अर्थव्यवस्था : सेंसेक्स तीस हजारी

Last Updated 29 Apr 2017 05:01:55 AM IST

मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स बुधवार 26 अप्रैल को तीस हजार बिंदुओं का आंकड़ा पार कर गया.


अर्थव्यवस्था : सेंसेक्स तीस हजारी

26 और  27 अप्रैल 2017 को दो दिन तीस हजार से ऊपर बंद भी हुआ. पर हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन यानी शुक्रवार 28 अप्रैल, 2017 को सेंसेक्स तीस हजार के शिखर से थोड़ा नीचे उतरकर आया. 111.34 बिंदु गिरकर 29,918 बिंदु पर बंद हुआ यानी अब सेंसेक्स ने तीस हजार का शिखर छू लिया है और उसके आसपास ही टहल रहा है. तीस हजार का सेंसेक्स यूं तो आम तौर पर किसी को परेशान नहीं करता, और एक दृष्टिकोण से देखें, तो अतीत के आंकड़ों के संदर्भ में सेंसेक्स का तीस हजारी होना बहुत बड़ी बात भी नहीं है.

सेंसेक्स ने 15000 का आंकड़ा अब से करीब दस साल पहले यानी जुलाई, 2007 में छुआ था. दस साल में सेंसेक्स दोगुना भर हुआ है. इस तरह से देखें, तो यह आंकड़ा बहुत चमकदार नहीं लगता है. पर यह आंकड़ा कई मायने में चिंताएं यूं ला रहा है कि हाल के वक्त में सेंसेक्स ने बहुत तेजी दिखाई है. पूरा 2016 सेंसेक्स के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा था. जिस स्थिति में सेंसेक्स 2016 के शुरू में था, उसी स्थिति में वह बंद भी हुआ था. पर 2017 ने जैसे सेंसेक्स को पंख  लगा दिए हैं. कुछ जानकार कह रहे हैं कि 2020 तक यानी करीब दो साल बाद सेंसेक्स अभी के करीब 30,000 बिंदुओं से बढ़कर 45,000 बिंदुओं पर चला जाएगा. 

यह गति खासी तेज मानी जा सकती है. जनवरी, 2017 से लेकर अब तक यानी 28 अप्रैल, 2017 यानी करीब चार महीनों में ही सेंसेक्स ने करीब 14.55  प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. चार महीनों में 14.55 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्शाती है कि शेयर बाजार बहुत रफ्तार से आगे जा रहा है. कुछ महीनों पहले यानी दिसम्बर 2016 में बाजार इतना आशावान नहीं था. पर जिन्होंने जनवरी, 2017 में सेंसेक्स में निवेश किया वह चार महीनों में ही करीब पंद्रह प्रतिशत के रिटर्न पर बैठे हैं. यह स्थिति शेयर बाजार में उन निवेशकों को खींचकर लाती है, जिन्हें शेयर बाजार के सही चरित्र का अंदाज नहीं होता है.

चार महीने में शेयर बाजार करीब पंद्रह प्रतिशत ऊपर चला गया, इसका मतलब यह नहीं है कि एक साल में पैंतालीस प्रतिशत चला जाएगा. शेयर बाजार में ऐसा गणित काम नहीं करता. 2014 में जिस साल मोदी सरकार बनी थी, उस साल शेयर बाजार ने एक  साल में तीस प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हासिल की थी. 2016 में लगभग कुछ भी नहीं मिला था. पर 2017 उम्मीदों को नई गति दे रहा है. शेयर बाजार में कुछ उद्योगों के शेयर तो इतनी रफ्तार से भाग रहे हैं कि उनके विशेषज्ञों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर हो क्या रहा है? मुंबई शेयर बाजार में सूचीबद्ध आटो सेक्टर की कंपनियां का सूचकांक जनवरी से अब तक यानी चार महीनों में ही करीब 23 प्रतिशत ऊपर जा चुका है. चार महीनों में आटो कंपनियों के शेयर 23 प्रतिशत कूद लिये हैं, तो इसका आधार तलाशे जाने की जरूरत है.

