विश्लेषण : और अब इस्लामिक नाटो

Last Updated 18 Apr 2017 06:36:11 AM IST

दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया के क्षितिज पर पहली बार धर्म पर आधारित सैनिक गठबंधन उभरा है, जिसे मुस्लिम नाटो या इस्लामिक नाटो भी कहा जा रहा है.


विश्लेषण : और अब इस्लामिक नाटो

कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे सभ्यताओं के संघर्ष का एक रूप मानते हैं, तो कुछ यह कह कर इसे नकार देते हैं कि इससे सभ्यताओं का संघर्ष नहीं इस्लाम का आंतरिक संघर्ष यानी शिया-सुन्नी वॉर तेज होगी. हालांकि इसमें कई शिया देश भी हैं, मगर ज्यादातर देश सुन्नी होने के कारण सुन्नी वर्चस्व कायम करने की कोशिश है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में नाटो और वारसा पैक्ट जैसे सैनिक गठबंघन बने. नाटो बना था सोवियत विस्तारवाद से यूरोप की रक्षा करने के लिए तो वारसा पैक्ट अमेरिका और नाटों के खिलाफ सोवियत संघ और उसके सहयोगी देशों का सैनिक गठबंधन था. मगर कोई सैनिक गठबंधन धर्म पर आधारित नहीं था. पहली बार धर्म के आधार पर सैनिक गठबंधन बना है-इस्लामिक मिलिट्री एलाएंस टू फाइट टेररिज्म (आईएमएएफटी). यह गठबंधन नाटो की तर्ज पर बनाया गया है. 2015 में सऊदी अरब ने ऐलान किया था कि दुनिया के 39 इस्लामी देश की इस्लामिक मिलिट्री तैयार करेंगे. इस सैन्य गठबंधन का मकसद इन देशों के बीच सुरक्षा मामलों पर सहयोग, सैन्य प्रशिक्षण, हथियारों का लेन-देन करना है.

इसका मकसद नाटो जैसा है. मान लीजिए किसी एक देश पर आतंकी हमला होता है, तो उस संगठन को  खत्म करने के लिए सभी देशों के संसाधन इस्तेमाल होंगे. आवश्यक सैनिक सहयोग दिया जाएगा. हालांकि, कहा यही जा रहा है कि इस गठजोड़ का मकसद आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई छेड़ना है. इस तरह यह कहने के लिए आतंकवाद के खिलाफ है, लेकिन एक किस्म का सैनिक संगठन है. इसमें 41 देश शामिल होंगे. लेकिन इसका असली चेहरा अब सामने आया है. उसे देखने के बाद करेला और नीम चढ़ा कहावत बरबस याद आती है. 2016 में राहिल शरीफ पाकिस्तानी सेना के जनरल पद से रिटायर हो गए. अब वे इस्लामी सैनिक गठबंधन की कमान संभालेंगे.

उनकी पोस्टिंग सऊदी अरब में होगी. हैं न मजेदार बात कि आतंकवाद से लड़ने के लिए यह संगठन सऊदी अरब ने तैयार किया है, जो खुद दुनिया में आतंकवाद की गंगोत्री माना जाता है. जब से उसके रेगिस्तान में पैट्रोडॉलर की बाढ़ आई है, वह दुनियाभर में इस्लाम के सबसे असहिष्णु संस्करण वहाबियत के प्रचार के लिए बेतहाशा पैसा फूंक रहा है. उस पैसे से दुनियाभर में आतंकी संगठन पैदा हो गए हैं. याद दिला दें कि अल कायदा, आईएस, तालिबान, बोको हराम, अल शबाब, लश्करे तैयबा, जैशे मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहीदीन आदि सभी बड़े आतंकी संगठन वहाबी हैं. कहीं न कहीं इनका कनेक्शन सऊदी पैसे के साथ है.

इसके अलावा, पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख को कमान सौंपी गई है. आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान सबसे ज्यादा अविसनीय है. आतंकवाद का अजायबघर है, जहां हर तरह का आतंकवाद मौजूद है. अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक मानते हैं कि पाकिस्तान बहुरूपिये की भूमिका निभाता रहा है. आतंकवाद का प्रायोजक भी है, और शिकार भी. कुछ लोग तो पाकिस्तान को आतंकवाद की उद्गम स्थली कहते हैं, जहां से अफगानिस्तान और भारत में आतंकवाद का निर्यात हुआ. बढ़ते आतंकवाद के कारण उसकी उसकी गिनती नाकाम देशों में होती है. आतंकवाद पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है. ऐसा देश आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का कैसे नेतृत्व कर पाएगा?

असल में ‘मुस्लिम नाटो’ ‘सुन्नी नाटो’ ज्यादा लगता है. यही वजह है कि पाकिस्तान में अंदरखाने यह एक विवाद का मुद्दा बन चुका है. पाकिस्तान की शिया आबादी इस गठबंधन में शामिल होने का विरोध कर रही है. शिया पाकिस्तान की आबादी में 20 प्रतिशत हैं. इस संगठन की कुछ बातें बड़ी हैरान करने वाली हैं. सबसे पहली यह कि यह संगठन आतंकवाद से लड़ने की बात करता है, लेकिन आतंकवाद से सबसे बुरी तरह पीड़ित दो देश इराक और सीरिया को इसमें शामिल नहीं किया गया, तो किस तरह से यह आतंकवाद से लड़ने की बात कर रहा है? ईरान को भी इस संगठन में शामिल नहीं किया गया है, इस वजह से यह सुन्नी देशों का एक संगठन नजर आता है, जिसका असली मकसद मुस्लिम देशों को शिया बनाम सुन्नी में बांटना है.

भारत में जनरल की नियुक्ति पर अचरज प्रगट किया जा रहा है. वे  पाकिस्तान के प्रतिष्ठित जनरलों में से एक हैं, लेकिन भारत के  मामले में पाकिस्तान के चुनिंदा आतंकी संगठनों के जरिए छद्म युद्ध की नीति पर चलते रहे. ऐसे में उनसे आतंकवाद से लड़ने के मामले में भरोसा कैसे किया जा सकता है. इस गठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इसका सारा खर्चा केवल सऊदी अरब उठा रहा है. इसलिए उसमें सऊदी अरब की ही चलेगी.  बाकी देश नाममात्र के सदस्य होंगे. भारत के लिहाज से यह घटना इस मामले में अशुभ है कि पाकिस्तान का सऊदी अरब के मुख्यालय में प्रवेश भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के मुद्दों में पाकिस्तान के प्रति सुन्नी मुस्लिम देशों का समर्थन बढ़ने का कारण बन सकता है.

कुल मिलाकर आतंकवाद से लड़ने के नाम पर इस्लामी देशों का सैनिक संगठन बनाने की कोशिश है यह. नाटो की तर्ज पर इस्लामी सैनिक गठबंधन बनाना सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश है, जो ‘चोर से कहो चोरी करो हवलदार से कहो जागते रहो’ कहावत की मिसाल है. एक तरफ सऊदी अरब और पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों की मदद करके दुनिया भर में आतंकवाद फैला रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उनसे लड़ने की आड़ में मुस्लिम नाटो जैसा सैनिक गठबंधन बना रहे हैं. पाकिस्तान के पड़ोसी और सऊदी अरब के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी ईरान ने इस गठबंधन पर कड़ी प्रतिक्रिया प्रगट की है, और कहा है कि इससे इस्लामिक देशों की एकता प्रभावित होगी. मुस्लिम देशों को शांति का गठबंधन बनाना चाहिए न कि सैनिक गठबंधन.

सतीश पेडणेकर
लेखक


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