मुद्दा : सड़कों पर दबंगई का आलम
सड़क हादसों का एक पक्ष यह है कि इनमें शिकार होने वालों में ज्यादा संख्या नौकरी और दूसरे कामकाज के सिलसिले में घर से बाहर निकले युवाओं की होती है.
मुद्दा : सड़कों पर दबंगई का आलम |
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 29 वर्ष के बीच के युवाओं की मौत की प्रमुख वजह सड़क दुर्घटनाएं हैं. इस तरह पूरी दुनिया में सड़क पर हुई मौतों में एक चौथाई युवा होते हैं. लेकिन यह कष्ट तब और बढ़ जाता है जब सड़क पर युवाओं का उत्पात और दबंगई अराजकता के नये दृश्य पैदा कर देती है. यह समस्या सिर्फपिछड़े इलाकों और कस्बाई मानसिकता वाले क्षेत्रों की ही नहीं है, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली जैसे महानगर भी इससे जूझ रहे हैं. ताजा उदाहरण दिल्ली में बीच सड़क पर एक वायुसेनाकर्मी की खुलेआम पिटाई का है, जिसे तीन युवकों ने महज इसलिए बुरी तरह पीटा क्योंकि उसकी मोटरसाइकिल उनकी कार से छू भर गई थी.
वायुसेनाकर्मी सुजय के साथ सड़क पर हुई मारपीट का मामला शायद यूं ही दब जाता, पर सोशल मीडिया की बदौलत मामला देश के कोने-कोने तक पहुंच गया, जिससे स्थानीय पुलिस पर अपराधी मानसिकता वाले युवाओं की गिरफ्तारी संभव हो पाई. सड़क पर दबंगई का आलम यह है कि वायुसेनाकर्मी की पिटाई करने वाले युवकों ने बेखौफ होकर पिटाई का वह वीडियो खुद अपने दोस्तों को भी शेयर किया था, मानो उन्होंने कोई बहादुरी का काम किया हो. यह घटना दर्शाती है कि सड़क पर किस तरह हमारी आर्थिकसामाजिक हैसियत प्रतिबिंबित होने लगी है. देखा जा रहा है कि जो व्यक्ति जितना रसूखदार और पैसे वाला है, वहसड़क का इस्तेमाल करने के मामले में उतना ही दबंग है. ऐसे लोगों की वजह से सिर्फदुर्घटनाएं ही नहीं होतीं, सड़क पर दबंगई यानी रोडरेज के मामलों में भी उन्हीं की हिस्सेदारी होती है.
यही वजह है कि सड़क सुरक्षा के जो कानून बने हैं, उनका पालन करवाने में प्रशासनिक अमला नाकामयाब रहता है. इसके बाद रही-बची कसर ट्रैफिक तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पूरी कर देता है. हमारे देश में बिना किसी खास टेस्ट के किसी का भी ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है. वाहन चालकों को विधिवत ट्रेनिंग देने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. ऐसी स्थिति में अधकचरी जानकारी के साथ सड़क पर आया व्यक्ति दुर्घटना कर बैठता है. चूंकि, लोगों को पता है कि गलती करने के बाद वे रित देकर आसानी से छूट सकते हैं, इसलिए दुर्घटना करने का उन्हें कोई ज्यादा मलाल नहीं होता है. पुलिस भी दुर्घटनाओं के मामलों में बड़े लचर ढंग से साक्ष्य पेश करती है. इससे सड़क हादसों में दोषियों को सजा देने का प्रतिशत काफी है. निस्संदेह कोई भी दुर्घटना पीड़ादायक होती है और जिस तरह से देश में सड़क दुर्घटनाओं की दर बढ़ रही हैं, उसने देशव्यापी चिंता का माहौल पैदा कर दिया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार हमारे देश में औसतन हर घंटे 19 लोगों को सड़क पर हुए हादसों के कारण जान गंवानी पड़ती है, यह आंकड़ा प्रत्येक तीन मिनट में एक मौत का होता है. जिस तरह लाखों लोग (ज्यादातर युवा) हर साल सड़क दुर्घटनाओं के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं, उससे भारत दुनिया में शीर्ष देश बन गया है जहां सड़कें सबसे ज्यादा जानें ले रही हैं. जहां तक कानूनों की बात है, तो 105 देश में सीट बेल्ट को लेकर प्रभावी कानून हैं. वाहनों की गति को नियंत्रित रखने के कायदे 47 देशों में लागू हैं, जिनके मुताबिक शहरी इलाकों में गाड़ियों की स्पीड 50 किमी. प्रति घंटा रखने पर जोर दिया जाता है. इसी तरह ड्रंकन ड्राइविंग के संबंध में 34 देशों में सख्त कानून बनाए गए हैं, तो 44 देशों में हेलमेट संबंधी कानून हैं, जो ड्राइवर और पैसेंजर दोनों पर लागू होते हैं.
पर इन नियम-कायदों के बावजूद हादसे और उनमें होने वाली मौतें रु क नहीं रही हैं. ऐसा क्यों है? सड़क सुरक्षा को लेकर हमारे देश की प्राथमिकताएं कैसी हैं, इसका एक खुलासा कुछ समय पहले इस रिपोर्ट से हुआ है कि सड़क सुरक्षा के नाम पर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों ने कुछ वर्षो में अमेरिका, स्विटजरलैंड, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी तक के दौरे किए और ज्यादातर में सरकारी धन का उपयोग (दुरु पयोग) किया. ऐसे में सवाल उठता है कि इधर सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क सुरक्षा के लिए जो 11 हजार करोड़ रु पये आवंटित किए हैं, क्या उनका सदुपयोग हो पाएगा. यदि सरकार सड़क पर दबंगई रोकने के साथ राहगीरों के मददगारों की भी कोई मदद कर पाई, तभी हम उम्मीद कर पाएंगे कि विकास के ये पथरीले रास्ते सच में सुरक्षित होंगे.
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