शराबबंदी : लाजिमी है यह लामबंदी
औरतें एकजुट हुई हैं-इस बार पूरे देश की. तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की.
![]() लाजिमी है यह लामबंदी |
सभी को इस बात से ऐतराज है कि शराब की दुकानों को राजमागरे से क्यों हटाया जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश में कहा था कि राष्ट्रीय और राज्य राजमागरे के 500 मीटर के दायरे में शराब नहीं बेची जा सकती. किसी दुकान, रेस्त्रां, होटल में नहीं-ठेके बंद किए जाएं क्योंकि शराब पीकर लोग गाड़ियां चलाते हैं, और दुर्घटनाओं के कारण मौत के शिकार होते हैं. पर औरतें नाराज हैं क्योंकि इससे शराब की बिक्री शहरों के भीतर बढ़ सकती है, और औरतों को ही इसका सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. शराब औरतों को अपनी दुश्मन लगती है.
शराब कई तरह की मुसीबतों को जन्म देती है. पियक्कड़ पति अपनी कमाई का मोटा हिस्सा अपनी लत पर उड़ा देता है. खमियाजा औरतों को उठाना पड़ता है क्योंकि आम तौर पर घर चलाने का काम उन्हीं के जिम्मे होता है. इसके अलावा पति पीकर धौंस जमाने का सुपात्र बीवी को ही मानता है. छींटाकशी, ताने, पिटाई, धुनाई सब औरत के हिस्से आती है. अक्सर बलात्कार (जिसे कानूनी मान्यता तक नहीं) तक की नौबत आ जाती है. पति के शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न का शिकार वही होती है.
ये सिर्फ कोरी बातें नहीं हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2014 के आंकड़ों से भी इनकी पुष्टि होती है. आंकड़े कहते हैं कि शराब के कारण महिलाओं को 70 से 85 फीसद तक के अपराध झेलने पड़ते हैं. औरतें इसीलिए चाहती हैं कि शराबबंदी भले न हो, लेकिन कम से कम शहरों के बीचोंबीच तो शराब न ही बिके. इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. अलग-अलग मोर्चा बनाए हुए हैं, लेकिन फिर भी साथ-साथ हैं.
तमिलनाडु के 50 किलोमीटर दूर तिरुवल्लूर में औरतों के जत्थे ने एक विरोध मार्च में पुलिस वाले पर हमला बोल दिया तो मध्य प्रदेश के रायसेन में शराब की दुकान को आग लगा दी गई. सीकर, राजस्थान में दुधमुंहे बच्चों को थामे औरतों ने शराब की दुकान के बाहर धरना दिया. शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में राजमार्ग ही रोक दिया. मेरठ में शराब के ठेकों के बाहर देवी-देवताओं की मूर्तियां लगाकर मंत्रोच्चार व भजन गाने शुरू कर दिए. उत्तराखंड के रु द्रप्रयाग में शराब की बोतलों को मंदाकिनी नदी में उड़ेलकर प्रदर्शन किए. गुरुग्राम में शराब की दुकानों पर ताले जड़कर गुस्सा जाहिर किया. यों हमारे देश में कई राज्यों में शराबबंदी लागू है.
गुजरात, केरल, मणिपुर और नगालैंड तथा लक्षद्वीप में कई सालों से शराब पर प्रतिबंध है. महाराष्ट्र के तीन जिलों-वर्धा, गढ़चिरौली और चंद्रपुर में भी शराब पीने पर पाबंदी है. पिछले ही साल बिहार में शराबबंदी के चुनावी वादे ने नीतीश कुमार के महागठबंधन के सिर पर जीत का ताज पहनाया था. नीतीश ने भी चुनावी वादा निभाया. सत्ता संभालने के बाद राज्य में शराबबंदी लागू कर दी. यह बात और है कि इस कानून में भी कई किस्म के लूपहोल्स हैं, लेकिन औरतों ने अहसास किया कि उनकी बात सुनी गई.
औरतों की बात सुनी गई-यही विास बड़ा आसरा देता है. उनके लिए शराब मॉरल इश्यू नहीं दुखद जीवन का कारण है. यों उनके खिलाफ होने वाले अपराधों के बहुत से कारण होते हैं, लेकिन इस एक वजह को वे जड़ से उखाड़ना चाहती हैं. चाहती हैं कि शराब की दुकानें जहां-कहीं भी रहें, कम से कम शहर के बीच से तो उठ जाएं. उनमें से कई पूछती हैं कि क्या अदालती आदेश के बाद सड़क दुर्घटनाएं कम हो जाएंगी? शायद नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने सड़क परिवहन और हाइवे मंत्रालय के प्रकाशन ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएं’ (2015) के हवाले से कहा है कि शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण 4.6 फीसद सड़क दुर्घटनाएं होती हैं. एनसीआरबी के आंकड़े भी कहते हैं कि इसके कारण 2 फीसद सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, लेकिन मंत्रालय और एनसीआरबी यह नहीं बताता कि इनमें से कितने मामले राजमागरे पर होते हैं.
इसीलिए यह तर्क बेमानी है कि राजमागरे पर सड़क दुर्घटनाओं का एकमात्र कारण शराब है.यों सभी सरकारें शराब पर पाबंदी के बारे में सोच भी नहीं सकतीं. इससे करोड़ों के राजस्व का नुकसान हो सकता है. पर औरतों सरकारी आंकड़ों के उलझाव को नहीं जानतीं. सिर्फ इतना जानती हैं कि उनके मोहल्ले में शराब न बिके. बिके तो कहीं दूर. वैसे व्यसनी के लिए दूर क्या और पास क्या? फिर भी औरतें अपने गली-मोहल्लों को सुरक्षित रखना चाहती हैं. आपको उनकी आवाज सुननी होगी क्योंकि एकजुटता कई बार बड़े से बड़ा फैसला बदलवा देती है.
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