पाकिस्तान : ताकत की जुबान समझेगा

Last Updated 05 May 2017 02:58:59 AM IST

पाकिस्तानी सेना ने हमारे दो जवानों की हत्या करके और उनके सिर काटकर जो बर्बरता दिखाई है, वह निश्चय ही उसकी नापाक मानसिकता का प्रतीक है.


पाकिस्तान : ताकत की जुबान समझेगा

इससे पहले भी पाक सैनिक जो वास्तव में सेना की वर्दी में आतंकवादी हैं, ऐसी घृणास्पद हरकत कर चुके हैं. दरअसल, पाक सरकार हो या पाक सेना उस पर अनुदार, असहिष्णु और धार्मिक उन्मादी आतंकी मानसिकता का वर्चस्व है. इसीलिए इस देश में हिन्दुओं, शियों, सूफी मतावलम्बियों, अहमदियों, बलूचियों, मुहाजिरों और ईसाइयों पर ‘ईश निंदा’ की आड़ में आतंकी हमले प्राय: होते रहते हैं.

पिछले माह धार्मिक उन्मादियों ने पाकिस्तान में मास मीडिया के एक छात्र मशाल खां की वली खां विश्वविद्यालय में इसलिए बुरी तरह पीटकर और गोली मारकर हत्या कर दी थी कि उस छात्र ने एक भारतीय उर्दू शायर अब्दुल हमीद अदम का यह शेर अपनी फेसबुक पर डाल दिया था-

दिल खुश हुआ है मस्जिदें वीरां को देखकर, मेरी  तरह  खुदा  का भी खाना खराब है
यद्यपि शेर में इस्लाम धर्म या ईश्वर का कोई अपमान नहीं किया गया है परंतु पाक के धार्मिक उन्मादियों को इतना क्रोध आया कि उन्होंने एक उदारवादी मुस्लिम छात्र की जान ले ली. जब पाकिस्तान की यूनिवर्सिटियों में यह स्थिति है तो कम पढ़े लिखे या अनपढ़ लोगों का क्या हाल होगा? मानवाधिकार संगठनों के अनुसार पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों विशेष रूप से हिन्दुओं और ईसाइयों को ‘ईश निंदा’ के झूठे आरोपों में फंसाकर उन्हें फांसी की सजा दिलाने की साजिशें की जाती हैं. मालूम हो कि इस इस्लामी राज्य में पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्ल अथवा अल्लाह और कुरान का अपमान करने वाले को पाक संविधान के अनुसार मृत्यु दण्ड तक दिया जा सकता है.

हालांकि, मानवाधिकार संगठनों एवं अल्पसंख्यकों ने इस कानून के विरुद्ध आवाज भी उठाई मगर पाक सेना व प्रशासन में बैठे कट्टरपंथियों को यह कानून चूंकि पसंद है, इसलिए यह कानून अभी भी पाक संविधान का अटूट अंग है. पाकिस्तान में सांप्रदायिकता और असहनशीलता केवल गैर मुस्लिमों तक ही सीमित नहीं है बल्कि अल्पसंख्यक मुस्लिम मसलकों (उप संप्रदायों) यथा शिया मुसलमानों, सूफियों के मजारों पर जाने वाले मुसलमानों और अहमदियों के साथ भी है. इस इस्लामिक राज्य में उन पर अत्याचार होते रहते हैं. इन मुसलमानों की मस्जिदों, दरगाहों, खानकाहों और इमामबाड़ों पर आए दिन बम धमाके होते रहते हैं. पिछले कुछ वर्षो में पाकिस्तान के विभिन्न प्रांतों में अल्पसंख्यक मुस्लिम मसलकों के हजारों अनुयायी हमलों और बम धमाकों में लश्करे झंगवी, तहरीके तालिबान और अन्य आतंकी संगठनों के हाथों मारे जा चुके हैं. वास्तव में आतंकवादी तो शियों, अहमदियों और सूफी संतों के अनुयायियों को मुसलमान नहीं काफिर या गैर मुस्लिम करार देते हैं.

अतीत में तो अहमदियों के सैकड़ों घरों और उनकी मस्जिदों को जलाया जा चुका है. हजारों अहमदी सांप्रदायिक दंगों में मारे भी गए थे. यही नहीं अब भी पाकिस्तान में अहमदी अपनी इबादतगाह को मस्जिद और स्वयं को मुसलमान नहीं कह सकते. भारत में भी कुछ मुसलमान अहमदी मतावलम्बियों को गैर मुस्लिम करार देने की मांग करते रहते हैं. यही धार्मिक उन्माद है, जिसमें डूबकर तालिबान, आईएस, तहरीके तालिबान और लश्करे झंगवी इत्यादि आतंकी संगठन कभी पाकिस्तान में स्कूलों के छात्र-छात्राओं को अपनी हिंसा का निशाना बनाते हैं तो कभी उदारवादी यूनिवर्सिटी बुद्धिजीवियों को. इस इस्लामी देश में हिंसा व तबाही के लिए वे अनुदारवादी, असहिष्णु और मजहबी उन्मादी युवक और मौलवी जिम्मेदार हैं जो युवाओं को जिहाद और मरने के बाद सुंदर हूरों (अप्सराओं) से स्वर्ग में मिलन की लुभावनी बातें करके आत्मघाती बम धमाकों के लिए उकसाते हैं. किंतु मजारों को नुकसान पहुंचाने और अन्य मसलकों के मुसलमानों का खून बहाने की शिक्षा का आखिर स्रोत क्या है?

वास्तव में जिन लोगों ने 1400 वर्ष पहले कर्बला (इराक) में पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्ल के नाती इमाम हुसैन का सिर काटने में संकोच नहीं किया था, उनके अनुयायी पाकिस्तानी सैनिक ही भारतीय जवानों के सिर काटते हैं. निश्चित रूप से ऐसे शैतानों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. लेकिन पाक सरकार और सेना ऐसे कातिलों को सजा नहीं पुरस्कार देती है. इसकी वजह पाक प्रशासन और सेना पर ऐसे अधिकारियों का वर्चस्व है, जो सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, कतर, दोहा आदि के शाह, खलीफाओं और सुल्तानों के मसलक से प्रभावित हैं. आज भी सऊदी अरब में शिया, या सूफी मसलकों के अनुयायियों को अपने मतानुसार धार्मिक अनुष्ठान करने की आजादी नहीं है.

सऊदी व कुवैत आदि में अन्य मसलकों की मस्जिदों पर कई बार हमले हो चुके हैं. सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में मजारों को नुकसान पहुंचाने वाले मौजूद हैं और वहां दरगाहों, मस्जिदों व इमामबाड़ों पर हमले होते रहते हैं. जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है कि पाकिस्तानी प्रशासन व सेना में वहाबी मसलक को मानने वालों का वर्चस्व है, अत: मजारों, मस्जिदों, दरगाहों व इमामबाड़ों पर हमले करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई नहीं होती. इसलिए पाकिस्तानी सेना और सरकार भारतीय जवानों के शवों के सिर कलम करने वालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई करेगी, इसकी संभावना बिल्कुल नहीं है. इसी प्रकार, हिन्दुओं और ईसाइयों के साथ न्याय होने की आशा भी नहीं की जा सकती. दरअसल, पाकिस्तान की नींव ही धर्म के नाम पर विभाजन के सिद्धांत पर रखी हुई है. ऐसे देश की सरकार और सेना की मानसिकता सर्वधर्मसमभाव की हो ही नहीं सकती. यह नापाक मानसिकता केवल ताकत की भाषा समझती है.

असद रजा
वरिष्ठ पत्रकार


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