युवा दिवस : युवाओं को बढ़ानी होगी समझ

Last Updated 12 Jan 2017 03:08:36 AM IST

आज धर्म के नाम पर दुनिया भर में जो मारकाट मची है, धर्म के नाम पर दुनिया भर में जो पाखण्ड फैला है ऐसे हालात में विवेकानंद के ओजस्वी विचारों का दुनिया भर के युवाओं के लिए अधिक महत्त्व है, जिन्हें संपूर्णता में समझने की जरूरत है.


युवा दिवस : युवाओं को बढ़ानी होगी समझ

जब वे युवाओं से कहते हैं कि गीता, कुरान पढ़ने से ज्यादा अच्छा फुटबॉल खेलना है तो इस बात में ही धर्म का बड़ा रहस्य छुपा है, क्योंकि वे कहते थे कि स्वस्थ शरीर ही धर्म और अध्यात्म को ठीक तरह से समझ सकता है. उन्होंने अपने पूरे जीवन धार्मिक पाखंड का पुरजोर विरोध करते हुए विचारों की शुचिता को बहुत अधिक महत्त्व दिया.

‘उठो, जागो और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो’ का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्रोत, समाज सुधारक युवा युग पुरुष स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था. इनके जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद ने देश के युवाओं को समग्र आध्यात्मिक सोच और दिशा दी थी. भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनका जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का मुख्य  कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया.

उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं. किसी भी देश के युवा उसका भविष्य होते हैं. उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है. आज देश में जहां चारों तरफ भ्रष्टाचार, बुराई और अपराध का बोलबाला है, जो घुन बनकर देश को अंदर-ही-अंदर खाए जा रहे हैं. ऐसे में देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है. विवेकानंद के विचारों में वह क्रांति और तेज है, जो सारे युवाओं को नई चेतना से भर दे.

उनके दिलों को छू ले. स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई, जब भारत पराधीन था. हर तरफ सिर्फ दुख और निराशा के बादल छाए हुए थे. उन्होंने भारत के सोए हुए समाज को जगाया और उनमें नई ऊर्जा-उमंग का प्रसार किया. गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए. उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं.’ रोम्यां रोलां ने उनके बारे में कहा था-‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है, वे जहां भी गए, सर्वप्रथम ही रहे.

हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था. वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी.’ मात्र 39 वसंत देखने वाले युवा संन्यासी और युवा हृदय सम्राट नरेन्द्र यानी स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान किया था-‘गीता पढ़ने के बजाय फुटबल खेलो.’ दरअसल, वह कर्मयोगी और युगद्रष्टा थे, इसलिए उनका उद्घोष था-‘उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य को न प्राप्त कर लो.’ अपने समय से बहुत आगे की सोचने वाले महान चिंतक और दार्शनिक विवेकानंद वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बहुत महत्त्व देते थे. वह शिक्षा और ज्ञान को आस्था की कुंजी मानते हैं. स्त्री शिक्षा के वह विशेष हिमायती थे. विवेकानंद भारतीय समाज को छुआछूत और सामाजिक बुराइयों से दूर करने की बात करते थे.

स्वामी विवेकानंद ने 1893 में अमेरिका के शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में जब कहा, ‘अमेरिका के मेरे भाइयो एवं बहनो !’ तब यह सम्बोधन सुनते ही पूरा अमेरिका उनका मुरीद बन गया. सभागार तालियों से गूंज उठा. भारतीय धर्म, अध्यात्म और दर्शन पर उनके संबोधन से सारा अमेरिका चकित रह गया. स्वामी विवेकानंद नर सेवा को ही नारायण सेवा मानते थे. उन्होंने अपने गुरु महान आध्यात्मिक संत स्वामी  रामकृष्ण के नाम पर ही रामकृष्ण मिशन और मठ की स्थापना की. 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए वे आने वाली कई शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे. देश की वर्तमान परिस्थितियों में आज उनके विचार बहुत ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं. इसी वजह से वे देश के युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं. देश को उनके जैसे ही युवा नेतृत्व की जरुरत है, जो देश को आगे बढ़ा सके.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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