विश्लेषण बताता है कि दोपहिया वाहनों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है. कारों में भी कुछेक कंपनियों का परफारमेंस सकारात्मक रही है. उस परफारमेंस के बूते शेयर बाजार कूद गया है. आटो कंपनियों के मुनाफे समग्र तौर पर तेईस फीसद नहीं बढ़े हैं, पर उनके शेयर समग्र तौर पर 23 फीसद बढ़ गए हैं. अर्थव्यवस्था में बैंकिंग का बड़ा हिस्सा खासकर सरकारी बैंकों का हिस्सा डूबत खातों की समस्या से जूझ रहा है. पर बैंकिंग शेयर धुआंधार छलांग रहे हैं. मुंबई शेयर बाजार में सूचीबद्ध बैंकिंग कंपनियों के शेयरों का सूचकांक जनवरी से लेकर अब तक यानी 28 अप्रैल, 2017 तक 31.02 प्रतिशत उछल चुका है. यानी बैंकों के शेयरों में चार महीनों में तीस फीसद से ज्यादा का उछाल  आ चुका है.

यह उछाल परेशान करनेवाला है. उद्योग की हालत उतनी चमकदार नहीं दिख रही है, तो फिर कुछ बैंकों के शेयर तेज गति से क्यों कूद रहे हैं. इस सवाल का जवाब मिलता है-दो शब्दों  में आशंका  और आशा. भारत में शेयर बाजार में रकम आ रही है, विदेशी निवेशकों की और अब घरेलू निवेशकों की भी. उन्हें आशा है कि भारत के बाजार तेजी से ऊपर जाएंगे. विदेशी निवेशकों को समझ में आ रहा है कि भारत की साइज की या भारत से बड़े साइज की जितनी भी अर्थव्यवस्थाएं हैं वहां अनिश्चितताएं हैं. इधर, भारत में तमाम तरह की अनिश्चितताएं खत्म हो रही हैं. कुछ विदेशी निवेशक कुछ महीने पहले तक भारत को अनिश्चित बाजार बताते थे, अब वे ही निवेशक कह रहे हैं कि ऐसा नहीं है.

भारत उतना अनिश्चित नहीं रहा. भारत में गठबंधन की सरकारों के पुराने दौर खत्म हुए. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा तेजी से पूरे देश की राजनीति पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही है. जिस दिन दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम आए थे, उसी दिन शेयर बाजार ने तेज छलांग लगाई थी. यह छलांग आस्ति की छलांग थी कि अब देश का नेतृत्व कई सालों तक मोदी के पास रहनेवाला है. मोदी के विरोधी राजनेता भी मानते हैं कि उनके सामने कोई मजबूत राजनीतिक चुनौती नहीं है. शिवसेना तक का मानना है कि मोदी को चुनाव में हराना मुश्किल हो रहा है. हालांकि, यह बात तमाम राजनेताओं के लिए भले ही तनाव का कारण हो, पर शेयर बाजार के लिए बहुत ही सकारात्मक है. सेंसेक्स ने चार महीनों में पंद्रह प्रतिशत के रिटर्न दे दिए, इसके चलते कई नये और छोटे निवेशकों को यह भ्रम हो सकता कि शेयर बाजार में जोखिम के बगैर बहुत तेजी से रिटर्न कमाए जा सकते हैं. जहां बैंक डिपाजिट पर पूरे साल के डिपाजिट के बाद आठ प्रतिशत के आसपास का रिटर्न मिलता है, वहां चार महीनों में शेयर निवेश पंद्रह प्रतिशत का रिटर्न दे रहा है.

ऐसी सूरत में कई ऐसे निवेशक बाजार में आ जाते हैं, जिन्हें बाजार की प्रकृति का पता ही नहीं होता. आम निवेशक के लिए श्रेष्ठ यह है कि हर महीने एक तय निवेश सेंसेक्स में यानी देश की टॉप कंपनियों में करता रहे. इसे सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान यानी नियमित निवेश प्लान कहते हैं. हर महीने निवेश किया जाए, फिर पांच-सात साल बाद धीरज के साथ अपना निवेश देखा जाए, तो सेंसेक्स में आनेवाले उतार-चढ़ाव परेशान नहीं करते. आम और छोटा निवेशक दूर की सोचकर ही अपनी रकम पर रिटर्न ला सकता है. सेंसेक्स के चार छह महीने के परिणामों से प्रभावित होनेवाले इस बाजार में लुटाकर ही लौटते हैं.

आलोक पुराणिक
लेखक


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