मुद्दा : कर चोरी और अमीर किसान
पिछले दिनों सर्वप्रथम नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय द्वारा कृषि आय पर कर लगाने की पैरोकारी के बाद भले ही वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कृषि आय पर कर लगाने की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया है.
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लेकिन सरकार के नीति-नियंताओं का एक वर्ग दबी जुबान से ही सही अमीर किसानों पर कर लगाने के पक्ष में है. उन्हीं में से एक सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम भी हैं, जो पिछले दिनों कहते सुने गए कि अमीर और गरीब किसानों में अंतर क्यों नहीं होना चाहिए?
बहरहाल, केंद्र सरकार इससे कितना सहमत है यह कहना तो कठिन है पर उसे पता है कि अगर वह अमीर किसानों को कर के दायरे में लाने की कोशिश करेगी तो विपक्ष को सरकार को घेरने और उसे किसानों का शत्रु ठहराने का मौका जरूर मिल जाएगा. संभवत: यही कारण है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया को आगे आकर कहना पड़ा कि जब सरकार किसानों की आय दोगुना करने के लिए प्रयासरत है तो कृषि आय पर कर लगाने का सवाल ही नहीं उठता. दो राय नहीं कि देश में किसानों की आर्थिक स्थिति बदतर है और अधिकांश किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि देश में किसानों का एक वर्ग ऐसा भी है जो अमीर है और कर चुकाने में सक्षम भी. ऐसे में अगर अमीर किसानों से कर लिया जाता है तो नि:संदेह यह गरीब किसानों की सेहत सुधारने में मददगार साबित होगा. ऐसा नहीं है कि राजनीतिक दल इस सच्चाई से अवगत नहीं है. उन्हें पता है कि अमीर किसानों की कमाई पर कर नहीं लगने से देश में कृषि से कमाई करने वालों की तादाद बढ़ रही है. वे कृषि की आड़ में कर की चोरी कर रहे हैं.
आंकड़ों पर गौर करें तो 2008 में तकरीबन दो लाख से अधिक लोगों ने कृषि से कमाई दिखाई थी. 2008 में कृषि से कमाई के तौर पर 17,116 करोड़ का खुलासा हुआ, जो 2011 में बढ़कर 2000 लाख करोड़ तक पहुंच गया. गौर करें तो यह रकम सकल घरेलू उत्पाद से कई गुना अधिक है. कृषि से इतनी बड़ी कमाई को लेकर सीबीडीटी भी हैरान है. उसने जांच के आदेश भी दिए हैं. एक अन्य आंकड़े के मुताबिक 2006 से 2015 के बीच तकरीबन तीन हजार लोगों ने एक करोड़ रुपये से ज्यादा की कृषि आय घोषित की है. आयकर विभाग ने कृषि से करोड़ों रुपये की कमाई की घोषणा करने वालों की जांच-पड़ताल के बिना ही स्वीकार लिया. फिर कैसे विश्वास किया जाय कि यह सही ही है?
क्या पता कि काले धन को सफेद करने के लिए इसे कृषि आय के तौर पर दिखाया जा रहा हो. गौर करना होगा कि इसे ध्यान में रखते हुए ही संसदीय समिति ने कृषि की आड़ में कर चोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है. समिति ने आशंका व्यक्त की है कि कृषि के नाम पर कर चोरी से देश के भीतर ‘टैक्स हैवन’ बन सकता है. गौरतलब है कि वित्त मामले संबंधी संसद की स्थायी समिति ने लोक सभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कृषि से एक करोड़ रुपये की आय दिखाने वालों की संख्या में अचानक वृद्धि को गंभीरता से न लेने पर वित्त मंत्रालय की खिंचाई भी की है. उल्लेखनीय है कि समिति ने वित्त मंत्रालय से जानना चाहा था कि क्या यह बात सही है कि देश में 2,746 करदाता ऐसे हैं, जिनकी कृषि से आय एक करोड़ रुपये से अधिक है? यह विडंबना है कि आयकर विभाग के पास इसका संपूर्ण ब्योरा नहीं है.
विभाग की मानें तो 2007-08 से 2015-16 के दरम्यान एक करोड़ रुपये से अधिक कृषि आय दिखाने वाले करदाताओं की संख्या 2,349 है. हालांकि, आयकर विभाग का यह भी कहना है कि यह संख्या 5 अप्रैल 2016 तक मिली जानकारी के आधार पर है. यानी कह सकते हैं आने वाले दिनों में इनकी तादाद बढ़ सकती है. गौर करने वाली बात यह कि आयकर विभाग ने स्वीकार किया है कि कृषि से एक करोड़ रुपये से अधिक आय दिखाने वाले करदाताओं की आय से जुड़े दस्तावेजों की जांच करने पर पता चला है कि उनकी यह कमाई कृषि से नहीं थी. मतलब साफ है कि कर की चोरी हुई है. इसका मतलब यह भी हुआ कि कृषि से करोड़ों की कमाई दिखाने वालों में बहुतेरे ऐसे हैं, जिनकी कमाई किसी और पेशे से हो रही है. लेकिन टैक्स बचाने के मकसद से वे इसे कृषि आय के रूप में दिखा रहे हैं. ऐसे लोगों के खिलाफ सख्ती क्यों नहीं होनी चाहिए? अगर सरकार ने काला धन को खत्म करने का बीड़ा उठा ही लिया है तो फिर बिना कृषि के ही अमीर बने किसानों को कर चोरी का मौका नहीं दिया जाना चाहिए.
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