नगर निगम : जीत के बाद की चुनौतियां

Last Updated 27 Apr 2017 03:00:28 AM IST

दिल्ली नगर निगर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बड़बोले आम आदमी पार्टी को चारों खाने चित्त कर दिया है. लेकिन इस जीत की एक बेहद खास बात है.


नगर निगम : जीत के बाद की चुनौतियां

वो यह कि भाजपा की जीत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़ी वजह बने हैं. क्योंकि अगरदिल्ली म्युनिस्पिल कापरेरेशन (एमसीडी) के कामकाज को लेकर यह चुनाव लड़ा जाता तो भाजपा की करारी हार होती. वजह यह कि कोई पार्टी किसी राज्य या संस्थान में अगर दस साल तक काबिज हो तो ‘एंटी इनकम्बेंसी’ प्रभावी होता है. इसके बाद माइनस ही होता है, प्लस नहीं होता. सो, परिणाम सत्ताधारी दल के खिलाफ ही जाते. लेकिन एमसीडी का चुनाव प्रधानमंत्री मोदी को सामने रखकर लड़ा गया. और हर जगह कमल खिल गया.

इस जीत की दो अहम वजहों में से एक तो मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना रहा तो दूसरी अहम वजह आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल के अहंकार व गलतबयानी और नासमझ ट्वीट ने पूरी कर दी. मसलन; पहला ट्वीट नोटबंदी को लेकर था, जिसमें इन्होंने भाजपा पर यह आरोप लगाया कि इन लोगों ने नोटबंदी के पहले सारे पुराने नोट खपा लिये. दूसरे ट्वीटमें हमला सीधे प्रधानमंत्री पर था. इस ट्वीट् में ‘मोदी पागल और कायर है’ कहा गया.

और तीसरा ट्वीट जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला था. इस ट्वीट में उन्होंने कहा कि, दिल्ली की जनता अगर मेरी पार्टी को वोट नहीं देगी तो अगर तुम्हारे बच्चों को डेंगू और चिकनगुनिया हो जाएगा तो इसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी. इसे लेकर अंदर-ही-अंदर जनता में काफी गुस्सा था.इन सब बातों से अलग हटके बात करें तो अब भाजपा के सामने ढेर सारी चुनौतियां हैं. प्रचंड जीत के बाद अब इन्हें खुद को विसनीय बनाना होगा.

इसके लिए भाजपा को चार बेहद महत्त्वपूर्ण काम को मुकाम तक पहुंचाना होगा. इसमें से पहला काम या पहली चुनौती है-तीनों म्यूनिस्पिल कापरेरेशन को एक करने की. शीला दीक्षित ने अलग-अलग नगर निगम का गठन किया था. लेकिन व्यावहारिक तौर पर देखें तो तीनों एमसीडी के एक होने के कई फायदे हैं.उदाहरण के लिए अगर तीनों को मिलाकर एक कर दिया जाए तो सरकार की काफी सारी फिजूलखर्ची बच सकेगी. अभी होता यह है कि तीनों एमसीडी के तीन-तीन मेयर, फिर डिप्टी मेयर, तीन कमिश्नर, तीन डिप्टी कमिशनर और उसके स्टाफ की फौज और उनकी गाड़ियों का काफिला. इन पर केंद्र सरकार का काफी सारा रुपया खर्च होता है.

अगर केंद्र सरकार चाहे तो अध्यादेश लाकर इसे अमलीजामा पहना सकती है. इस बात के संकेत विजय गोयल और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी दिए हैं. अगर जनता की नजर में अच्छा बनना है तो भाजपा को यह काम करना चाहिए. क्योंकि एमसीडी तीन हिस्सों में तोड़ी गई, यह जनता को अच्छा नहीं लगा है. इसी से जुड़ी हुई एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चूंकि महापौर किसी राज्य का प्रथम नागरिक होता है. लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं होता है. क्योंकि यहां तीन-तीन महापौर हैं. सो, किसी राष्ट्राध्यक्ष को रिसीव करने का यह विशेषाधिकार या रुतबा भी छिन गया है.

