जम्मू-कश्मीर : राष्ट्रपति शासन ही विकल्प

Last Updated 21 Apr 2017 06:08:48 AM IST

गर्मियों का मौसम अपने चरम पर पहुंचे उससे पहले ही समूचा जम्मू-कश्मीर एक बार फिर गदबदाने लगा है.


जम्मू-कश्मीर : राष्ट्रपति शासन ही विकल्प

राज्य में सुरक्षा व्यवस्था के मौजूदा हालात चिंताजनक हैं. ‘आजादी’ के नारे लगाते सड़कों पर उमड़ आने वालों की संख्या बढ़ने पर है, और वे ज्यादा हिंसक भी हैं. 17 अप्रैल को समूची घाटी के हजारों छात्र, जिनमें छात्राओं की संख्या भी खासी थी, सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन में शिरकत करने के लिए सड़कों पर उतर आए. हिज्बुल मुजाहिद्दीन कमांडर बुरहान वानी की याद में नारे ला रहे थे.

वानी को सुरक्षा बलों ने जुलाई, 2016 में मुठभेड़ में मार गिराया था. छात्रों के प्रदर्शन को धार देने की गरज से एक छात्र  संगठन ने 15 अप्रैल को पुलवामा स्थित डिग्री कॉलेज के छात्रों पर पुलिस कार्रवाई के विरोधस्वरूप कक्षाओं का बहिष्कार करने का भी आह्वान किया. स्थिति इतनी खराब हो गई कि प्रशासन को शैक्षणिक संस्थानों को फिर से बंद रखने का आदेश देना पड़ा. शायद ये संस्थान 21 अप्रैल के बाद भी न खुलें.

श्रीनगर और अनंतनाग संसदीय उप चुनाव की घोषणा से पूर्व तक सुरक्षा की स्थिति इतनी खराब नहीं थी. लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान स्थिति ने एकाएक अप्रिय रुख अख्तियार कर लिया. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों, जिनका नेतृत्व नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला कर रहे थे और जिनने तमाम भड़काऊ भाषण दिए और बेरोजगार कश्मीरी युवाओं और अन्यों को उकसाया, ने महबूबा मुफ्ती-नीत पीडीपी-भाजपा की गठबंधन सरकार को घेरने की कोशिश की. पत्थरबाजी करने वालों का भी यह कहते हुए समर्थन किया कि वे ‘राष्ट्र (इस मामले में कश्मीरी मुस्लिम राष्ट्र) के लिए ‘आजादी’ पाने की गरज से वे पत्थरबाजी कर रहे थे.’

चुनावी हिंसा में सुरक्षा बलों के साथ झड़पों में आठ व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ा. पूरी तरह बहिष्कार का आह्वान करने और भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ ज्यादा-से-ज्यादा घृणा फैलाने का मौका अलगाववादियों के हाथ लग गया था. प्रदर्शनकारी नहीं चाहते थे कि उप चुनाव कराए जाएं. अब जबकि चुनाव परिणाम की घोषणा हो चुकी है, कश्मीर की सड़कों पर गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा. 

इस बीच, ‘डिजिटल’ आतंकवाद भी तेजी से फैला है. अनेक वीडियो में सुरक्षा बलों के साथ हाथापाई और पत्थरबाजी की घटनाएं देखने को मिल रही हैं. पुलिसकर्मी तक सुरक्षित नहीं हैं. पुलिस विभाग ने पुलिसकर्मियों खासकर दक्षिण कश्मीर के निवासी पुलिसकर्मियों के लिए एडवाइजरी जारी की है कि ‘कुछ महीनों तक’ अपने गृह नगर जाने से भी बचें. कुलगांव और शोपियां में कुछ पुलिसकर्मियों के परिजनों पर हालिया हमलों के आलोक में यह एडवाइजरी जारी की गई है.

बीते पांच दिनों में कश्मीर घाटी की सड़कों पर अराजकता पसर आई है. अज्ञात बंदूकधारी घूमते देखे गए हैं, जो कई मामलों में सुरक्षा से चाक-चौबंद राजनीतिक कार्यकर्ताओं के घरों तक में जा घुसे और उन्हें भारत-विरोधी और आजादी-समर्थक नारे लगाने को विवश कर दिया. उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में शिरकत करने को लेकर आम जनता से माफी मांगने को विवश किया गया. उनके माफीनामे को उन्होंने मोबाइल फोनों पर रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर डाल दिया.

ये बंदूकधारी आतंकी हैं, जिनने हाल के समय में जब-तब इस प्रकार की वीडियो जारी कीं. एक वीडियो क्लिप में एके 47 थामे बंदूकधारी ट्रेड यूनियन नेता बशीर अहमद वानी से कहलवा रहे हैं कि वह अब किसी राजनीतिक या श्रमिक संगठन से नहीं जुड़ेंगे. उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं. वानी के मुताबिक, यह वीडियो उनके घर में जबरन घुस कर बनाया गया. उनसे ‘नारा-ए-तकबीर’; यहां क्या चलेगा? निजाम-ए-मुस्तफा; आजादी हमारा हक है’ जैसे नारे लगवाए गए. इसी प्रकार के एक अन्य वीडियो में वली मोहम्मद भट नाम के एक बुजुर्ग को राजनीतिक गतिविधियों में शिरकत करने के लिए मुस्लिमों से माफी मांगने को विवश किए जाते दिखाया गया है. भट पीडीपी से जुड़े हैं.

शायद ही कोई कश्मीरी नेता हो जो अपने निहित हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य में अनिश्चितता बढ़ाने में सहयोग न दे रहा हो. ‘मुख्यधारा’ के राजनेताओं और अलगाववादियों के बीच अंतर करना अब मुश्किल हो गया है. नई दिल्ली को समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर में अब लड़ाई इस्लामवाद और लोकतंत्र के बीच है. नई दिल्ली को अपने लक्ष्य-जम्मू-कश्मीर का हर कीमत पर भारत में पूरी तरह से विलय-को लेकर भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए. कारण, राज्य टूटा तो भारत भी टूट जाएगा.

प्रो. हरि ओम
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment