बजट : दिशा सही लेकिन उम्मीद से कम
विमुद्रीकरण की समस्याओं से जूझते आम आदमी को बजट 2017-18 से बड़ी उम्मीदें थीं. यदि उस दृष्टि से देखें तो लगता है कि यह बजट कुछ कम रह गया.
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आयकर में छूट की सीमा तो नही बढ़ी, हां रेट जरूर आधा कर दिया गया, जिससे 5 लाख की सालाना आमदनी वालों को अब 12,500 रुपये टैक्स कम लगेगा. लेकिन उससे ऊपर राहत के लिए शायद अगले बजट का इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन लघु एवं मध्यम उद्योगों को राहत के नाम पर 50 करोड़ से कम के टर्नओवर वालों को अब कॉरपोरेट टैक्स में 25 प्रतिशत राहत जरूर मिलेगी.
उम्मीद की जा रही थी कि विमुद्रीकरण के बाद काला धन बैंक खातों में जमा करने वालों से टैक्स वसूल करते हुए बजट के आकार को बढ़ाकर शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला बाल विकास समेत सामाजिक क्षेत्रों पर खर्च बढ़ेगा. बजट वहां भी उम्मीद से कम रह गया प्रतीत होता है. हालांकि बजट का आकार पिछले बजट की तुलना में लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये बढ़ाकर 21.47 लाख करोड़ रुपये रखा गया है, लेकिन सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में अपेक्षित आवंटन दिखाई नहीं देता. चाहे देश में राजकोषीय घाटे का विषय हो अथवा विदेशी भुगतान घाटे की बात. देश पहले से बेहतर स्थिति में है.
विमुद्रीकरण के अल्पकालिक दर्द को अलग कर दें तो अर्थव्यवस्था की विकास यात्रा बदस्तूर जारी है. विदेशी भुगतान घाटा, जो 2015-16 में जीडीपी का 1 प्रतिशत था, इस साल की पहली छमाही में जीडीपी के मात्र 0.3 प्रतिशत तक पहुंच चुका है. विदेशी मुद्रा भंडार 12 महीने के आयातों के लिए पर्याप्त हैं. वित्त मंत्री का यह भी कहना है कि महंगाई पूरी तरह से काबू में है यानि कहा जा सकता है कि ग्रोथ, मंहगाई, विदेशी मुद्रा, राजकोषीय प्रबंधन इत्यादि सभी में अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है, जिसे वित्त मंत्री ‘ब्राइट स्पॉट’ बतला रहे हैं.
विमुद्रीकरण की जहां तक बात है तो देश में लोग कम कैश का उपयोग करें और उसके लिए तमाम प्रोत्साहन और इन्फ्रास्ट्रचर बने, इस ओर बजट में पूरा जोर दिखाई देता है. कैशलेस लेन देन के लिए ‘भीम एप’ के उपयोग के लिए ‘कैशबैक’ और अन्य प्रोत्साहन, रेलवे में ऑनलाइन बुकिंग पर चार्ज समाप्ति, 1.5 लाख गांवों तक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क पहुंचाया जाना, ये सभी विमुद्रीकरण को बढ़ावा देने वाले कदम हैं. लेकिन यह लेनदेन कितना सुरक्षित रहेगा, इस पर असमंजस अभी बना हुआ है.
वित्त मंत्री ने ग्रामीण सड़क, मनरेगा, सिंचाई, कृषि एवं सहायक गतिविधियों आदि पर अधिक राशि के आवंटन के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की ओर ध्यान दिया है, जो सही दिशा में कदम है. मनरेगा को विकास कायरे के साथ जोड़ते हुए 5 लाख नये तालाब बनाने की बात हुई है, जो प्रशंसनीय है. ग्रामीण सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और विद्युतीकरण समेत कई क्षेत्रों में बेहतर आवंटन दिखाई देता है. आरसेनिक और फलोराइड प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल हेतु बजटीय आवंटन शायद पहली बार ही हुआ है. लगभग 4 लाख करोड़ रुपये इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए आवंटित कर सरकार ने रेल, सड़क, वायु यातायात, पावर आदि इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास को बड़ा प्रोत्साहन देने का काम भी किया है. लेकिन देश की आवश्यकताओं के हिसाब से इस काम को निरंतर जारी रखना पड़ेगा, तभी हमारा देश दुनिया के अग्रणी देशों की श्रेणी में आ सकेगा. प्रतिरक्षा पर अधिक आवंटन भी सरकार की प्रतिरक्षा क्षेत्र में प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है.
बजट में वित्त मंत्री ने एफआईपीबी (विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड) को खत्म करने की सिफारिश कर विदेशी निवेश पर तमाम रोकों को समाप्त करने की जो बात की है, वह चिंतनीय है. कई बार कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश के साथ कई खतरे जुड़े होते हैं, जिनका ध्यान एफआईपीबी रखता था. ऐसे निवेशों को इजाजत नहीं दी जाती थी.
आज जबकि अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देश भी, जो भूमंडलीकरण के प्रणोता थे, उससे विमुख हो रहे हैं और अपने-अपने देश की ‘स्वदेषी’ की ओर बढ़ रहे हैं. बैक्जिट द्वारा इंग्लैंड यूरोपीय समुदाय से नाता तोड़कर अपने उद्योगों के लिए चिंतित है, और अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प आयातों एवं विदेशों से अपना आर्थिक नाता तोड़ते हुए ‘अमेरिकी खरीदो-अमेरिकियों को नौकरी दो’ के सिद्धांत पर चल रहे हैं, न जाने क्यूं हमारे नीति-निर्माता अभी भी विदेशी निवेश और भूमंडलीकरण के मोह से ग्रस्त हैं. इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है.
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