सो, जनहित में यह फैसला जा सकता है. इससे संबंद्ध एक और तथ्य यह है कि चूंकि, तीनों एमसीडी में सबसे अमीर निगम दक्षिण दिल्ली का है. जबकि बाकी दोनों पूर्वी दिल्ली और उत्तरी दिल्ली नगर निगम गरीब हैं. स्वाभाविक है कि तीनों के एकीकरण से यह संकट भी दूर हो जाएगा. दूसरी चुनौती है-एमसीडी को सीधे केंद्र से पैसा मिले. अभी यह व्यवस्था है कि पैसा दिल्ली सरकार के मार्फत एमसीडी को मिलता है. उसके दो फायदे होंगे. पहला, एमसीडी केंद्र के अधीन हो जाएगाऔर दूसरा, वेतन आदि खर्च के मामले में जो खींचतान दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच होती है, वह खत्म हो जाएगी. दिल्ली सरकार से एमसीडी का वास्ता खत्म हो जाए.

इससे एक और लाभ यह होगा कि एमसीडी खुद अपना रेवेन्यू इकट्ठा करे. तीसरी चुनौती है-कॉलोनियों के लिए नियम-कायदा बनाने की. दरअसल, दिल्ली में पांच तरह की कॉलोनियां स्वरूप में है. पहला- अवैध कॉलोनी (सरकारी जमीन पर बनी), दूसरा-नियमित कॉलोनी (जिन्हें बाद में एमसीडी या डीडीए ने नियमित कर दिया), तीसरा-रिसेटेलमेंट कॉलोनी यानी एक जगह से दूसरी ले जाकर बसाना (जेजे कॉलोनी), शहरी और ग्रामीण गांव और डीडीए स्वीकृत कॉलोनियां.

इनमें सबसे ज्यादा दिक्कत नक्शा पास कराने के वक्त आती है. जो कि भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा है. काम होना यह चाहिए कि बिल्डिंग बॉयलॉज में परिवर्तन करके रेट तय कर देने चाहिए. यह व्यवस्था अवैध और नियमित दोनों तरह की कॉलोनियों के लिए होना चाहिए. सीधे यह नियम बने कि जिनकी जमीन है, वह कीमत दे, नक्शा पास कराए और फिर घर बनाए. ऐसा करने से एमसीडी की आय में खासी वृद्धि होगी. पैसा सीधे सरकार के खाते में जाएगा. वेतन देने को लेकर जो किचकिच होती है, वह खत्म हो जाएगा. क्योंकि बिल्डिंग विभाग में बहुत पैसा है. चौथी और अंतिम चुनौती राजधानी दिल्ली को सुंदर, स्वच्छ और बीमारी रहित बनाने की है.

चूंकि, चुनाव मोदी के चेहरे को आगे करके लड़ा गया है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि स्वच्छता के नाम पर नगर निगम इसे गंभीरता से लेगा. राजधानी की तस्वीर बदलनी ही होगी. चिकनगुनिया, डेंगू और मलेरिया न फैले, इसके लिए इन्हें कूड़ा उठाने का और साफ-सफाई का बड़ा मिशन चलाना होगा और दिल्ली की जनता को दिखाना होगा कि हम सिर्फ बोलते नहीं बल्कि काम भी करके दिखाते हैं. इसलिए कि जब मोदी का नाम पार्टी ने चुनाव में इस्तेमाल किया है तो उन्हें इसे प्राथमिकता पर करके दिखाना होगा.

चुनाव भले ही नगर निगम का हुआ हो, मगर इसके सियासी मायने दूरगामी हैं. एक बात तो तय है कि अगले एक महीने के भीतर आप पार्टी में काफी उठा-पटक होगी. साथ ही 21 विधायकों का लाभ के पद का मामला जो चुनाव आयोग के पाले में हैं, उसमें इनके खिलाफ फैसला आएगा. फिर विधायकों के संख्याबल के आधार पर पुन: चुनाव कराने की मांग भी उठेगी और हालात भी वैसे ही बनेंगे. कुल मिलाकर आप पार्टी के बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है.
(लेखक दिल्ली विधान सभा के पूर्व सचिव हैं)

एस.के. शर्मा
लेखक


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