़कों पर पैदल यात्री भी बेहद लापरवाह रवैया अपनाते हैं. अव्वल तो अपने यहां फुटपाथों का टोटा है, जेब्रा-क्रॉसिंग भी विशेष सड़कों की रौनक भर हैं. परंतु पैदल यात्री भी भारी वाहनों से पटी पड़ी सड़कों पर चलते हुए प्राय: मुस्तैद नहीं रहते. विशेषज्ञ कहते हैं, हर चौथा कार एक्सीडेंट मोबाइल फोन पर बात या मैसेज करने के कारण होता है. जाहिर है, आप दोष किसी के मत्थे मढ़ते रहें पर आपको खुद सड़क पर चलते हुए सतर्क और मुस्तैद रहने की आदत अपनानी ही होगी. इससे होना वाला घाटा आपका है, जिसकी क्षतिपूर्ति असंभव है.
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