इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए महंगाई बढ़ना भी अच्छा : सीतारमण

Last Updated 07 Jul 2019 07:08:37 AM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को पेश अपने पहले बजट को एक क्रांतिकारी बजट की संज्ञा दी है।


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

बजट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘न्यू इंडिया’ की कल्पना साकार करने के उद्देश्य से कई उपाय किए गए हैं, लेकिन विपक्षी दलों ने इस बजट में मध्यम वर्ग को नजरंदाज करने और कंपनियों को फायदा पहुंचाने की बात कही है। इन सब मुद्दों को लेकर हमारे ब्यूरो प्रमुख रोशन ने वित्त मंत्री से खास बात की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश :

आपके पहले बजट को किस रूप से क्रांतिकारी कह सकते हैं। 1991 के मनमोहन के बजट और आपके बजट में पैराडाइम शिफ्ट की कौन सी बातें हैं?
डा. मनमोहन सिंह और हमारे बजट में तुलना नहीं की जा सकती है। उस समय की परिस्थितियों के हिसाब से वह बड़ा फेरबदल वाला बजट था, लेकिन हमने अपने बजट में बहुत सी बातें पहली बार की हैं, जो क्रांतिकारी हैं। विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने की अनुमति देना, एनबीएफसी को उद्यमियों के लिए वित्तीय साधन बनाना क्रांतिकारी निर्णय है।
आपने आयकर स्लैब को बढ़ाकर 7 या 8 लाख रुपए क्यों नहीं किया?
पांच लाख रुपए की तक आय तो अभी भी करमुक्त है। उससे ऊपर की आय वालों को ढाई लाख रुपए तक की छूट मिलती है। हमने इससे ज्यादा आय वालों को आयकर में छूट क्यों नहीं दी, इसके पीछे एक नहीं, बहुत से कारण हैं। नया स्लैब बनाने के बारे में अभी नहीं सोचा जा सकता है।

ईधन पर शुल्क बढ़ने से क्या महंगाई नहीं बढ़ेगी ?
मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि पेट्रोल/डीजल की कीमतें तो पहले भी बढ़ी, लेकिन क्या महंगाई बढ़ीं? मोदी सरकार ने पिछले पांच साल में महंगाई को नियंत्रण में रखा है। एक बार भी महंगाई चार प्रतिशत से अधिक नहीं की। एक बात ध्यान देने वाली है कि यदि लगातार मुद्रास्फीति की दर निचले स्तर पर रहती है तो ग्रोथ के अवसर कम हो जाते हैं। जिस तरह से ज्यादा महंगाई अच्छी नहीं होती, वैसे ही मुद्रास्फीति का बहुत देर तक कम स्तर पर बने रहना भी अच्छा नहीं होता।
वित्त विधेयक में पेट्रोल 10 और डीजल 8 रुपए तक बढ़ाने के प्रावधान से क्या महंगाई नहीं बढ़ेगी ?
हमने केवल प्रावधान किया है, ताकि अगर जरूरत पड़े तो बार-बार संसद न आना पड़े। इसका मतलब यह नहीं कि हम अभी दर बढ़ाने जा रहे हैं।
आपके बजट से रोजगार को कितना बढ़ावा मिलेगा?
हमने वर्चुअल साइकिल का सिद्धांत अपना लिया है। हमने आय, मांग और उत्पादन बढ़ाने के सिद्धांत अपनाया तो उसकी राह आसान करने के लिए कानूनों का भी सरलीकरण करने की पहल की है। उदाहरण के लिए हमारे देश में 40 से अधिक श्रम कानून है। हम इनको एकत्र कर केवल चार कानून बना रहे हैं। नियोक्ता का कहना है कि हम उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन हमें कुशल श्रमिक नहीं मिलते। इसलिए उन्हें पुरानों को हटाकर नए रखने पड़ते हैं। हमारा कहना है कि नए रखो, लेकिन पुराने मत हटाओ, उन्हें ट्रेनिंग देकर कुशल बनाओ।
आपने एनबीएफसी (नान बैंकिंग फाइसेंस कंपनी) को सुधारने की बात की है, उसकी वजह?
कारखानों, उद्योगपतियों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए एनबीएफसी की हालत सुधारने की तरफ कदम बढ़ाया है। आजकल एनबीएफसी की हालत ठीक नहीं है। जिन लोगों ने इनसे कर्जा लिया है, वे लौटा नहीं रहे हैं। हमने कहा है कि आरबीआई एनबीएफसी को क्यों नियंत्रित करे? वित्त विधेयक में नए कानून की बात है, जिससे एनबीएफसी को बढ़ावा मिल सके।
क्या सरकारी कंपनियां निजी हाथों में चली जाएंगी?
हमने विनिवेश के लिए एक और तरीका अपनाया है। कंपनी में मालिकाना हक सरकार का रहेगा यानि 51 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार की होगी। आम जनता तथा कर्मचारी भी शेयर होल्डर हो सकते हैं।
बजट में आपने निवेश का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, लेकिन यह आएगा कहां से?
हम तमाम तरह की बचत से पैसा लेंगे। लेकिन जैसा मैंने बताया, हम वर्चुअल साइकिल के सिद्धांत को अपना रहे हैं। हम लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाएंगे, उससे मांग बढ़ेगी और फिर उत्पादन बढ़ेगा। इससे अर्थव्यवस्था में गतिशीलता आएगी, रोजगार बढ़ेंगे।
विदेशी कर्ज लेने को भी बढ़ावा देने से विदेशी कर्ज का बोझ नहीं बढ़ेगा?
भारत के इतिहास में पहली बार हमने विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने की बात की है। हमने कहा है कि विदेशी मुद्रा में ही कर्जा लो, जो कम ब्याज में उपलब्ध होगा। इससे देश में निवेश बढ़ेगा।
सोने पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाने और सुपर रिच तबके पर उपकर बढ़ाने की क्या वजह है?
देश भर में मेट्रो रेल, सब अरबन रेल, सड़कें, पुल बनाए जा रहे हैं। हमने जीएसटी की दरें घटाई और लोगों को करीब 94 हजार करोड़ रुपए का लाभ देना पड़ा। यह सब कहां से आएगा। इन्हीं सबके लिए थोड़ा टैक्स व ड्यूटी बढ़ानी पड़ती है। सुपर रिच क्लास की जिम्मेदारी है कि वह योगदान करे।



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