तीन तलाक : शरीयत या शोषण?
इस प्रश्न कि क्या एक साथ एक ही बैठक में तीन तलाक देना पत्नी का शोषण है, का उत्तर देने से पहले हमें शरीयत (इस्लामी धार्मिक विधान), मौलवियों, बुद्धिजीवियों और इस मुद्दे पर कुरआन के निर्देशों पर विचार करना होगा.
तीन तलाक : शरीयत या शोषण? |
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की उस घोषणा पर भी सोचना होगा जिसमें कहा गया है एक साथ तीन तलाक तो सही है परंतु उसका गलत इस्तेमाल करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए.
बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद राबे हसन नदवी का कथन है कि ‘यदि कुछ लोग तीन तलाक का नाजायज इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उस स्थिति में कानून को बदलने की आवश्यकता नहीं बल्कि लोगों को अपना व्यवहार बदलने के लिए तैयार करने की जरूरत है.’ इसका तात्पर्य है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक ही बैठक में एक साथ तीन तलाक को शरीयत का अंग मानता है, मगर इसके गलत इस्तेमाल पर सामाजिक बहिष्कार की बात करता है. परंतु प्रश्न है कि इस बात को कौन तय करेगा कि तीन तलाक के अधिकार का किसी पति ने सही इस्तेमाल किया है या गलत? वास्तविक प्रश्न तो यह है कि एक साथ तीन तलाक देने का कानून सही है या गलत? इस प्रश्न के संदर्भ में उल्लेखनीय है कि इस्लाम धर्म अब अनेक (72 या अधिक) मसलकों (उप संप्रदायों) में बंटा हुआ है, जो शरीयत के कानूनों की व्याख्या अपने-अपने दृष्टिकोण से करते हैं. उदाहरणार्थ-अहले हदीस और शिया इत्यादि मसलक एक ही बैठक में तीन तलाक देने के कानून को इस्लाम विरोधी करार देते हैं.
भारत सहित पूरी दुनिया के एक सौ से अधिक देशों में उपरोक्त मसलकों के मानने वाले करोड़ों मुसलमान रहते हैं. लेकिन इस्लाम के हन्फी मसलक और कुछ अन्य मसलकों के मुसलमान एक साथ तीन तलाक को शरीयत का कानून मानते हैं. पूरे विश्व में तीन तलाक को सही मानने वाले मुसलमानों की जनसंख्या भी करोड़ों में है. यहां यह उल्लेख भी उचित होगा कि एक साथ तीन तलाक को शरीयत का अंग मानने वाले भी इस प्रकार की तलाक को अच्छा नहीं समझते हैं परंतु कोई पति यदि इस प्रकार तीन तलाक दे दें तो वह इसे शरीयत की दृष्टि से सही करार देते हैं, और कहते हैं कि तलाक हो गई है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी अनेक बन गए हैं. शिया धार्मिक नेता मौलाना मोहम्मद अतहर ने शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड गठित किया, जिसका नेतृत्व इन दिनों मौलाना यासूब अब्बास कर रहे हैं. यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक को शरीयत नहीं मानता है. इसी प्रकार मुस्लिम महिलाओं ने भी शाइस्ता अम्बर के नेतृत्व में मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग से एक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बनाया है. यह भी एक ही बैठक में तीन तलाक को गलत मानता है. इन बोडरे के गठन से साबित होता है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से मुस्लिम महिलाएं और कुछ मुस्लिम मसलक सन्तुष्ट नहीं हैं. इन असंतुष्टों का कहना है एक ही बैठक में तीन तलाक में मुस्लिम महिलाओं का शोषण है और कुरआन और इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ है. इस सिलसिले में वे कुरआन शरीफ के ‘सूरए निसा’ और ‘सूरए तलाक’ का हवाला देते हैं, जिसमें साफ कहा गया है कि तीन तोहर (मासिक धर्मो के बाद का समय) में यानी तीन महीनों में तीन तलाक दी जाएं और यह कि अल्लाह को तलाक पसंद नहीं है.
यहां बताना भी उचित होगा कि इस्लाम धर्म में धार्मिक कानून या शरीयत के मुख्य स्रोत दो हैं. एक स्रोत कुरआन शरीफ है. कुरआन पाक में प्रत्येक मसलक के मुसलमान का अटूट विश्वास है. दूसरा स्रोत हदीस है. हदीस पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद (सल्लम) के उन कथनों एवं निर्देशों को कहते हैं, जो उन इस्लामी हस्तियों द्वारा बयान किए गए हैं, जो पैगम्बरे अकरम के जीवनकाल में उनके साथ रहीं. परंतु इन हदीसों में जहां बहुत-सी सही हैं, वहीं कुछ कमजोर और संदेहास्पद भी. एक साथ तीन तलाक देने का स्रोत कुरआन पाक नहीं बल्कि हदीसें ही हैं. इसीलिए लगभग 22 मुस्लिम देशों सऊदी अरब, पाकिस्तान, इराक, ईरान, इंडोनेशिया, तुर्की, मिस्र आदि में एक ही बैठक में तीन तलाक पर विभिन्न ढंगों से अंकुश लगाया गया है. इधर, तीन तलाक के समर्थक भारतीय मुसलमानों और मौलवियों का कहना है कि हम इन इस्लामी देशों के कानूनों को नहीं मानते. प्रश्न है कि जब भारत में भी तीन तलाक के रिवाज पर बहस हो रही है और केंद्र सरकार और उप्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मणिपुर आदि सरकारें और स्वयं सर्वोच्च न्यायालय भी एक ही बैठक में तीन तलाक देने के पक्ष में नहीं है और इस पर कानूनी पाबंदी की मांग उठा रहे हैं, तब क्या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और हन्फी मसलक के मुसलमान ऐसी पाबंदी को स्वीकार करेंगे?
जहां तक मुस्लिम छात्रों विशेष रूप से छात्राओं का प्रश्न है तो वे खुल कर तीन तलाक का विरोध करते हैं. हन्फी मसलक के अनेक बुद्धिजीवी भी एक बैठक में तीन तलाक को गलत मानते हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस्लामिक अध्ययन के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी, जोधपुर के अध्यक्ष प्रो. अख्तरूलवासे तीन तलाक को कुरआन के खिलाफ बताते हैं. इसी प्रकार मशहूर शायर जावेद अख्तर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा तीन तलाक को जायज करार देने की घोषणा की आलोचना करते हुए इसे शोषण कहा है और इस पर पाबंदी लगाने की मांग की है.
वास्तव में 21वीं सदी में जब महिलाएं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महान कार्य कर रही हैं, तब उन पर तीन तलाक की तलवार से उनके मानवीय अधिकारों का हनन निश्चित ही चिंता का विषय है. वे अपने अधिकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं, तो ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड और उलेमा को भी इस मुद्दे पर खुले मन से इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. ऐसा नहीं किया गया तो उनका अड़ियलपन देश में मुस्लिमों की बदनामी का सबब बन जाएगा. वास्तव में एक साथ तीन तलाक शरीयत नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं का शोषण है.
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