चिंतन : आचार संहिता का असली अर्थ
चुनाव असाधारण कर्त्तव्य पालन है. चुनाव उत्सव की परिपूर्णता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में ही खिलती,फूलती और फलती है.
![]() आचार संहिता का असली अर्थ |
लेकिन उप्र सहित पांच राज्यों में ‘आदर्श आचार संहिता’ के बहाने अभिव्यक्ति के सभी उपकरणों पर पुलिसिया पाबंदी जैसी स्थिति है. आयोग ने पार्टी के राज्य मुख्यालयों पर भी प्रचार सामग्री लगाने से रोका है. मूलभूत प्रश्न है कि क्या दल अपने मुख्यालयों पर भी अपने नीति सिद्धांत और कार्यक्रम के बैनर नहीं लगा सकते? चुनाव आयोग का काम देख रहे अधिकारियों ने पार्टी मुख्यालय पर लगे होर्डिंग का लगाना उचित नहीं माना. आदर्श चुनाव आचार संहिता का असली मतलब यह नहीं है. चुनाव में खेल के नियम तय करना और किसी भी सूरत में नियमों का उल्लंघन न होना ही आदर्श स्थिति है. संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है. इसे किसी भी सूरत में बाधित नहीं किया जाना चाहिए.
अपने कार वाहन या घर पर झंडा लगाना संसद या विधानमण्डल के किसी अधिनियम में अपराध नहीं है. आदर्श आचार संहिता संहिता में भी झंडे की मनाही नहीं है. भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 4 जनवरी 2017 को जारी परिपत्र सं. 437 में चौपहिया वाहन पर अधिकतम 3 फीट लम्बे व 2 फीट चौड़े झंडे को उचित बताया गया है. लेकिन इस पर पुलिस की प्रतिक्रिया हिंसक है. विधान भवन के सामने पुलिस ने गाड़ियों पर लगे पार्टी झण्डे उतरवाए हैं. एक विधायक अपने घर के भीतर 40-50 समर्थकों के साथ गपिया रहे थे. आचार संहिता का उल्लंघन हो गया. वहां कोई भाषण नहीं हुआ. तब घर के भीतर भी एकत्रीकरण के चलते ही आचार संहिता का उल्लंघन कैसे हो गया? आचार संहिता पालनीय है. राजनेता कभी-कभी गड़बड़ी करते हैं, बहुधा ऐसा सही होता है. लेकिन हमेशा ऐसा ही नहीं होता. पुलिस और प्रशासन द्वारा भी गड़बड़ियां होती हैं. वे आदर्श आचार संहिता का अपना मतलब निकालते हैं. पुलिस के पास संहिता का पाठ करने का समय नहीं होता. उनकी अपनी भाषाई संहिता है. वे आदर्श आचार संहिता या दण्ड प्रक्रिया संहिता का संज्ञान नहीं लेते.
चुनाव में सभी दलों की अभिव्यक्तियां जरूरी हैं. सबके घोषणा पत्र, वायदे और इरादे प्रकट होने चाहिए. बहस, प्रचार भाषण और जनसंवाद चुनाव की आत्मा हैं. वाद का तीखा प्रतिवाद बहस को तात्विक बनाता है. वाद-प्रतिवाद के प्रगाढ़ मिथुन से संवाद बनता है. संप्रति ऐसा प्रचार, वाद विवाद और प्रतिवाद रोक दिया गया है. आदर्श आचार संहिता हर हालत में पालनीय है, लेकिन पुलिस तानशाही नहीं. आचार संहिता से असहमति का कोई सवाल नहीं उठता. किसी सभा या जुलूस को यों ही दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के अनुषंग में आईपीसी के 188 में नहीं बदला जा सकता. सभाएं होने दीजिए. सबको अपना पक्ष रखने दीजिए. हम सबको अपने घर और आवास पर आपके द्वारा निर्धारित साइज का झंडा बैनर लगाने दीजिए. पुलिस से निवेदन है कि थोड़ा मुस्कराकर बात कीजिए. खौरियाकर बात करने से मानवीय सद्भाव की भी आचार संहिता टूट जाती है. आदर्श चुनाव आचार संहिता का यथाविधि पालन जितना हमारे लिए जरूरी है, उससे ज्यादा प्रशासन के लिए भी. संहिता को अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का संरक्षक बनाइए, बाधक नहीं.
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