बैडमिंटन : छा रहा है भारत
साई प्रणीत के सिंगापुर ओपन के रूप में पहला सुपर सीरीज खिताब जीतने से एक बात तो साफ हो रही है कि भारतीय बैडमिंटन का परिदृश्य बदलने लगा है.
![]() बैडमिंटन : छा रहा है भारत |
इसके पीछे पुलेला गोपीचंद के प्रयास हैं और इन प्रयासों की सराहना करनी चाहिए. पहले सायना नेहवाल और पीवी सिंधु के ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप के पदक जीतने से बैडमिंटन जगत में भारतीय धाक जमने लगी थी. इसके बाद कुछ समय तक किदाम्बी श्रीकांत ने टॉप पांच में पहुंचकर पुरुष वर्ग में भी उम्मीद बंधाई. लेकिन अब श्रीकांत के साथ साई प्रणीत के भी जलवा बिखेरने से यह तो लगता है कि अब गोपी के ट्रेनी हर तरफ छाने लगे हैं.
आमतौर पर यह माना जाता है कि यदि दूसरी पंक्ति में भी चैंपियन की क्षमता वाले खिलाड़ी निकलने लगे तो मान लेना चाहिए कि देश में खेल की जड़ें गहरी होने लगी हैं. साई प्रणीत और किदाम्बी श्रीकांत दोनों ही सिंधु और सायना की पीढ़ी के ही हैं. लेकिन कोच पुलेला गोपीचंद की बेटी गायत्री गोपीचंद के सुर्खियों में आने से लगने लगा है कि विश्व बैडमिंटन पर भारतीय दबदबा बनने लगा है. गायत्री ने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए जकार्ता में एक अंडर-15 अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में एकल और युगल दोनों खिताब जीत लिए. गायत्री ने अभी तीन अप्रैल को अपने जीवन के 14 साल पूरे किए हैं. इससे यह अंदाजा तो लग ही जाता है कि बैडमिंटन में अच्छे दिन आने लगे हैं. वह कुछ समय पहले अपनी उम्र से ज्यादा के टूर्नामेंट में खिताब जीतकर इतिहास पहले ही रच चुकी हैं. प्रणीत के इस खेलमें आने की कहानी भी दिलचस्प है.
उनकी मौसी श्रीदेवी कस्तूरी बैडमिंटन खेला करती थीं और उन्हें राष्ट्रीय टीम में खेलने का पक्का भरोसा था. लेकिन जब वह अपना सपना साकार करने के करीब पहुंचने लगीं, तब ही दुर्घटना में घुटना चोटिल होने से सपना बिखर गया. इस पर कस्तूरी ने सोचा कि किसी न किसी को तो इस खेल में ढाला जाए. इस सोच के दौरान ही उनकी निगाह प्रणीत पर गई और वह आज सुपर सीरीज खिताब जीतने वाले देश के दूसरे शटलर बन गए हैं. इससे पहले श्रीकांत सुपर सीरीज खिताब जीत चुके हैं. प्रणीत ने इस खिताबी जीत के दौरान दिखाया कि उनमें संघर्ष करने की क्षमता है. वह श्रीकांत के खिलाफ पहला गेम हारने के बाद दूसरे में जोरदार संघर्ष करके 17-21, 21-17, 21-12 से विजय प्राप्त कर ली.
चैंपियन खिलाड़ी बनने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है और साई प्रणीत ने भी ऐसा ही किया है. उनके पिता ईस्ट गोदावरी में नौकरी करते थे. इसलिए वहां से गाचीबाअली आना बहुत मुश्किल था. इसलिए उन्होंने अपने ननिहाल में रहना शुरू किया. प्रणीत सुबह चार बजे बस पकड़कर 18 किमी की यात्रा करके गोपीचंद अकादमी जाया करते थे. प्रणीत के बारे में कहा जाता है कि वह कड़ी मेहनत से कतराने हैं. अभी करीब दो माह पहले अंतरराष्ट्रीय सर्किट में अच्छे परिणाम नहीं दे पाने पर गोपीचंद ने उन्हें सर्किट से बुलाकर कंधों की मसल्स मजबूत करने के साथ कड़ी मेहनत करने पर लगा दिया और अब इसका परिणाम सभी के सामने है.
बैडमिंटन की एक दिक्कत यह जरूर है कि देश का सारा टैलेंट एक केंद्र पर सीमित हो जाने से हैदराबाद के अलावा अन्य शहरों खासकर उत्तर भारत के शहरों की प्रतिभाओं को अच्छी सुविधाएं नहीं मिल पाने से उन्हें आगे बढ़ने में दिक्कत हो रही है. पिछले दिनों गोपीचंद ने इस समस्या के समाधान के लिए नोएडा में अपनी अकादमी को खोला है. वैसे दिल्ली में पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन मंजूषा कंवर और मधुमिता बिष्ट की अकादमी हैं. लेकिन इन दोनों अकादमियों में गोपीचंद अकादमी जैसी सुविधाएं नहीं हैं. इसलिए खिलाड़ियों को एडवांस ट्रेनिंग देना मुश्किल हो जाता है.
अगर यह व्यवस्था की जाए कि देश के विभिन्न शहरों में छोटी उम्र के खिलाहि़यों को तैयार करने का काम विभिन्न अकादमियां करें और खिलाड़ियों को ग्रेजुएशन कराने की जिम्मेदारी गोपीचंद के विभिन्न ट्रेनिंग सेंटरों को सौंपी जाए. पर इसका यह नुकसान जरूर हो सकता है कि यदि किसी का टैलेंट गोपीचंद को नहीं भाता है तो वह प्रतिभा खिलने से पहले ही मुरझा जाएगी. हर व्यवस्था में कुछ कमियां और खूबियां होती हैं. पर गोपीचंद ने अच्छे शटलर निकालने का सिलसिला शुरू किया है, इसलिए उनके प्रयासों को आगे बढ़ाने की जरूरत है.
| Tweet![]() |