बिहार : लड़कियों का तस्कर कौन?
हाल तक तो यही माना जाता था कि बिहार से सिर्फ कम आयु के लड़कों की ही तस्करी होती है.
बिहार : लड़कियों का तस्कर कौन? |
इन्हें घरों में, ढाबों, सस्ते होटलों में, कल-कारखानों में मजदूरी करवाने के लिए देश के तमाम राज्यों में लेकर जाया जा रहा है. पर अब भारत सरकार के मूल्यांकन की संस्था नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के साल 2016 के आंकड़े एक चौंकाने वाली नई जानकारी का खुलासा कर रहे हैं. एनसीआरबी ने यह खुलासा किया है कि बीते साल बिहार में 3037 अल्प वयस्क लड़कियां गायब हुई. यानी कि प्रतिदिन आठ या नौ. इसमें अधिसंख्य गरीब परिवारों की हैं. ये लड़कियां कहां और किस हाल में हैं, किसी को नहीं पता. कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक बेहद चिंताजनक खुलासा है.
आखिर बिहार की बेटियां कहां जा रही हैं? क्या इनका कभी पता चल पाएगा? ज्यादातर लड़कियां स्कूल-कॉलेज या कोचिंग आने-जाने के दौरान ही गुम हो जा रही हैं. बेशक, इस सारे खेल के पीछे मानव तस्कर सक्रिय हैं. इन्हें राजस्थान, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में बेच दिया जा रहा है जहां लैंगिक अनुपात में लड़कियां कम हैं. या फिर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरू, हैदराबाद, चेन्नई के वेश्यालयों में देह-व्यापार में जबरदस्ती धकेल दिया जाता है. उसके बाद इनका कहीं कुछ पता ही नहीं चल पाता. इनकी गुमशुदगी से जुड़े मामलों की फाइलों को भी कुछ महीने बाद बंद कर दिया जाता है. परिवारवाले भी किस्मत की मार समझकर बैठ जाते हैं और आप अगर बिहार के अखबारों को लगातार छानते रहते हैं तो पाएंगे कि बिहार से बच्चों को बड़े पैमाने पर देश के विभिन्न भागों में बाल मजदूरी कराने के लिए भी ले जाया जा रहा है.
मैं बिहार से सांसद होने के नाते इन घटनाओं पर अपनी नजर बनाए रखता हूं और दुखी होता रहता हूं. कुछ समय पहले मेरी एक खबर पर नजर पड़ी. खबर थी कि जीआरपी ने 48 बच्चों को मुजफ्फरपुर जंक्शन से मुक्त कराया था. मौके से 12 मानव तस्करों को भी पकड़ा गया. बच्चों को मजदूरी कराने के लिए मुंबई ले जाया जा रहा था. सभी रक्सौल से एलटीटी जाने वाली जनसाधारण एक्सप्रेस में सवार थे. मुक्त बच्चे पूर्वी व पश्चिम चंपारण के अलग-अलग इलाकों के थे. आखिर बाल मजदूरी करवाने वाले या लड़कियों का अपहरण करने वाले गिरोहों को पुलिस पकड़ क्यों नहीं पा रही?
बेशक, बिहारी बाल मजदूर ‘छोटू’ या ‘राजू’ की भूमिका को अंजाम देते हुए आपको देश के दूर-दराज इलाकों में मिल जाएंगे. मैं अपनी राजनीति और सामाजिक कामकाज के सिलसिले में देश के सुदूर इलाकों की खाक छानता रहता हूं. मुझे अफसोस होता कि मुझे निर्जन स्थानों पर चलने वाले छोटे-छोटे ढाबों में भी बिहारी बच्चे दिन-रात काम करते हुए मिल जाते हैं. अब दुर्भाग्य है कि इनके साथ बिहार की बेटियां भी शामिल हो गई हैं.
बिहार में लड़कियों का अपहरण कर उन्हें देह व्यापार के दलदल में धकेले जाने की खबर भी आए दिन मिलते ही रहते हैं. गुमशुदी के ज्यादातर मामले ऐसे ही हैं. पुलिस अधिकांश मामलों को प्रेम प्रसंग में भागने का मामला बताकर पल्ला झाड़ लेती है. पीड़ितों की मानें तो अधिकांश मामलों में पुलिस का रवैया टालमटोल वाला ही रहता है. बिहार में ऐसी सैकड़ों लड़कियां हैं, जिनके माता-पिता और परिजनों की आंखें इंतजार में पथरा रही हैं. बीते साल 3037 लड़कियों की ‘गुमशुदगी’ के मामले दर्ज हुए. यह सिर्फ लड़कियों के गुम होने का मसला नहीं,एक बड़े नेटवर्क की सक्रियता का है. एक दौर था जब ‘बचपन मत मुरझाने दो, बच्चों को मुस्कुराने दो’ जैसे नारे बिहार और देश में खूब गूंजते थे. पर अब बाल मजदूरी जैसे गंभीर सवाल पर कोई बहस तक नहीं होती. हां, कभी-कभार महानगरों में सेमिनार जरूर हो जाते हैं.
अखबार में फोटो और खबरें छप जाती हैं और फिर सब कुछ शांत हो जाता है. दरअसल, इन अभागे बाल-मजदूरों को आप हर छोटे-बड़े शहरों में ढाबों, दूकानों, फैक्टरियों, घरों वगैरह में दिन-रात काम करते हुए देखते हैं. कायदे से जिन हाथों में पेन-पेंसिल होनी चाहिए, वे सुबह से शाम तक मेहनत कर रहे होते हैं. चंद रु पये के लिए या सिर्फ पेट भरने के लिए. बाल मजदूरी की मूल समस्या गरीबी और अशिक्षा है. जब तक इसके कारणों को दूर नहीं किया जाएगा, जिससे बाल श्रमिक उत्पन्न हो रहे हैं, तब तक इस समस्या का हल नहीं हो सकता है. सरकार को गरीबी और अशिक्षा को खत्म करना होगा.
| Tweet |